कृषि देश की अर्थव्‍यवस्‍था गति तो दे सकती है लेकिन उसका पुनरुद्धार नहीं कर सकती, एक्‍सपर्ट व्‍यू

भारतीय रिजर्व बैंक और उसके गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कृषि क्षेत्र से बड़ी उम्मीद लगा रखी है।

Update: 2020-10-19 02:34 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक और उसके गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कृषि क्षेत्र से बड़ी उम्मीद लगा रखी है। दास का कहना है कि कृषि व संबंधित गतिविधियां ग्रामीण मांग को आवेग देकर हमारी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का नेतृत्व कर सकती हैं। सही बात है। नेतृत्व जरूर कर सकती हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार नहीं कर सकतीं। इसका कारण है कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में कृषि, वानिकी व मत्स्य पालन जैसी संबंधित गतिविधियों का योगदान घटते- घटते 14 प्रतिशत पर आ चुका है, जबकि देश की श्रमशक्ति का 45 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा उसी पर लदा हुआ है। ऊपर कोरोना के चलते गांव लौटे मजदूरों की काम पर वापसी की रफ्तार बहुत धीमी है।

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार गांवों में मनरेगा के तहत काम की मांग जून से सितंबर तक के चार महीनों में क्रमश: 74.2, 73.6, 66.6 व 71.1 प्रतिशत बढ़ गई। जाहिर है कि यह मांग शहरों से लौटे मजदूरों के कारण बढ़ी है। मजदूरों की सप्लाई ज्यादा होने से उनकी मजदूरी नहीं बढ़ पा रही है। यह ग्रामीण मांग के बढ़ने में एक बाधा है। हालांकि, किसानों के दम पर इस साल ट्रैक्टरों की बिक्री पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में जून में 22.4, जुलाई में 38.5 और अगस्त में 74.7 प्रतिशत बढ़ी है।


दोपहिया वाहनों की बिक्री जून में 38.6 और जुलाई में 15.2 प्रतिशत घटने के बाद अगस्त में तीन प्रतिशत बढ़ गई है। इसी तरह उर्वरकों की बिक्री उक्त तीन महीनों में साल भर पहले की अपेक्षा क्रमश: 10.9, 25.4 और 8.1 प्रतिशत बढ़ी है। फिर भी हम ग्रामीण मांग को लेकर बहुत निश्चिंत नहीं हो सकते, क्योंकि देश में कोरोना का कहर धीमा पड़ने के बावजूद अभी खत्म नहीं हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने तो जाड़ों में कोरोना के तेजी से बढ़ने की चेतावनी दे रखी है। यह भी सच है कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में 30 जून से 30 सितंबर के बीच 1,000 से ज्यादा कोरोना मरीजों वाले जिलों में ग्रामीण जिलों का अनुपात 20 से बढ़कर 53 प्रतिशत हो चुका है। याद रखें कि ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य का सारा तंत्र भगवान भरोसे है। वहां कोरोना का प्रकोप बढ़ा तो कटनी से बोआई तक में भारी खलल पड़ सकता है और दूसरी र्आिथक गतिविधियां भी प्रभावित हो सकती हैं।

दूसरी र्आिथक गतिविधियों की भूमिका कोई कम नहीं है। नीति आयोग के आंकड़ों के हिसाब से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 39 प्रतिशत के आसपास है। बाकी 61 प्रतिशत हिस्सा अन्य गतिविधियों का है। यह सही है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जब हमारा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 23.9 प्रतिशत का गोता लगा गया, तब कृषि ही इकलौता ऐसा क्षेत्र था जो 3.4 प्रतिशत बढ़ा था। साथ ही इस बार मानसून औसत से अच्छा रहा है। इसके चलते अनुमान है कि खरीफ फसलों की पैदावार पिछले साल के मुकाबले 0.8 प्रतिशत ज्यादा 1,445.2 लाख टन रहेगी। इसलिए कृषि के मोर्चे पर हम निश्चिंत हो सकते हैं।


सवाल उठता है कि देश में बाकी 84.5 प्रतिशत मांग कहां से जाएगी क्योंकि अर्थव्यवस्था के उद्धार का सारा दारोमदार मांग बढ़ाने पर ही टिका है। मांग नहीं पैदा की गई तो नया निवेश भी नहीं आएगा, क्योंकि उद्योग पहले से ही मात्र 65 प्रतिशत क्षमता पर उत्पादन कर रहे हैं। इस बीच सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के अंतर्गत कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन व खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और प्रशासनिक सुधारों के लिए आठ विकास योजनाएं निर्धारित की हैं। इनके लिए 1.6 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। साथ ही उसने कृषि में निजी पूंजी को खींचने के लिए तीन नए कानून पेश किए हैं। दिक्कत यह है कि पंजाब से लेकर हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इन कानूनों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

फिलहाल, कोरोना की सिहरन और राजनीतिक बेचैनी के बीच गांवों में त्योहारी सीजन दस्तक देने लगा है। किसान धनतेरस से लेकर दशहरा, दीपावली पर नई खरीद से खुशी मनाना चाहता है। पेप्सिको जैसी कंपनी को भी भरोसा है कि त्योहारी सीजन के उभार से स्नैक्स से लेकर जूस और सॉफ्ट ड्रिंक तक की मांग बढ़ जाएगी। खेती-किसानी से निकली इस मांग से अर्थव्यवस्था को थोड़ी गति मिल सकती है। हालांकि, हिंदीपट्टी के गांवों में एक कहावत प्रचलित है कि मूस मोटइहैं, लोढ़ा होइहैं। चूहा मोटा भी हुआ तो आखिर कितना! असली चुनौती यह है कि कृषि और किसानों के बीच स्थायी खुशी कैसे लाई जा सकती है? इसके लिए कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ उसकी सालाना विकास दर सालों-साल तक चार प्रतिशत से ज्यादा रखनी होगी।

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