दरअसल, बागी विधायकों को सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने के मसले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष के साथ-साथ सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। इसके तहत पांच दिनों के भीतर अदालत में सबको हलफनामा दाखिल करना होगा और ग्यारह जुलाई को अगली सुनवाई तक सभी पक्षों को यथास्थिति बहाल रखनी होगी। जाहिर है, इससे एक ओर जहां उद्धव ठाकरे को बागी विधायकों को सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने सहित कुछ फौरी कार्रवाइयों के जरिए हालात को अपने पक्ष में करने के मोर्चे पर थोड़ी मुश्किल पेश आई है, वहीं एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को कुछ और वक्त मिल गया है।हालांकि शिवसेना में इतने बड़े पैमाने पर बगावत की खबर आई थी, तब भी एक तरह से यह साफ था कि बागी विधायकों के इस कदम के पीछे कोई बड़ा आश्वासन है। शुरुआती दौर में ऐसा लगा भी कि एकनाथ शिंदे के गुट का पलड़ा भारी पड़ रहा है और उद्धव ठाकरे अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। लेकिन इसके बाद पिछले कुछ दिनों से उद्धव ठाकरे और उनके पक्ष की ओर से जैसा सख्त रुख सामने आ रहा है, उससे लग रहा है कि बागी गुट का रास्ता शायद आसान नहीं हो।
हालांकि अदालत की ओर से यथास्थिति बहाल रखने के आदेश के बाद संभव है कि कुछ दिनों के लिए उथल-पुथल में थोड़ी नरमी दिखे, लेकिन इतना साफ है कि दोनों पक्षों के बीच जैसा टकराव सामने आ चुका है, उसमें किसी अंजाम तक पहुंचना ही एक रास्ता रह गया है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रकारांतर से इसका संकेत भी दे दिया जब उन्होंने नौ बागी मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की और उनके मंत्रालय छीन लिए। खुद एकनाथ शिंदे के विभाग का कार्यभार सुभाष देसाई को सौंप दिया गया।जाहिर है, उद्धव ठाकरे यही जताने की कोशिश कर रहे हैं कि अड़तीस विधायकों के चले जाने के बावजूद वे आसानी से मैदान छोड़ने वाले नहीं हैं। यों शिंदे गुट ने महाविकास आघाडी सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी है, मगर गठबंधन के अन्य घटक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस फिलहाल उद्धव ठाकरे सरकार को बचाने की कोशिश में हैं। अब शिंदे का गुट अपनी सदस्यता बचाने के साथ किसी तरह भाजपा का समर्थन हासिल कर लेता है तो उद्धव ठाकरे की मुश्किल बढ़ सकती है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देखना यह है कि अगले कुछ दिनों में राज्य की मौजूदा सरकार और बागी गुट के पक्ष में कैसे समीकरण तैयार होते हैं।