लावारिस पर्यटन के हादसे
हिमाचल में आपदा प्रबंधन का अध्याय आज भी किसी प्राथमिकता में दर्ज नहीं होता
आठ दिनों से लापता धर्मशाला के दो ट्रैकर अंतत: लाश बनकर मिल गए और इस तरह ढेरों सवाल कफन ओढ़े खड़े हैं। ट्रैकिंग के प्रति बढ़ता उत्साह हिमाचल के पर्यटन को नए परिप्रेक्ष्य में देख रहा है, लेकिन सरकार की नीतियों व योजनाओं में यह रेखांकित होता दिखाई नहीं देता। हर दुर्भाग्यपूर्ण हादसा केवल एक आंकड़ा बनकर रह जाता है। इसी तरह पैराग्लाइडिंग करते दो युवाओं की जान चली गई, लेकिन कोई बड़ा सबक नहीं उभरा। पर्यटन को व्यवस्थित करने की जरूरत है और इसके लिए केवल सरकार ही नहीं, बल्कि समाज, निजी क्षेत्र व पर्यटन से लाभान्वित हर पक्ष को आगे आना होगा। बेशक पूरे प्रदेश की चौकसी नहीं हो सकती, लेकिन व्यवस्थागत इंतजाम तथा बचाव अभियानों का नेतृत्व तो हो सकता है। किसी ट्रैकर को आठ दिनों तक न बचा पाना यह भी दर्शाता है कि हिमाचल में आपदा प्रबंधन का अध्याय आज भी किसी प्राथमिकता में दर्ज नहीं होता।
हर बार लावारिस पर्यटन के हादसों पर एक हल्की सी जांच या खबर तक सीमित होता प्रशासन भी आखिर क्या कर पाएगा, जब तक इसके प्रारूप में हर खतरे से जूझने की क्षमता नहीं होगी। पहले तो पर्यटन को लावारिस होने से बचाना है और दूसरे अति उत्साह में डूबे पर्यटन के खतरों को कम करने की व्यवस्था कायम करनी होगी। हर मौसम लावारिस हो सकता है, लेकिन इसके खिलाफ अलर्ट होने की आवश्यकता का एक केंद्रीकृत मैकेनिज्म स्थापित करना होगा, ताकि लोग नदियों, पहाड़ों और साहसिक खेलों में शरीक होते हुए भी कुछ अहम शर्तों को नजरअंदाज न कर सकें। विडंबना यह है कि पर्यटन विभाग को एक सीमित दायित्व की कठपुतली बना दिया है, जबकि इसके कई आयाम ऐसे हैं जहां सूचनाओं का एक व्यापक तंत्र, इंतजामों की बड़ी परिधि और योजनाओं-परियोजनाओं की निरंतरता के अलावा विस्तृत कॉडर की आवश्यकता है। पर्यटन गतिविधियों के मानक और इसकी विविधता को चिन्हित करने की परिपाटी विकसित करनी होगी। न पर्यटन से संबंधित आंकड़े दुरुस्त हैं और न ही पर्यटक के साथ हिमाचल के रिश्ते परिभाषित हैं। दरअसल हम बदलते पर्यटन की इच्छाओं, अनुभवों और आनंद की पराकाष्ठा को छूने में कहीं चूक कर रहे हैं। जैसे हर ऊल-जुलूल गतिविधि को पर्यटन नहीं मान सकते, वैसे ही हर तरह के पर्यटन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
पर्यटन अगर नदी-नालों में नहाना हो जाए या बिना अनुभव के साहसिक क्रीड़ाओं में शामिल हो जाए तो इसके खतरे हैं। अत: चौकसी, निर्देशन, पंजीकरण और भीड़ से इतर हर पर्यटक को पहचानने की व्यवस्था चाहिए। यह कार्य प्रदेश के प्रवेश द्वारों से शुरू होकर हर डेस्टिनेशन तक निगरानी करे, तो बचाव कार्य हो पाएंगे। प्रवेश द्वारों पर पंजीकरण के साथ हर पर्यटक को ऐप के जरिए निर्देश दिए जाएं तथा उनकी यात्रा की स्थिति पर नजर रखने का नेटवर्क कायम करना होगा। इंतजामों की दृष्टि से धार्मिक पर्यटन को भी सख्त हिदायतों की जरूरत है ताकि नयनादेवी जैसी घटना दोबारा न हो। सुरक्षा की दृष्टि से हर पर्यटक स्थल व उसके आसपास की गतिविधियों का खाका निर्धारित होना चाहिए। आश्चर्य यह कि हर दिन निजी ट्रैवल एजेंसियों, होटल बुकिंग या निजी बसों के मार्फत पहुंच रहे युवा पर्यटकों का अब प्रदेश की किसी सरकारी एजेंसी से राफ्ता नहीं होता, बल्कि हर सैलानी एक रहस्यमय खिंचाव में प्रदेश भ्रमण कर रहा है। उसके इरादे केवल रोमांच को अपने अनुभव में भरना है, इसलिए वह ट्रैकिंग को अनौपचारिक मानकर 'पार्टी समारोह बना लेता है, खड्डों के व्यवहार से अनजान रहते हुए 'सेल्फी प्वाइंट मान लेता है या साहसिक खेलों में पैराग्लाइडिंग को आनंद का आसमान मान लेता है। दरअसल पर्यटन में अनौपचारिक होना एक हद तक आनंद के मूड के लिए सही है, लेकिन राज्य की कोशिश यह होनी चाहिए कि हर अनौपचारिक गतिविधि भी किसी न किसी तरह व्यवस्था की औपचारिकता की निगाह में रहे। इसके लिए पर्यटन विभाग का विस्तार करते हुए कुछ क्षेत्र विशेष प्राधिकरण बनाए जाएं, जहां प्रशासन, पुलिस, वन व अन्य विभागों के समन्वय कायम करते हुए एक टास्क फोर्स बनाई जाए। मौसम संबंधी जानकारियां, ट्रैकिंग व अन्य साहसिक खेलों के निर्देश तथा आवश्यक सूचनाएं ऐप के जरिए लगातार दी जाएं। निर्धारित टै्रकिंग, पैराग्लाइडिंग व जल क्रीड़ा क्षेत्रों में सूचना तंत्र को पुष्ट किया जाए ताकि किसी संकट की स्थिति में पर्यटक हेल्पलाइन से संपर्क कर सके। हिमाचल में पर्यटक को किसी तरह के घातक अनुभव से बचाना है, तो इसके लिए सारे पर्यटन उद्योग को अनुशासित भी करना होगा।
दिव्याहिमाचल