क्रिप्टो क्रैश में मंदी की आहट : ज्यादा डराने वाली बात और कम डराने वाली के बीच का अंतर, समझें तो बेहतर

सुरक्षित भी नहीं रहे। इसलिए नसीहत यह है कि क्रिप्टो की लगाम खींचकर ही रखी जाए।

Update: 2022-11-29 02:56 GMT
क्रिप्टो करेंसी का अंतरराष्ट्रीय बाजार पिछले पखवाड़े जिस भयानक उठापटक से गुजरा, उसका सदमा क्या सिर्फ क्रिप्टो निवेशक महसूस करेंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि क्रिप्टो के दूसरे सबसे बड़े एफटीएक्स एक्सचेंज के दिवालिया होने से फिर वही खतरे की घंटी बजी है, जैसी सितंबर, 2008 में लेहमन बैंक के दिवालिया होने से बजी थी, और जिसके बाद समूची दुनिया ने 1930 की ऐतिहासिक महामंदी के बाद दूसरी सबसे बड़ी मंदी को सुनामी बनते देखा था?
लगभग दो साल चली उस सुनामी की विनाशलीला के 12 साल बाद उपरोक्त दोनों सवालों के जो जवाब हमें दिए गए हैं, वे डराने वाले हैं। घटनाचक्र वैसा ही है, जैसा कि अमेरिका में 2002 से 2010 के बीच था। तब भी अमेरिकी फेडरल बैंक की मुद्रा नीति ही मंदी की जमीन बनी थी। अब भी वैसा ही हुआ है। बस, हाउसिंग के सबप्राइम संकट की जगह क्रिप्टो करेंसी संकट ने ले ली है, और लेहमन ब्रदर्स बैंक की जगह क्रिप्टो का बदनाम एफटीएक्स एक्सचेंज आ गया है। निवेशकों में हड़कंप, प्रतिभूति बाजार में बिकवाली की भगदड़, आईएमएफ-विश्व बैंक की चेतावनियां और विकसित देशों के वित्तमंत्रियों की पेशानी पर बल-सब कुछ एक पुराने चलचित्र की तरह दोहराया जाने लगा है।
विगत 24 नवंबर के दो बयानों से हालात की नजाकत का अंदाजा होता है। केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि दुनिया मंदी के सामने खड़ी है और अमीर देश नीति निर्धारण पक्षाघात के शिकार हो गए हैं। उसी दिन वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बयान दिया कि अमीर देशों में आती मंदी का असर भारतीय निर्यात पर पड़ने जा रहा है। इन बयानों के बाद क्या वे लोग जागेंगे, जो अभी तक कह रहे थे कि भारत पर इसका असर नहीं होगा?
सर्वप्रथम 12 साल पहले वाली मंदी की जड़ की बात करते हैं। 9/11 के बाद अमेरिकी अर्थतंत्र जबर्दस्त झटकों से गुजरा और बाजार में नकदी प्रवाह बनाए रखने के लिए फेडरल बैंक को प्रधान ब्याज दर बहुत ही कम एक फीसदी तक लानी पड़ी। चूंकि कर्ज बेहद सस्ता हो गया था, लिहाजा हाउसिंग सेक्टर में उबाल आ गया और लोगों ने ताबड़तोड़ उधार लेकर मकान खरीदे। बाद के वर्षों में ब्याज दरें बढ़ाना भी फेडरल बैंक की मजबूरी बन गया और उसी से कुख्यात सबप्राइम मॉर्टगेज संकट शुरू हुआ। हाउसिंग लोन लिए बैठे लोगों की ईएमआई बेतहाशा बढ़ने लगी और हारकर उन्होंने गिरवी रखे अपने मकान बैंकों को सौंपने शुरू कर दिए। यहीं से अमेरिकी बैंकिंग तंत्र खोखला होना शुरू हुआ और लेहमन ब्रदर्स बैंक उसका पहला शिकार बना। उसके बाद अमेरिका और शेष दुनिया में क्या हुआ, यह सब जानते हैं।
अब देखें कि 2022 में क्या हो रहा है। 9/11 की तरह झटका देने का काम इस बार कोरोना और यूक्रेन युद्ध ने किया। बेरोजगारी और गरीबी से बौखलाई अर्थव्यवस्थाओं ने इस बार भी ब्याज दरें घटाकर असर थामने की कोशिश की और बाद में महंगाई को थामने के लिए ब्याज दरें बढ़ाईं। इस बार भी आवारा पूंजी के थैलीशाह निवेशक ज्यादा रिटर्न की तलाश में निकले और इस बार उनके सामने थी डिजिटल करेंसी में सट्टेबाजी की पूरी तरह खुली और अनियंत्रित चरागाह।
