पत्रकार की मौत पर उबाल.. बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
बिहार में एक हत्या हुई है. ज़िला मधुबनी में. जिसकी हत्या हुई है वो स्थानीय पत्रकार भी था और RTI एक्टिविस्ट भी. अविनाश झा नाम था. अविनाश 9 नवंबर से लापता था. थाने में केस दर्ज है. 4 दिन बाद उसकी जली हुई बॉडी बोरी में बंद मिली. 23 बरस के बेटे की हत्या से परिवार वाले सदमे में हैं. सोशल मीडिया पर उबाल है. पुलिस पर सवाल है.
यूं तो बिहार में औसतन हर महीने 235 लोगों की हत्या होती है. जो रोजाना करीब 8 के करीब है. साल के शुरुआती 6 महीने की रिपोर्ट बताती है कि महीने में औसतन 848 लोग अलग-अलग वजहों से उठा लिए जाते हैं. इनमें से फिरौती के लिए अपहरण के मामले तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं. और हत्या के लिए और भी कम.
फर्जी नर्सिंग होम चलाने वालों पर है आरोप
मधुबनी के अविनाश झा को पहले अगवा किया. फिर उसकी हत्या कर दी. लाश को जलाकर फेंक दिया. अपहरण और हत्या के मामले में अविनाश झा सरकार के लिए सिर्फ एक आंकड़ा हो सकता है, मगर उसकी वजह बहुत भयावह है. क्योंकि अखबारों की कतरन और अविनाश झा के फेसबुक पोस्ट्स बताते हैं कि वो सेहत के सौदागरों के लिए काल था. कुकुरमुत्ते की तरह खड़े हुए नर्सिंग होम के फर्जीवाड़ों को बेनक़ाब कर रहा था. उसकी रिपोर्ट पर कई प्राइवेट नर्सिंग होम के ख़िलाफ़ एक्शन हो चुके थे. उसके परिवारवालों का भी इल्जाम है कि अविनाश झा की वजह से जिन फर्जी नर्सिंग होम वालों पर कार्रवाई हुई, उसी ने उसकी हत्या करवाई.
हकीकत क्या है, ये पड़ताल में पता चलेगा. लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि बिहार में नर्सिंग होम बड़ा धंधा बन चुका है. खासकर मधुबनी जैसे छोटे शहरों में. कुछ दिन प्रैक्टिस कर चुके ज्यादातर डॉक्टरों की अपनी दो मंजिला दुकान है. जिसमें अधकचरे ज्ञान वाले नर्स के अलावा कम्पाउंडर और कर्मचारी के नाम पर स्थानीय गुंडे काम करते हैं. छोटे शहरों या बाजारों में गांव से गरीब या कम पढ़े-लिखे लोग आते हैं. पहले शहरों में उनके एजेंट लोगों को ट्रैप करते हैं. उसके पास एजेंट लोगों को नर्सिंग होम की चौखट पर पटक देता है. डॉक्टर डराते हैं. समझाते हैं. फिर भर्ती करते हैं. बिल का मीटर शुरू हो जाता है. लेकिन सुविधा के नाम पर शून्य मिलता है. चिल्लाते रहिए. न डॉक्टर समय पर आएंगे. न नर्स सही से जवाब देगा.
बिहार में अंधाधुंध चल रहा है नर्सिंग होम फर्जीवाड़ा
रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर नर्सिंग होम मेडिकल गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ा रही है. कुछ को छोड़ दीजिए तो अधिकतर नर्सिंग होम सिर्फ 'कसाई घर' बना हुआ है. जहां सिर्फ आपदा को अवसर में बदलने का घिनौना काम किया जाता है. गूगल पर "बिहार नर्सिंग होम गुंडागर्दी" या फिर "बिहार फर्जी नर्सिंग होम" सर्च कर लीजिए. ऐसी-ऐसी ख़बरें दिखेगी, जो कंपा देंगी. मधुबनी, दरभंगा, भागलपुर, गया, पटना, मधेपुरा..सहरसा..शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां पर नर्सिंग होम वालों की गुंडागर्दी या फिर फर्जीवाडे़ की ख़बर न हो.
दो साल पहले 2019 के अप्रैल महीने में बिहार के पूर्व मंत्री और तबके सत्ताधारी पार्टी के विधायक श्याम रजक ने पटना के शास्त्रीनगर थाने में केस दर्ज करवाया था. FIR रिपोर्ट का सारांश ये था कि वो पारस अस्पताल में भर्ती थे. उनकी पीठ में हीटिंग पैड लगा दिया गया था. लेकिन इसे देखने के लिए कोई भी स्टाफ नहीं था. लिहाजा पैड इतना गर्म हो गया कि उनकी पीठ जल गई और फोले पड़ गए. इतना कुछ होने के बावजूद अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों ने कोई ध्यान नहीं दिया.
