क्रोध भी शोध का विषय

Update: 2022-06-14 07:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : संसार में क्रोध भी शोध का विषय है। ताजा शोध में पता चला है कि दुनिया में लगभग 90 प्रतिशत आक्रामक घटनाओं के लिए क्रोध ही जिम्मेदार होता है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन क्रोध को एक नकारात्मक भावना की स्थिति के रूप में परिभाषित करता है, जो आमतौर पर शत्रुतापूर्ण विचारों, शारीरिक उत्तेजना और दुर्भावनापूर्ण व्यवहार से जुड़ी होती है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि क्रोध एक माध्यम है, कंबल की तरह है, जिसके नीचे कुछ न कुछ छिपा होता है। इसलिए शोधकर्ता क्रोध को कंबल-भावना भी कहते हैं। साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, क्रोध के कंबल के नीचे देखना-समझना-सीखना हमारे जीवन में लोगों के साथ हमारे संबंधों को गहरा कर सकता है। हमें अधिक दयालु बना सकता है, हमारे शब्दों या वचन को ज्यादा प्रामाणिक बना सकता है। अक्सर जब हम किसी कारणवश निराश या हताश होते हैं, तो क्रोध का इस्तेमाल करते हैं। मतलब, अगर लोगों की निराशा या हताशा का समाधान किया जाए, तो क्रोध से बचा जा सकता है। क्रोध से बचकर हम आक्रामक या नुकसानदायक घटनाओं से बच सकते हैं। इससे हमारा तन, मन, धन और समय भी बच सकता है।

आज क्रोध व्यापक है। वह हर तरफ वार करता है। जब ज्यादा क्रोध प्रकट होता है, तो हम शारीरिक लक्षणों का अनुभव करते हैं, जैसे मांसपेशियों में तनाव, पेट में जकड़न और अचानक तेज धड़कन इत्यादि। वास्तव में क्रोध ज्यादातर समय अच्छा नहीं होता है। शोधकर्ता इसे नकारात्मक भावना ही मानते हैं, जैसे ईष्र्या, घृणा और उदासी है। हम अपने अनुभव से भी समझ सकते हैं कि क्रोध विस्फोटक, हिंसक और विनाशकारी हो सकता है। चीन की एक कहावत प्रसिद्ध है कि यदि आप क्रोध के समय एक पल के लिए भी धैर्य रखते हैं, तो आप सौ दिनों के दुख से बच जाते हैं। शोधकर्ता मानते हैं कि क्रोध एक आसान प्रक्रिया है, इसलिए अक्सर लोग अपनी बात मनवाने के लिए इसका सहारा लेते हैं। दुनिया में धैर्यपूर्वक व्यवहार करना शुरू से ही मुश्किल रहा है। मनोवैज्ञानिक 100 से अधिक वर्षों से अध्ययन कर रहे हैं कि क्रोध किस तरह शरीर में जहर की तरह काम करता है। वैसे क्रोध भी तर्कसंगत हो सकता है। एक विकासवादी दृष्टिकोण से देखें, तो क्रोध को एक न्यूरो-संज्ञानात्मक अनुकूलन के रूप में सबसे अच्छा समझा जाता है। मतलब, जब हम कोई मदद, बदलाव या कार्रवाई चाहते हैं, तो क्रोध का इस्तेमाल करते हैं।
आज हर तरफ गुस्सा बढ़ रहा है। गैलप की वार्षिक ग्लोबल इमोशन रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में दुनिया पिछले 15 वर्षों में किसी भी समय की तुलना में अधिक दुखी, क्रोधित, चिंतित और तनावग्रस्त जगह हो गई है। स्टैनफोर्ड के मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान विभाग में प्रोफेसर एमेरिटस हैंस स्टेनर बताते हैं कि महामारी ने क्रोध को बढ़ाने में योगदान दिया है। हम क्रोध के जरिये अपनी तमाम समस्याओं का समाधान फटाफट खोज लेना चाहते हैं। दुकान में मौजूद उपभोक्ताओं के गुस्से की भी पड़ताल हुई है, जरूरी नहीं कि गुस्सा दुकान में मौजूद पुराने पनीर की वजह से हो, गुस्सा पार्किंग की जगह, ट्रैफिक, इंतजार की वजह से भी हो सकता है। दरअसल, हमें समग्रता में समझना होगा कि हमें क्रोध क्यों आ रहा है और शासन-प्रशासन को भी देखना होगा कि लोगों में बढ़ता क्रोध कैसे बिना क्रोध किए या बिना क्रोध बढ़ाए कम हो सकता है।
राइटर-निलेशसिंह
सोर्स-livehidnustan

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