समझौते ने दिखाई राह

जानकारों के मुताबिक जो बचे हुए छह विवादित स्थल हैं, उन्हें सुलझाना थोड़ा मुश्किल है। जाहिर है, आगे की राह और चुनौतीपूर्ण साबित होने वाली है। लेकिन फिर भी इस समझौते ने अंतहीन से लगते विवादों को सुलझाने की राह दिखाई है।

Update: 2022-03-31 03:42 GMT

नवभारत टाइम्स: जानकारों के मुताबिक जो बचे हुए छह विवादित स्थल हैं, उन्हें सुलझाना थोड़ा मुश्किल है। जाहिर है, आगे की राह और चुनौतीपूर्ण साबित होने वाली है। लेकिन फिर भी इस समझौते ने अंतहीन से लगते विवादों को सुलझाने की राह दिखाई है। ध्यान रहे, नॉर्थ ईस्ट के चार राज्य- नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम- पहले असम का ही हिस्सा थे। अलग होने के समय से ही सीमावर्ती कुछ इलाकों को लेकर इनमें मतभेद रहे, जो कभी सही ढंग से सुलझाए नहीं जा सके। हालांकि सुलझाने के प्रयास जरूर किए गए समय-समय पर।

असम-मेघालय विवाद को ही लें तो 1985 में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया और कैप्टन डबल्यू ए संगमा की पहल पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाय वी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में समिति गठित की गई थी। ऐसे और भी प्रयास हुए, लेकिन ये तमाम प्रयास नतीजा देने में नाकाम रहे। पिछले साल जुलाई से शुरू किए गए ताजा प्रयास अगर कामयाब हो रहे हैं तो उसके पीछे कई फैक्टर हैं। इसके लिए बनाई गई क्षेत्रीय कमिटी ने संबंधित इलाकों का गहन दौरा कर स्थानीय निवासियों से बातचीत के जरिए समस्या की जटिलता को समझा और उन्हें विश्वास में लिया।

दूसरे, एक ही बार में पूरी समस्या को हल करने के बजाय इसे टुकड़ों में बांटकर धीरे-धीरे सहमति बनाते और उसे समझौते का रूप देते हुए आगे बढ़ने की राह अपनाई गई। तीसरी बात यह कि दोनों राज्यों के राजनीतिक नेतृत्व का संपूर्ण समर्थन इन प्रयासों को हर कदम पर उपलब्ध रहा। केंद्र सरकार की ओर से दी गई प्रेरणा भी इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उत्प्रेरक का काम करती रही।

बहरहाल, इस महत्वपूर्ण सफलता के लिए केंद्र और राज्य सरकारें निस्संदेह बधाई की हकदार हैं। लेकिन यह भी याद रखना जरूरी है कि ऐसे समझौतों की असल परीक्षा बाद के वर्षों में इन पर अमल के दौरान होती है। सीमा के दोनों तरफ दोनों राज्यों में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्थानीय आबादी में इस समझौते को लेकर किसी तरह की गलफहमी जड़ न जमाए और इसके प्रति स्वीकार्यता का भाव बना रहे।


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