अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में जापान की स्थायी सीट का समर्थन कर UN में सुधार के मुद्दे को फिर तेज कर दिया
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में जापान की स्थायी सदस्यता को लेकर वकालत की है
के वी रमेश |
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में जापान की स्थायी सदस्यता को लेकर वकालत की है. सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने इसके संकेत दिए. बाइडेन का यह समर्थन उस समय सामने आया जब उनकी और जापानी प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा (Japanese Prime Minister Fumio Kishida) के बीच वन-टू-वन मीटिंग हुई. बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किशिदा ने कहा, "सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र, जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता के लिए अहम जिम्मेदारी निभाती है, में सुधार करने और उसे मजबूत करने की आवश्यकता है." और साथ ही उन्होंने यह भी खुलासा किया कि बाइडेन ने जापान को "नए सुरक्षा परिषद" का स्थाई सदस्य बनने के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है.
किशिदा ने बताया, "राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका जापान को रिफॉर्म्ड सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य बनने का समर्थन करेगा." बीते कुछ समय से UNSC में नए सदस्य जोड़ने की मांग चल रही है. मांग करने वाले देशों में अफ्रीका के एक देश अलावा भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील वगैरह शामिल हैं. 77 वर्षों के अपने इतिहास में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में केवल दो बार बदलाव हुआ है. और दोनों बार, इस सदस्यता सूची में केवल हल्का-फुल्का परिवर्तन किया गया. 1971 में, ताइवान, जो 'चीन गणराज्य' के रूप में परिषद का हिस्सा था, को निष्कासित कर दिया गया था और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को "वास्तविक" चीन के रूप में परिषद में शामिल किया गया.
चीन ने दूसरी महाशक्ति की जगह ले ली है
1991 में, सोवियत संघ की सीट को रूस को दे दिया गया था. सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है, जो वैश्विक सुरक्षा के मुद्दों पर विचार-विमर्श करता है. इसके पांच स्थाई सदस्यों के पास वीटो पावर है, जिसका मतलब है कि इनमें से कोई भी अपनी पसंद के अनुसार किसी भी प्रस्ताव को अस्वीकार कर सकता है. इसमें 10 निर्वाचित सदस्य होते हैं. जिनका कार्यकाल दो साल का होता है. लेकिन उनके पास वीटो पावर जैसा कोई विशेषाधिकार नहीं होता.
जबकि 1945 में इसकी स्थापना के बाद से दुनिया में काफी बदलाव आ चुका है. 1945 में, संयुक्त राष्ट्र में 51 सदस्य थे, और 1971 में 132 हुए. आज, इसमें 193 सदस्य हैं. 1945 में सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य थे, और वही P-5 आज भी हैं, हालांकि निर्वाचित सदस्यों की संख्या (दो साल के कार्यकाल के लिए) छह से बढ़ाकर 10 कर दी गई. अपनी शुरुआत में, सुरक्षा परिषद ने उस समय की दुनिया के शक्ति केंद्रों के प्रसार को प्रतिनिधित्व किया, जिसमें US अमेरिकी देशो का प्रतिनिधित्व करता था. ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ यूरोप और यूरेशिया का प्रतिनिधित्व करता था, और चीन एशियाई देशों का प्रतिनिधि था.
लेकिन आज दुनिया वैसी नहीं है जैसी 1945 में थी. तब यह विश्व युद्ध के दुःस्वप्न से बाहर आई थी. युद्ध के बाद दो महाशक्तियों का जन्म हुआ, अमेरिका और सोवियत संघ, दोनों एक दूसरे के विरोध में मिलिटरी ब्लॉक (विभिन्न देशों का अपना-अपना गुट) का निर्माण कर रहे थे. सोवियत संघ के टूटने के बाद, दुनिया एकध्रुवीय हो गई, जिसमें अमेरिका एकमात्र महाशक्ति रह गया. अब चीन ने दूसरी महाशक्ति की जगह ले ली है, लेकिन दुनिया अब वैसी नहीं रही जैसी शीत युद्ध के दिनों में थी. अब यह एक बहुध्रुवीय दुनिया है, जिसमें उभरते हुए शक्तिशाली राष्ट्र अपना-अपना दावा पेश कर रहे हैं.
ताजा उदाहरण यूक्रेन संघर्ष का है
ब्राजील, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया जैसे अन्य देशों के साथ भारत, जापान और जर्मनी उभरती शक्तियां हैं. लेकिन किसी भी बदलाव के प्रस्ताव पर जो प्रश्न उठता है वह यह है कि क्या स्थाई सदस्यों को प्राप्त वीटो पावर को जारी रखा जाना चाहिए. आज की दुनिया की बहु-ध्रुवीय प्रकृति न केवल परिषद के पुनर्गठन (विस्तार) की मांग करती है, बल्कि कुछ सदस्यों की असमानता पर भी सवाल उठाती है. क्योंकि कुछ देशों के पास दूसरों की तुलना में अधिक विशेषाधिकार हैं. इसके अलावा, वीटो पावर कई वास्तविक मुद्दों के समाधान को रोकती है, जिसमें वीटो-धारक देश गलती करने वाले सदस्यों की रक्षा करते हैं. ताजा उदाहरण यूक्रेन संघर्ष का है, जिसमें रूस अपने वीटो का उपयोग करके, अपने खिलाफ निंदा और पाबंदी के प्रयासों को रोकने के लिए इस्तेमाल कर रहा है.
38,127 की आबादी वाले लिटिल लिचेंस्टीन ने अप्रैल में वीटो पर बहस शुरू की थी. संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से एक, इस छोटे से देश ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक बुलाने की मांग की, जिसमें सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों द्वारा वीटो के उपयोग के औचित्य पर बहस किया जाना था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो पावर के इस्तेमाल पर सवाल उठाने वाला अमेरिका समर्थित इस प्रस्ताव, जिसे रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों की एक चाल के रूप में देखा गया, को महासभा के समक्ष पेश किया गया. यह प्रस्ताव ऐसे वक्त सामने आया जब रूस ने यूक्रेन पर अपने हमले की निंदा को रोकने के लिए अपने वीटो पावर का उपयोग किया. महासभा ने इसे स्वीकारा, लेकिन इसका केवल प्रतीकात्मक महत्व है. और अब, जब बाइडेन सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए जापान का समर्थन करने की बात कर रहे हैं, इससे नई बहस फिर से शुरू हो सकती है.
सोर्स- tv9hindi.com