गलती कर रहा अमेरिका

भारत ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के नवीकरण के लिए 450 म‍िलियन डॉलर देने के अमेरिकी फैसले पर ठीक ही कड़ा विरोध दर्ज कराया है। ध्यान रहे, 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता स्थगित कर दी थी।

Update: 2022-09-12 03:15 GMT

नवभारत टाइम्स: भारत ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के नवीकरण के लिए 450 म‍िलियन डॉलर देने के अमेरिकी फैसले पर ठीक ही कड़ा विरोध दर्ज कराया है। ध्यान रहे, 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता स्थगित कर दी थी। उन्होंने कहा था कि वह अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी समूहों पर कारगर कार्रवाई नहीं कर पाया है। ना ही, पाकिस्तान अपने यहां उनके सुरक्षित ठिकाने नष्ट कर पाया है। दिलचस्प है कि उसी पाकिस्तान को अब बाइडेन सरकार आतंकवाद पर अंकुश लगाने की उसकी क्षमता बढ़ाने के मकसद से यह सहायता देने जा रही है।

पाकिस्तान जिहादी आतंकवाद का गढ़ रहा है। उसने ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी को शरण दी थी। उसने अफगानिस्तान पर काबिज होने में तालिबान की मदद भी की। अजीब बात है कि बाइडेन सरकार उसी पाकिस्तान से आज आतंकवाद की नकेल कसने की उम्मीद कर रही है। उसे आर्थिक मदद दे रही है। इससे अमेरिका की सोच और प्राथमिकता पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है। वैसे, अमेरिका ने कहा है कि इस मदद से एफ-16 लड़ाकू विमानों की क्षमता में अतिरिक्त बढ़ोतरी नहीं होगी। लेकिन साथ ही यह भी बताया है कि आतंकवाद विरोधी अभियानों में इन विमानों की हवा से जमीन पर मार करने की क्षमता से मदद मिलेगी। है ना अजीब बात।

बहरहाल, अमेरिका के इस फैसले ने भारत को ही नहीं, स्वतंत्र प्रेक्षकों को भी चौंकाया है। यह सच है कि हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच नजदीकियां काफी बढ़ी हैं। फिर भी आपसी रिश्तों को लेकर दोनों देशों के नजरिये में बुनियादी अंतर है। अमेरिका इस साझेदारी को गठबंधन के संदर्भ में लेता है, जबकि भारत इसे खास क्षेत्रों में साझा हितों पर आधारित ऐसे समझौते के रूप में देखता है, जिससे अन्य क्षेत्रों में अन्य देशों के साथ साझेदारी बनाने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अमेरिका किसी भी देश के साथ रिश्तों में अपने हितों को तवज्जो देता है, लेकिन जब उसका कोई करीबी देश ऐसा करता है तो अमेरिका को वह पसंद नहीं आता। इससे आपसी रिश्तों में तनाव आने लगता है। ऐसे में यह संभव है कि हावी होने की अमेरिकी आदत और स्वतंत्र नीति पर बने रहने की भारत की जिद के चलते कभी भी बात बिगड़ने का खतरा पैदा हो जाए।

जाहिर है, दोनों देशों को अपने रिश्तों की नजाकत समझते हुए सोच-समझकर आगे बढ़ना होगा। मगर फिलहाल पहली जरूरत एफ-16 विमानों के लिए पाकिस्तान को मदद देने के फैसले से उबरने की है। यह समझना होगा कि एफ-16 लड़ाकू विमान हमेशा भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। अगर इतने अहम मसले पर भारत के सुरक्षा हितों को लेकर संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई तो सामरिक साझेदारी के औचित्य पर सवाल उठना कैसे रोका जा सकेगा!

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