विवेक के विरुद्ध
केरल में दो महिलाओं की हत्या की ताजा घटना हमारे देश में विकास की उन तमाम अवधारणाओं पर सवाल उठाती है, जिसमें केवल अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को पैमाना बना लिया जाता है
Written by जनसत्ता: केरल में दो महिलाओं की हत्या की ताजा घटना हमारे देश में विकास की उन तमाम अवधारणाओं पर सवाल उठाती है, जिसमें केवल अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को पैमाना बना लिया जाता है और चेतना की कसौटी को हाशिये पर छोड़ दिया जाता है। इस हत्या की वजह बदला या कोई अन्य आम कारण नहीं है, बल्कि समृद्ध होने के लोभ में हत्यारे बलि जैसी झूठी धारणा में क्रूरता की हदों को पार कर गए।
पथानामथिट्टा के एलंथूर गांव में तंत्र-मंत्र और बलि के जरिए अपना मनचाहा हासिल करने की सलाह देने वाले व्यक्ति की मदद लेकर एक दंपति ने दो महिलाओं की हत्या कर दी और उनके शवों को घर में ही दफना दिया। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं मारी गई महिलाओं का मांस भी तो नहीं खाया गया। यों अब तीनों आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं और कानूनन इस अपराध के लिए उनकी सजा तय की जाएगी, मगर यह अपने आप में हैरानी की बात है कि आज भी कैसे कोई इस तरह के अंधविश्वासों में जीता-मरता है कि किसी इंसान की हत्या करने के बाद चमत्कार के जरिए वह धनी बन जाएगा!
माना जाता है कि केरल आमतौर पर एक शिक्षित और वैज्ञानिक चेतना वाला राज्य है, जहां के ज्यादातर लोग रोजमर्रा की जिंदगी में भी प्रगतिशील मूल्यों को अपनाते हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि ऐसे राज्य में भी अंधविश्वास का ऐसा क्रूरतम रूप देखने में आ सकता है। दो महिलाओं की हत्या करते हुए अपराध में शामिल तीन लोगों ने इसके कानूनी अंजाम के बारे में सोचना जरूरी नहीं समझा, यह कानून-व्यवस्था और उसके प्रभाव का मामला हो सकता है। लेकिन इन हत्याओं का जो कारण सामने आया है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बलि के सहारे समृद्धि हासिल करने की पिछड़ी मानसिक अवस्था में जीने वाला व्यक्ति बाकी और क्या सोच सकने लायक होगा।
हाल ही में दिल्ली में भी इसी तरह से छह साल के एक बच्चे की हत्या कर दी गई थी। व्यक्ति के भीतर बिना मेहनत या क्षमता के अपना मनचाहा हासिल करने की ऐसी भूख कहां से पैदा होती है, जो उसे अंधविश्वासों की क्रूर और अज्ञानता की दुनिया में ले जाती है? विवेक से वंचित और सोचने-समझने के स्तर पर बेहद कमजोर ऐसे लोगों की भावनाओं का शोषण कर अंधविश्वास का कारोबार करने वाले तांत्रिकों या बाबाओं को खुली छूट कौन और किस आधार पर मुहैया कराता है?
संविधान के अनुच्छेद 51-ए (एच) के मुताबिक वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद, जांच और सुधार की भावना विकसित करना सभी नागरिकों का दायित्व है। क्या सरकारें और उनके संबंधित महकमे इस दायित्व से मुक्त हैं? अक्सर वामपंथी मूल्यों का हवाला देने वाली केरल की मौजूदा सरकार के लिए यह घटना ज्यादा शर्मनाक होनी चाहिए। वामपंथी दलों के सत्ता में या फिर विपक्ष में भी बेहद प्रभावशाली भूमिका में रहने के बावजूद इस स्तर के अंधविश्वास अगर पल रहे हैं, तो यह एक बड़े विरोधाभास का संकेत है।
अंधविश्वास के नतीजे में अगर कोई जघन्य अपराध की घटना सामने आ जाती है, तो उसमें कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाती है। लेकिन उससे पहले अमूमन हर गांव-शहर में पसरे तांत्रिकों या बाबाओं या तंत्र-मंत्र की गतिविधियां खुलेआम संचालित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती। जबकि ऐसे ही लोग क्रूरतम अंधविश्वास को लोगों के मन-मस्तिष्क में बैठाने के स्रोत होते हैं। सिर्फ कक्षाओं में विज्ञान पढ़ाने से अंधविश्वास नहीं दूर होगा, जब तक कि वैज्ञानिक चेतना के विस्तार के लिए कुछ साहसपूर्ण पहलकदमी न हो।