कुंद करें कोरोना: लापरवाही से लहर न बन जाये सुनामी

त्योहारों की समाप्ति और ठंड की दस्तक के साथ यदि  एक बार फिर कोरोना का ग्राफ तेजी से बढ़ा है

Update: 2020-11-28 12:15 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। त्योहारों की समाप्ति और ठंड की दस्तक के साथ यदि  एक बार फिर कोरोना का ग्राफ तेजी से बढ़ा है तो कहीं न कहीं उसके मूल में हमारी चूक है। हमें पता था कि हमें क्या करना है और क्या नहीं करना, लेकिन उसके बावजूद हम ऐसे बेफिक्र हुए कि जैसे महामारी देश से विदा हो गई है।

निस्संदेह एक सदी बाद आई महामारी से जूझने का अनुभव मौजूदा पीढ़ियों के पास नहीं था, लेकिन जिस धैर्य व संयम का हमें परिचय देना चाहिए था, उसमें हम जरूर चूके हैं। तेजी से संक्रमित हुए राज्यों के मुख्यमंत्रियों से संवाद के बाद गृह मंत्रालय ने फिर संक्रमण रोकने के लिये नये निर्देश जारी किये हैं। ये निर्देश कोई नये नहीं हैं। इन्हें हम पहले से ही जानते थे, लेकिन बात बस इतनी थी कि हम उनका पालन करने में सतर्कता नहीं निभा रहे थे।

जब हम आत्मसंयम का पालन नहीं करते तो प्रशासन को फिर संयम सिखाने के लिये सख्ती करनी पड़ती है। यही वजह है कि दिल्ली में मास्क न पहनने पर लगने वाला जुर्माना चार गुना बढ़ा है।

नये निर्देशों में पुलिस व स्थानीय निकायों को कोविड संक्रमण रोकने की जिम्मेदारी दी गई है। राजस्थान के बाद पंजाब में रात का कर्फ्यू लगाने की घोषणा हुई है। इसको लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि लोगों की सक्रियता तो दिन में ज्यादा होती है। दिन में ही शारीरिक दूरी और मास्क लगाने में लापरवाही नजर आती है और संक्रमण को विस्तार मिलता है।

बहरहाल, समाज में अराजक व्यवहार पर अंकुश लगाना तब जरूरी हो जाता है जब हम अपने दायित्वों का निर्वहन ठीक से नहीं करते। यदि व्यक्ति अपनी, परिवार और समाज की वाकई चिंता करता है तो उसे कोरोना संक्रमण को रोकने के सामान्य नियमों का जिम्मेदारी से निर्वहन करना चाहिए। आत्मानुशासन से किये गये प्रयास शासन द्वारा थोपे गये अनुशासन के मुकाबले बेहतर होते हैं। सही मायनो में कोरोना से बचाव का यही सुरक्षित रास्ता भी है। इसी बीच पूरे देश में गाहे-बगाहे लॉकडाउन की अफवाहें भी सरगर्म रही हैं। लेकिन ऐसे वक्त में जब देश की हिचकोले खाती अर्थव्यवस्था पटरी पर आती दिख रही है, लॉकडाउन का विकल्प किसी भी सूरत में तर्कसंगत नहीं हो सकता।

देशव्यापी लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से देश अभी तक उबर नहीं पाया है। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए और विस्थापन का दंश देश ने भोगा है। आलोचक कहते रहे हैं कि देशव्यापी लॉकडाउन लागू करने में चूक हुई है और इसे नियोजित ढंग से लागू किया जाना चाहिए था। यह जानते हुए भी कि अनलॉक के बाद हम संक्रमण की स्थिति में दुनिया में दूसरे नंबर पर पहुंचे हैं। निस्संदेह कोरोना वैक्सीन के सकारात्मक परिणामों से समाज में उत्साह पैदा हुआ है, लेकिन हमें मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए कि कोरोना संक्रमण से हमारी लड़ाई लंबी चलनी है।

आम आदमी के हिस्से में वैक्सीन आने में छह महीने से  अधिक का समय लग सकता है। ऐसे में सतर्कता ही सर्वोत्तम उपचार है। यह जानते हुए कि हमारा चिकित्सातंत्र पहले से ही बीमार है। सही मायनो में कोरोना काल की सावधानी और उपाय हमारे स्वस्थ जीवन का आधार बन सकते हैं।

ऐसे में लोगों को नियमों के उल्लंघन की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। यह जानते हुए कि देश में आर्थिक विषमता की खाई कोरोना संकट में और चौड़ी हुई है, समाज के अंतिम व्यक्ति को आर्थिक व चिकित्सा सहायता पहुंचाने के लिये तंत्र को संवेदनशील होना पड़ेगा। कोरोना संकट में रोज कमाकर खाने वाले इस वर्ग की घर से बाहर निकलना मजबूरी है, तो उसकी मजबूरी में ही संक्रमण से बचाव के उपाय भी तलाशने की जरूरत है। बहरहाल, एक नागरिक के रूप में व्यक्ति को आफिस, बाजार, सार्वजनिक परिवहन तथा नागरिक जीवन में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। कमोबेश गृह मंत्रालय के नये निर्देशों का यही सार भी है।  साथ ही जिन लोगों की जिम्मेदारी कोरोना संक्रमण का प्रसार रोकने की है, उन्हें भी मुस्तैदी से अपने दायित्वों का पालन करना होगा। 


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