इसी साल अक्टूबर की बात है. औरंगाबाद के गोह में अवैध रूप से चल नर्सिंग होम में महिला की मौत हो गई. आरोप है कि महिला को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. नर्सिंग होम के डॉक्टर उचित इलाज नहीं कर पा रहे थे. इसके बावजूद पैसों के चक्कर में आखिरी सांस तक महिला को अपने पास रखा. अगस्त में सहरसा में कई अवैध नर्सिंग होम का खुलासा हुआ था. पूर्णिया के लाइन बाजार में भी फर्जी अस्पतालों की ख़बर आई थी. जुलाई में मधेपुरा में बिना रजिस्ट्रेशन के संचालित नर्सिंग होम में बच्चा बेचते डॉक्टर पकड़ा गया था. जनवरी में खगड़िया में एक नर्सिंग होम में डॉक्टर ने ऑपरेशन के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे की गर्दन काट दी.
अविनाश झा की RTI ने बहुतों का भंडाफोड़ किया था
यूं तो बिहार में 2015 से क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट लागू है. नर्सिंग होम के लिए रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ अस्पताल में जरूरी सुविधाओं का होना आवश्यक है. लेकिन सरकारी गाइडलाइन का कितना पालन होता है, वो तब सामने आता है, जब सरकारी अफसर एक्शन लेते हैं. जिस अविनाश झा की सड़ी-गली लाश मिली है, उसकी RTI रिपोर्ट पर भी कई फर्जी नर्सिंग होम पर कार्रवाई हुई थी. इलाज के नाम पर वसूली की दुकान चलाने वालों पर जुर्माना लगा था. बावजूद इसके ऐसी दुकाने धड़ल्ले से चल रही हैं. और इसकी एक दूसरी वजह है सरकार अस्पतालों का बेहद बीमार होना.
दरअसल बिहार में सरकारी स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह संक्रमित है. देश के तीसरे सबसे बड़े सूबे का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बरसों से मानकों के काफी नीचे रेंग रहा है. 30 से 40 फीसदी गरीबी के बावजूद 21 बड़े प्रदेशों में बिहार की हेल्थ रैंकिंग 20वीं है.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित देशों में 550 की आबादी पर एक डॉक्टर की व्यवस्था है, लेकिन बिहार में 2400 की आबादी पर एक डॉक्टर है. जबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कहता है कि किसी भी हालत में एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर जरूरी है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार बहुत ज्यादा बीमार है
इसी साल अक्टूबर में जारी नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के जिला अस्पतालों में सबसे कम बेड बिहार में हैं. बिहार में एक लाख की आबादी पर मात्र 6 बेड हैं. 36 जिला अस्पताल में 3 में ही मानक के अनुसार डॉक्टर हैं. बिहार के औसतन 8 अस्पतालों में ही डायग्नोस्टिक टेस्टिंग सर्विस की सुविधा उपलब्ध है. एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में सरकारी अस्पतालों में विभिन्न स्तर के 91921 पद हैं. जिनमें से लगभग आधे से अधिक 46256 पद रिक्त हैं. आंकड़े बताते हैं कि बिहार के मेडिकल कॉलेजों में 56 फीसदी जगह खाली है. बिहार में डॉक्टरों के 6 हजार से ज्यााद पद खाली हैं.
सरकारी अस्पतालों में स्थिति विकट है. नीति आयोग की रिपोर्ट के बिहार के मंत्री ने खारिज कर दिया था. लेकिन हकीकत सिर्फ कागज़ों पर नहीं है. अस्पतालों में साफ-साफ दिखती है. कहीं अस्पताल है तो डॉक्टर नहीं हैं. डॉक्टर हैं तो दवाई नहीं है. डॉक्टर-दवाई है तो जांच के इंतजाम नहीं हैं. जब-जब बड़ी आफत आती है तब-तब हाय-तौब मचता है. सरकारी आश्वासन मिलता है. फिर वही होता है जो हो रहा है. यही वजह है कि गरीब भी प्राइवेट नर्सिंग होम की तरफ दौड़े चले जाते हैं. और फिर कभी सिर्फ पैसे लुटाकर लौटते हैं तो कभी पैसों के साथ जिंदगी भी.
मधुबनी के अविनाश झा के बहाने एक बार फिर वो दर्द कुरेदा गया है. स्थानीय पुलिस अविनाश झा की जान नहीं बचा पाई. लेकिन सरकार अगर लुटेरे नर्सिंग होम पर ठोस कार्रवाई करे, सरकारी अस्पतालों पर विशेष ध्यान दे, तो शायद 23 बरस के उस नौजवान को इंसाफ मिले. उसकी आत्मा को शांति मिले. बिहार के लोगों को विश्वास मिले.