अनुराग का सियासी निवेश-5

हिमाचल के अलावा अन्य राज्यों से संबंधित मंत्री भी आशीर्वाद यात्राओं से गुजरे और यह भाजपा का भीड़तंत्र है

Update: 2021-08-28 05:46 GMT

Divyahimachal .

हिमाचल के अलावा अन्य राज्यों से संबंधित मंत्री भी आशीर्वाद यात्राओं से गुजरे और यह भाजपा का भीड़तंत्र है। जाहिर है हिमाचल भी भीड़तंत्र में फंसा है और एक शासक वर्ग यहां भी पनप चुका है। राजनीतिक दलों के कोनों पर वही धकेले जाते हैं, जिनके न सियासी परिवार और न ही जातीय समीकरण लाभकारी दिखाई देते हैं। ऐसे में जातीय मतगणना से हिमाचल के भी कई भ्रम टूट सकते हैं। खासतौर पर जिस जातीय बादशाहत में मुख्यमंत्री का पद सुनिश्चित करने की अब एक परंपरा बन चुकी है, उसके परिप्रेक्ष्य में नेताओं के शिविर स्पष्ट हैं और यह दोनों दलों के भीतर एक समान है। कांगड़ा के ज्वालामुखी विधानसभा का प्रतिनिधित्व ओबीसी वर्ग की पहचान को खुर्द-बुर्द करने के पीछे काफी हद तक जातीय गठबंधन का राज्य स्तरीय पैमाना ही तो है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने विभिन्न सामाजिक बोर्डों के माध्यम से जातीय समीकरणों को उच्च प्राथमिकता दी, लेकिन यह परंपरा वर्तमान सरकार में नथुने फुला कर बैठी है।

हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम के उपाध्यक्ष पद पर किसी चौधरी नेता का आसीन न होना, आखिर दर्शाता क्या है। इसी तरह सैनी समाज कल्याण बोर्ड के गठन का मसला आज तक निर्णायक दौर से नहीं गुजरा, जबकि बनाए गए तमाम जातीय व वर्गों के कल्याण बोर्डों की नियमित बैठकें तक नहीं हुई हैं। अतीत में इनमें से अधिकांश बैठकों का कांगड़ा में आयोजन, सरकार का आभास पैदा करता रहा है। स्व. वीरभद्र सिंह ने शीतकालीन प्रवास से विधानसभा के शीतकालीन सत्र की लिखावट तक पहुंचने की कवायद से ही सत्ता का स्पर्श कांगड़ा को दिया। इसकी आलोचना हुई, लेकिन भाजपा सरकारों को इन परंपराओं का निर्वहन करना पड़ा। ऐसी संवेदना की रिक्तता में वर्तमान सरकार के मुखिया, जयराम ठाकुर को फिर से इस राज धर्म का पालन व्यापकता में करना होगा। अनुराग ठाकुर ने कांगड़ा के तार और तान छेड़ते हुए, एक तरह से मुख्यमंत्री को रक्षात्मक मुद्रा में लाकर खड़ा कर दिया है। कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार, आईटी पार्क, एनडीआरएफ बटालियन व केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रश्नों के उत्तर देेने के लिए मुख्यमंत्री आज अगर मजबूर हैं, तो इसकी शुरुआत अनुराग ठाकुर की प्रश्नावली से हुई है।
कांगड़ा में आकर अनुराग कितने कांगड़ा मय हुए, इसका अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन हिमाचल सरकार की इस क्षेत्र से दूरियों का हिसाब जरूर बढ़ा गए। यह दीगर है कि जयराम सरकार ने एक साथ तीन नगर निगमों में से एक कांगड़ा के ही पालमपुर को चुना, लेकिन भाजपा को इसके भीतर चुनावी हार क्यों मिली, यह भी तो एक प्रश्न है। ऐसे में आशीर्वाद यात्रा के दौरान कौन घूमता रहा, एक केंद्रीय मंत्री, हिमाचल की राजनीतिक चुनौती या धूमल की विरासत। इस यात्रा को देखा, सुना और महसूस किया गया, लेकिन सोशल मीडिया पर स्कोर बोर्ड टांगने वाले आखिर कौन सी भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। एक वह भाजपा भी है जिसके सामने आपत्तिजनक नारों के उद्घोष दिल्ली में मजमून लिखते हैं और एक यह भाजपा भी है जिसने जयराम के नाम सत्ता की जायदाद लिखी है। युवाओं की बहुतायत में भाजपा जब तक विद्यार्थी परिषद पर मेहरबान है, शिमला की सत्ता का नूर बरसता हे, लेकिन युवा कोष्टकों में गैर विद्यार्थी परिषदवाद पैदा भी तो हो रहा है। दूर बैठी जनता कोविड काल में भाजपा की रैलियां देखे या छीने गए रोजगार को फिर से हासिल करे। आशीर्वाद यात्रा के हर दिन का सितारा चमकता था, लेकिन यह अक्स कहीं हर बार कोविड अस्पताल में ढलता था। इसीलिए आशीर्वाद यात्रा के दौरान जब मीडिया की ओर से पूछा गया कि ऐसे आयोजनों में मास्क क्यों उतर रहे हैं या नेताओं के नाक के नीचे से क्यों मास्क बेपर्दा हो रहे हैं, तो सारी प्रेस कान्फ्रेंस बगलें झांकने लगी। आशीर्वाद यात्रा की भीड़ लगातार पांच दिन बढ़ी, लेकिन इस दौरान 1047 लोग पॉजिटिव हुए और कोविड से 15 मरे भी यानी राज्य में कुल 2054 कोविड पॉजिटिव लोगों के आंकड़े में ये पांच दिन आधे के गुनहगार हैं। क्या हमने सुना कि आशीर्वाद के मंचों पर कोई नेता कोविड मौतों पर आंसू बहा रहा हो। जिसने भी आंसू बहाए, अपनी शोहरत के यादगार तमगे के लिए सब कुछ किया। बुद्धिजीवियों का यह प्रदेश राजनेताओं के आगे कब तक बौना रहेगा।

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