बुल्डोजर तो समाधान नहीं

कुछ कार्रवाई भी हुई। लेकिन 2018 में ही अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का पेपर भी लीक हुआ

Update: 2021-12-02 06:15 GMT
लीक की घटनाएं सरकारी प्रिंटिंग प्रेस, परीक्षा में लगी एजेंसियों और कुछ बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से ही संभव हो पाती हैं। पेपर बंटने से पहले ही हासिल कर और उसे हल करके कुछ लोग लाखों रुपये में उसे अभ्यर्थियों को बेचते हैं। इसमें बड़े गैंग शामिल होते हैं। सवाल यह है कि ये तंत्र कैसे टूटेगा? 
उत्तर प्रदेश में टीईटी परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद अपने चिर-परिचत अंदाज में मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ दोषियों को ना बख्शने और उन के घरों पर बुल्डोजर चलाने की बात कही। लेकिन इससे इस बात का जवाब नहीं मिलता कि आदित्यनाथ के इस कार्यकाल में आखिर क्यों इतनी अधिका बार पेपर लीक हुए हैँ? इस मौके पर मीडिया रिपोर्टों में उचित ही यह ध्यान दिलाया गया है कि मार्च 2017 में योगी सरकार आने के चार महीने बाद ही जुलाई 2017 में दारोगा भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हुआ था। उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने 25 और 26 जुलाई 2017 को ऑनलाइन दारोगा भर्ती परीक्षा (सीबीटी) आयोजित की थी, लेकिन उससे पहले ही इसे स्थगित कर दिया गया, क्योंकि पेपर पहले ही वॉट्सऐप पर लोगों के पास पहुंच चुका था। फरवरी 2018 में उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की ऑनलाइन भर्ती परीक्षा का पेपर भी लीक हो गया, तो सरकार ने विशेष दल से जांच कराई। जांच रिपोर्ट में भर्ती परीक्षाओं में अनियमितता की बात सामने आने के बाद परीक्षा को रद्द कर दिया गया। कुछ कार्रवाई भी हुई। लेकिन 2018 में ही अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का पेपर भी लीक हुआ।
 उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से कराए जाने वाले कुछ अन्य पेपर भी लीक हुए, जिनमें सितंबर 2018 में आयोजित नलकूप चालक (सामान्य चयन) परीक्षा-2016 भी शामिल थी। इस मामले में मेरठ में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया था। अब क्या यह सवाल मुख्यमंत्री से नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर उनकी सरकार ने ऐसी घटनाओं से क्या सबस सीखा? जबकि ऐसी घटनाओं पर नजर रखने वाले लोग बताते रहे हैं कि परीक्षाओं के पेपर लीक होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है नकल माफिया और अधिकारियों के साथ उसकी साठ-गांठ। परीक्षा केंद्रों में पेपर लीक होने की संभावना बहुत कम होती है, क्योंकि पेपर सीलबंद पैकेट में आते हैं और बड़े अधिकारियों की निगरानी में होते हैं। इसलिए जाहिर है कि लीक की घटनाएं सरकारी प्रिंटिंग प्रेस, परीक्षा में लगी एजेंसियों और कुछ बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से ही संभव हो पाती हैं। पेपर बंटने से पहले ही हासिल कर और उसे हल करके कुछ लोग लाखों रुपये में उसे अभ्यर्थियों को बेचते हैं। इसमें बड़े गैंग शामिल होते हैं जिनके तार परीक्षा प्रणाली में लगे अफसरों से जुड़े होते हैं। सवाल यह है कि ये तंत्र कैसे टूटेगा?
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