भरोसे की टूटती डोर

पिछले दिनों दिल्ली में दो एक जैसी घटनाएं घटीं। पहली घटना में एक बुजुर्ग को रास्ते में एक लड़का मिला। उसने बताया कि वह बदायूं का रहने वाला है। उसका कोई नहीं है। यहां काम की तलाश में आया है।

Update: 2022-08-24 05:38 GMT

क्षमा शर्मा: पिछले दिनों दिल्ली में दो एक जैसी घटनाएं घटीं। पहली घटना में एक बुजुर्ग को रास्ते में एक लड़का मिला। उसने बताया कि वह बदायूं का रहने वाला है। उसका कोई नहीं है। यहां काम की तलाश में आया है। बुजुर्ग को उस पर दया आ गई। वह उसे अपने साथ ले आए। कई मंजिल का घर था। नीचे बेटा रहता था और ऊपर वह खुद। उन्होंने उस लड़के को अपने साथ ही रख लिया।

अभी उसे साथ रहते चार दिन ही बीते थे कि एक शाम वह शराब पीकर आया और किसी दूसरे के घर में घुसने लगा। यह देख कर बुजुर्ग को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसे डांटा। डांट लड़के को इतनी बुरी लगी कि वह उनके साथ हाथापाई करने लगा। फिर माफी भी मांग ली। मगर गुस्सा भरा हुआ था। अगली सुबह उसने लोहे की छड़ से हमला बोल दिया और बुजुर्ग की हत्या कर दी। फिर उन्हीं के फोन से उनके बेटे को फोन किया। कहा- 'जब नहा कर निकल आओ तो ऊपर जाकर देख लेना। हा… हा… हा…।'

दूसरी खबर यों है कि एक आदमी कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहा था। घर में मां और पत्नी अकेली थीं। उसने अपने दोस्त को जिम्मेदारी सौंपी कि जब तक वह लौटे, वह मां और पत्नी की देखभाल करे। उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। दोस्त के ऊपर लाखों का कर्ज था। वह व्यक्ति बाहर चला गया तो जिस दोस्त को उसने मां और पत्नी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी, उसका ईमान बदल गया। मौका अच्छा देख कर उसने दोनों महिलाओं की हत्या कर दी। घर का पालतू कुत्ता उसे पहचानता था, इसलिए उसे ले जाकर कमरे में बंद कर दिया। कुत्ता जब देर तक भौंकता रहा, तो पड़ोसियों को कुछ शक हुआ। उन्होंने घर की घंटी बजाई। देर तक दरवाजा नहीं खुला, तो पुलिस को सूचना दी।

इन घटनाओं के बारे में खबरें पढ़ कर किसी का भी मन खिन्न हो उठेगा। किसी को मार कर बेटे को सूचना देना और हा-हा करना। आखिर उस लड़के के मन में क्या चल रहा होगा। उसे एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि जिसने बिना किसी जान-पहचान के अपने घर में जगह दी, उसकी हत्या क्यों करे। बुजुर्ग की डांट बुरी लगी, तो घर छोड़ कर जा सकता था। मगर बदले की भावना सिर चढ़ कर बोल रही थी। उसे बदला लेने का सबसे अच्छा तरीका मौत देना लगा। यह भी कि मार कर चला जाएगा, और बच जाएगा।

इसी तरह दूसरी घटना में जिस दोस्त का रोज घर आना-जाना था, घर की स्त्रियां भी उस पर इतना भरोसा करती थीं कि घर में अकेली होते हुए भी बिना किसी शक के दरवाजा खोल दिया। कर्जा चुकाना था, इसलिए उसे लूटपाट करने के लिए दोस्त का घर ही सबसे उपयुक्त लगा। ऐसे में मां और पत्नी का कत्ल करना भी उसे बुरा नहीं लगा। मारने वाले ने भी यही सोचा कि वह पकड़ा नहीं जाएगा। इसीलिए जब पुलिस हत्या की जांच करने आई, तो वह पुलिस की मदद भी करता रहा।

दोनों अपराधी पकड़े जा चुके हैं। अगर उन्हें सजा भी मिल गई, तो जिन तीन लोगों ने जान गंवाई, वे वापस तो नहीं आएंगे। ये दोनों घटनाएं ऐसी भी नहीं हैं कि पहली बार हुई हों। कई बार पति अपनी पत्नी की हत्या करके थाने में जाकर कहते हैं कि उन्होंने हत्या कर दी है। एक आदमी तो पत्नी का सिर ही लेकर थाने पहुंच गया था। पत्नियां भी पीछे नहीं हैं। वे भी पति से नाराज होकर, या पति के अलावा किसी और से संबंध की चाह में पति को रास्ते से हटाने के लिए ऐसा करती रहती हैं। आखिर हत्या इतनी आसान कैसे हो गई है।

समाज में विश्वास का इतना लोप कैसे होता जा रहा है। जबकि पुलिस ही लोगों को राय देती है कि कहीं बाहर जाएं, तो पड़ोसियों को बता कर जाएं। जिसे बता कर गए, अगर उसी के मन में खोट आ जाए जैसे कि उस व्यक्ति के दोस्त के मन में आ गया, या उसके जिसे घर में पनाह दी गई, तो क्या हो। आखिर इस बढ़ती नृशंसता और बढ़े हुए अहंकार का क्या इलाज है। धैर्य की कमी भी नजर आती है।

यही नहीं, ऋण लेकर घी पीने वाली बात भी सही होती दिखाई देती है। ऋण चुकाने के लिए किसी की हत्या करने से पहले यह भी सोचा जा सकता था कि अगर दोस्त से कहे, तो हो सकता है, वह उसकी मदद कर दे। लेकिन अपराध हमें अपनी तरफ खींचते हैं। वे उनसे दूर भागने को नहीं कहते। आज के इस दौर में जब अपराध बाजार में सबसे बड़ी बिकने वाली चीज हो, जिस फिल्म और धारावाहिक में ज्यादा से ज्यादा अपराध दिखाए जाएं, वह सबसे लोकप्रिय हो, तो लोग अपराध करने से क्यों डरें।


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