क्रिप्टो करेंसी ऐसी डिजिटल मुद्रा है, जो विकेंद्रीकृत है। इस पर किसी सरकार का नियंत्रण नहीं। महज 14 बरस के अतीत वाली डिजिटल करेंसी की बिना सरहदों वाली इस दुनिया में देखते-देखते सैकड़ों तरह की क्रिप्टो करेंसी, हजारों किस्म के क्रिप्टो एप, सैकड़ों करेंसी एक्सचेंज और करोड़ों निवेशक पैदा हो गए। करोड़पति-अरबपति बनते लोगों ने मान भी लिया था कि वे घोटालों से निरापद, ई-गवर्नेंस से लैस, एक चमत्कारी कामधेनु पा गए हैं, जिसमें उनका निवेश सिर्फ बढ़ेगा। पर उनकी खुशफहमी की मियाद नवंबर, 2022 तक थी।
11 नवंबर को दुनिया के दूसरे सबसे बड़े क्रिप्टो एक्सचेंज एफटीएक्स ने अमेरिका में दिवालिया होने की अर्जी फाइल कर दी। उसके सेलिब्रिटी संस्थापक सैम बैंकमैन फ्रॉइड ने निवेशकों से माफी मांगते हुए कबूल किया कि वह क्रिप्टो निवेशकों का पैसा अपनी एक दूसरी कंपनी में लगाकर उन्हें धोखा दे रहे थे। इससे एफटीएक्स में पैसा लगाने वाले एक लाख जमाकर्ताओं में हड़कंप मचना ही था। एक ही दिन में पांच अरब डॉलर वापस निकालने की अर्जियां आ गईं। एफटीटी का बाजार भाव 90 फीसदी तक लुढ़क गया। बिटकॉइन समेत तमाम डिजिटल मुद्राओं के दाम भी बुरी तरह टूट गए। क्रिप्टो कारोबार के खातों से जुड़े सैकड़ों बैंक इसी तरह घुटनों पर आते जा रहे हैं। यह भी उजागर हो रहा है कि अमेरिका के हाल के मध्यावधि चुनाव में एफटीएक्स के मालिक राजनीतिक चंदा भी लुटा रहे थे। क्रिप्टो की कपटलीला देखते निवेशक इसी सच का दीदार कर रहे हैं कि ब्लॉकचेन तकनीक हैकिंग से हिफाजत की गारंटी तो दे सकती है, पर इंसानी बेईमानी और लालच से बचाने की नहीं।
भारत के लिए यहां एक सुखद संयोग है। पूंजीगत खातों पर पूर्ण परिवर्तनीयता रोके रखने की केंद्र सरकार की सावधानी ने 2008 की मंदी के सीधे असर से भारतीय अर्थव्यवस्था को बचा लिया था। उसी तरह क्रिप्टो करेंसी को वैधता देने में उसकी अब तक की हिचक ने भी नवंबर की इस सुनामी से अर्थतंत्र को कुछ हद तक बेअसर रखा है। क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध से भले सरकार ने अभी तक परहेज किया, पर वर्चुअल निवेश के मुनाफे पर 30 फीसदी टैक्स थोपकर उसने संकेत तो दे ही दिया है कि यहां डिजिटल मुद्राओं पर कड़े नियम लागू होंगे।
बहरहाल कुछ तथ्य हमें हैरान कर सकते हैं। एक ताजा शोध के मुताबिक, अमेरिका और तुर्कीये के बाद भारत तीसरा देश है, जहां सबसे ज्यादा बार क्रिप्टो एक्सचेंज एप डाउनलोड किए गए हैं। भारत में क्रिप्टो करेंसी में निवेश करने वालों की संख्या अब 11.5 करोड़ का आंकड़ा छू चुकी है। इसी अनुसंधान का एक निष्कर्ष यह है कि पिछले सात वर्षों में भारत के 73 फीसदी क्रिप्टो निवेशकों ने पैसा गंवाए हैं। संकेत साफ हैं। बड़ी तेजी से देश में फैल रहे क्रिप्टो के साइबर खाते नए जमाने के निरंकुश स्विस खाते बन सकते हैं। देश-विदेश की काली-सफेद पूंजी के ये आधुनिक अभयारण्य अब गोरखधंधों से सुरक्षित भी नहीं रहे। इसलिए नसीहत यह है कि क्रिप्टो की लगाम खींचकर ही रखी जाए।

सोर्स: अमर उजाला

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