अयान मुखर्जी की फिल्म 'ब्रह्मास्त्र'; फिल्म को तमिल और तेलुगु में भी डब किया जा रहा है
फिल्म निर्देशक अयान मुखर्जी की आलिया भट्ट और रणबीर कपूर अभिनीत फिल्म लंबे समय से बन रही है
जयप्रकाश चौकसे का कॉलम:
फिल्म निर्देशक अयान मुखर्जी की आलिया भट्ट और रणबीर कपूर अभिनीत फिल्म लंबे समय से बन रही है और अगले वर्ष 9 सितंबर को इसके प्रदर्शन की बात कही जा रही है। 'ब्रह्मास्त्र' नामक इस फिल्म का मुख्य पात्र शिवा आग उगलने की शक्ति रखता है। इसलिए पहले इसका नाम 'ड्रैगन' रखा गया था और इसी नाम से फिल्म का चीनी भाषा में डब संस्करण प्रदर्शित किया जाएगा। फिल्म को तमिल और तेलुगु में भी डब किया जा रहा है। अब एस.एस. राजामौली भी इससे जुड़ गए हैं।
'बाहुबली' ने मानवीय करुणा की फिल्मों को हाशिए पर फेंक दिया है। ज्ञातव्य है कि चार्ली चैपलिन की दफनाई हुई मृत देह चोरी चली गई थी। बड़े पैमाने पर खोज की गई। कुछ दिनों बाद चोर स्वयं ही उसे लौटा गए। आदरपूर्वक उन्हें पुन: दफनाया गया। दरअसल चार्ली चैपलिन की मानवीय कमजोरियां और करुणा वाली फिल्मी विचारधारा को तर्कहीनता की प्रतीक बाहुबली ने ही मारा है।
भारत में चार्ली चैपलिन से प्रेरित राजकपूर और ऋषिकेश मुखर्जी ने लंबी पारी खेली है। आक्रोश के नाम पर व्यक्तिगत बदले की मारधाड़ वाली हिंसक फिल्मों के दौर में भी ऋषिकेश मुखर्जी और राजकपूर ने अपना काम जारी रखा है। दोहरे सामजिक मानदंड और सामंतवादी कुरीतियों के खिलाफ राजकपूर ने 'प्रेमरोग' बनाई और फिल्म सफल भी रही। भारतीय फिल्म उद्योग में सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में हमेशा बनती रही हैं। शशधर मुखर्जी ने नाच-गाने, बचपन में खोए हुए और जवानी में मिले पात्रों की तर्कहीन फिल्में बनाना प्रारंभ कीं।
उनके शागिर्द नासिर हुसैन ने भी इसी तरह की सफल फिल्में बनाईं। शशधर मुखर्जी के खानदान के ही अयान मुखर्जी हैं और अपने कॅरिअर के प्रारंभ से ही वे रणबीर कपूर के मित्र भी हैं, जो उनकी सभी फिल्मों के नायक भी हैं। इस तरह मसाला और सामाजिक सोद्देश्यता की विरोधाभासी फिल्मों को अयान और रणबीर ने एक जगह ला खड़ा किया है।
अयान, रणबीर कपूर और कोंकणा सेन शर्मा अभिनीत फिल्म 'वेकअप सिड' ने अपनी लागत पर मामूली लाभ कमाया लेकिन उनकी दूसरी फिल्म में दीपिका पादुकोण भी थीं और फिल्म ने खूब कमाया। 'ब्रह्मास्त्र', 'वेकअप सिड' नहीं है और ना ही 'जवानी दीवानी' है वरन ये राजामौली की 'बाहुबली' के समान फिल्म हो सकती है। आगे जाने वाले कदम पुराने रास्ते पर आ गए, 'स्पाइडर मैन', 'सुपर मैन' इत्यादि की लोकप्रियता एक गंभीर सामाजिक चेतावनी है।
फिल्म तकनीक के विकास का लाभ उठाने के लिए इस तरह की फिल्में बनाई जा रही हैं। इस लोभ-लालच के खेल ने यह चिंता पैदा कर दी है कि हमारा किशोर वर्ग तर्कहीनता की ओर आकर्षित है। जादू को महिमा मंडित करने वाले हैरी पॉटर की ही कड़ियां हैं। इन बातों से याद आती है फिल्म 'इट्स ए मैड मैड वर्ल्ड'। क्या सचमुच हम पागलपन का शिकार होने जा रहे हैं। क्या कोई केमिकल लोचा है या सामूहिक सोच में कोई वायरस घुस आया है। क्या सिड सो गया है या भरी जवानी में अपना दीवानापन खो चुका है? ज्ञातव्य है कि 'ब्रह्मास्त्र' एक बार ही चलाया जा सकता है।
इस कथा के तथ्य को वर्तमान की फिल्म के साथ कैसे जोड़ा गया होगा? कुछ लोगों की चिंता है कि मिथ मेकर और मायथोलाजी से मुक्त तर्क सम्मत और विज्ञान आधारित विचार स्वतंत्र विचार प्रक्रिया ही विश्व को पागलखाना बनने से बचा सकती है। हुड़दंग, संविधान के परे ड्रैगन की तरह आचरण कर रहा है। दिनकर जी की कविता है, समर शेष है, नहीं पाप का भागी व्याघ्र जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध।