ममता की दुविधा का सबसे बड़ा कारण यह है कि पार्थ कोई आम राजनेता नहीं हैं। वह सरकार में नंबर दो की हैसियत रखते थे और तीन-तीन अहम मंत्रालय उनके जिम्मे था। तृणमूल के संस्थापक सदस्यों में भी वह एक हैं। वह पार्टी की अनुशासनात्मक कमेटी के भी अध्यक्ष रहे हैं। ऐसे वरिष्ठ और महत्वपूर्ण नेता को पार्टी से निकालने का क्या असर होगा, इस पर संभवत: दीदी मंथन कर रही होंगी। हालांकि, इस बीच पार्टी के मुखपत्र जागो बांग्ला के संपादक पद से पार्थ को हटा दिया गया है। मंगलवार को कैबिनेट मंत्री की उनकी गाड़ी भी ले ली गई। जाहिर है, धीरे-धीरे उनसे हर चीज छीनी जा रही है।
इस पूरे घटनाक्रम से तृणमूल की छवि को धक्का लगा है, लेकिन ममता वकीलों से भी राय ले रही हैं। उनकी यह भी एक सोच होगी कि क्या पार्थ के निष्कासन से भाजपा शांत हो जाएगी? शायद ऐसा न हो। अगर पार्थ से इस्तीफा लिया जाता है, तो मुमकिन है कि भाजपा उत्साहित होकर ममता के इस्तीफे की मांग करे। संसद में हमने देखा है, खासकर कांग्रेस के जमाने में, किस तरह भ्रष्टाचार के मसले पर प्रधानमंत्री तक के इस्तीफे की मांग हुई। बोफोर्स मामले में जब तत्कालीन विदेश मंत्री माधव सिंह सोलंकी का इस्तीफा लिया गया, तब विपक्ष और अधिक आक्रामक होकर प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से पद त्यागने की मांग करने लगा था। ममता को अंदेशा है कि यदि पार्थ को बाहर का रास्ता दिखाया, तो संभव है कि राज्य में शुभेंदु अधिकारी से लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उन पर हमलावर हो जाए। यही वजह है कि वह पार्थ चटर्जी के मामले में फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही हैं।
पार्टी महिला अभिनेत्री के घर से पैसे मिलने और पार्थ चटर्जी से जुडे़ मामले को अलग-अलग चश्मे से देख रही है। उसके मुताबिक, पार्थ तो पार्टी सदस्य हैं, लेकिन वह अभिनेत्री नहीं। उसने यह बात स्वीकार भी की है। मगर प्रवर्तन निदेशालय के सामने उसने कथित रूप से यह भी माना है कि वह पार्थ के पैसे रखती थी। इसका मतलब है कि पार्थ उसके निशाने पर हैं। तृणमूल की सोच यह है कि संभव है, पार्थ को 'हनी ट्रैप' करके फंसाया गया हो। हालांकि, कहा जा रहा है कि शिक्षा सचिव ने भी ईडी अधिकारियों के सामने पार्थ का नाम लिया है, जिससे सियासी हवा बदल चुकी है। livehindustan