न्याय पर हमला

झारखंड में न्यायपालिका की सुरक्षा पर सवाल खडे़ करने वाली जो घटना हुई है,

Update: 2021-07-30 03:24 GMT

झारखंड में न्यायपालिका की सुरक्षा पर सवाल खडे़ करने वाली जो घटना हुई है, उसने पूरे न्याय जगत को झकझोर कर रख दिया है। पूरी न्याय बिरादरी न केवल दुखी, बल्कि नाराज भी है। धनबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद को सुबह की सैर के समय सड़क किनारे जिस तरह से टक्कर मारी गई है, उसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। अगर किसी अपराधी को जमानत न देने या किसी अपराधी को सजा सुनाने की वजह से जज को निशाना बनाया गया है, तो यह पूरी कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती है। कानून के शासन पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन ऑटो का संतुलन बिगड़ने की दलील प्रथम दृष्टया सही मानी नहीं जा सकती। एक खाली सड़क पर पीछे से ऑटो अपनी लेन बदलते हुए सड़क के एकदम किनारे आता है और एक जज या व्यक्ति को टक्कर मारकर गिराने के बाद रुकता भी नहीं। यदि संतुलन बिगड़ने से यह दुर्घटना हुई होती, तो ऑटो वाले को टक्कर मारने के बाद रुकना चाहिए था, लेकिन वह टक्कर मारने के बाद आराम से चलता बना। वह तो भला हो कि सीसीटीवी फुटेज में सच सामने आ गया, वरना पुलिस तो इस मामले को सामान्य सड़क दुर्घटना मानकर ही चल रही थी। इस मामले में सीसीटीवी फुटेज की महत्ता एक बार फिर साफ हो गई है, जिसकी मदद से जज को न्याय मिलने की पूरी गुंजाइश है।

पुलिस को जल्द से जल्द पता लगाना चाहिए कि जज की मौत महज एक दुर्घटना है या फिर सोची-समझी साजिश के तहत उनकी हत्या की गई है। जज की मौत को राज्य सरकार ने अगर गंभीरता से लिया है, तो सच्चाई जल्द ही सामने आनी चाहिए। यह पुलिस के लिए भी नाक का मामला होना चाहिए, क्योंकि इस मामले में न्याय बिरादरी पूरी तरह मुस्तैद है। सुप्रीम कोर्ट तक में इसकी गूंज होने वाली है, पूरे देश में वकीलों में चिंता की लहर है। अगर ऐसे अपराधी मनमानी करेंगे, तो कोई न्याय की राह पर कैसे चलेगा? क्या अपराधियों के हिसाब से ही न्याय करने की नौबत आ जाएगी? यह सवाल फिर ताजा हो गया है कि क्या देश में अपराधीकरण में इजाफा हो रहा है? पूरा न्याय हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी स्वयं न्यायपालिका के साथ ही कार्यपालिका और विधायिका की भी है। लोकतंत्र के स्तंभों को मिलकर न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। अपराधियों का दुस्साहस अगर इतना बढ़ गया है, तो माकूल कार्रवाई से उन्हें जवाब मिलना चाहिए। यह समग्रता में भी हमारी व्यवस्था के लिए सोचने का मौका है कि क्या हम अपराधियों के प्रति जरूरत से ज्यादा नरमी नहीं दिखाते हैं? आरोपी ऑटो चालक पहले भी जेल जा चुके हैं, मतलब, जेल जाने के बाद भी अपराधी बाज नहीं आ रहे। ऐसे में, जमानत पर छूटे तमाम अपराधियों के प्रति संवेदना खत्म हो जाती है। अपराधियों को कतई समाज में खुला नहीं छोड़ना चाहिए। कानून की उदारता का फायदा आम आदमी को मिलना चाहिए, लेकिन अपराधी ही उदारता का फायदा उठाते हैं। उन्हें शायद कानून या न्याय बिरादरी की उदारता से ही उम्मीद होगी कि वे अपराध करके या एक जज को निशाना बनाकर भी बच जाएंगे। अब हमारे तंत्र की सार्थकता इसी में है कि वह अपराध या अपराधियों की बुनियाद को जड़ से उखाड़ फेंके।


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