वैसे तो पाकिस्तान की औरतें बहुत ही खूबसूरत होती है और हमेशा काले रंग के बुर्के में रहती हैं। लेकिन पाकिस्तान में अफगानिस्तान के बॉर्डर के पास रहने वाली औरतें खूबसूरत होने के साथ-साथ बेहद बिंदास होती हैं।
कलाशा समुदाय की औरतों को भरपूर आजादी मिली है। यहां औरतें बुर्का नहीं बल्कि कलरफुल कपड़े पहनती हैं। वे अपने फैसले खुद लेती हैं और शादी भी अपनी मनमर्जी से ही करती है।
कलाशा समुदाय की औरतों को भरपूर आजादी मिली है। यहां औरतें बुर्का नहीं बल्कि कलरफुल कपड़े पहनती हैं। वे अपने फैसले खुद लेती हैं और शादी भी अपनी मनमर्जी से ही करती है।
इस इलाके की जनसंख्या बेहद ही कम है। यहां पर लगभग पौने 4 हजार लोग ही रहते है। लेकिन यहां की कुछ अजीब परंपरा देखकर ये इलाका काफी मशहूर है।
इस इलाके की जनसंख्या बेहद ही कम है। यहां पर लगभग पौने 4 हजार लोग ही रहते है। लेकिन यहां की कुछ अजीब परंपरा देखकर ये इलाका काफी मशहूर है।
अपनी पसंद की शादी करने के बाद भी यहां की महिलाओं को अगर को गैरमर्द पसंद आ जाए तो वे अपनी शादी तोड़ देती हैं। यहां किसी औरतों को किसी दूसरे मर्द के साथ संबंध बनाने की अनुमति है।
अपनी पसंद की शादी करने के बाद भी यहां की महिलाओं को अगर को गैरमर्द पसंद आ जाए तो वे अपनी शादी तोड़ देती हैं। यहां किसी औरतों को किसी दूसरे मर्द के साथ संबंध बनाने की अनुमति है।
यहां पर त्योहारों में औरतें और मर्द सभी साथ मिलकर शराब पीते हैं। अफगान और पाकिस्तान बॉर्डर पर होने की वजह से खास यहां के लोग अस्त्र-शस्त्र और बंदूकें भी रखते हैं।
यहां पर त्योहारों में औरतें और मर्द सभी साथ मिलकर शराब पीते हैं। अफगान और पाकिस्तान बॉर्डर पर होने की वजह से खास यहां के लोग अस्त्र-शस्त्र और बंदूकें भी रखते हैं।
यहां की औरतें एडवांस होने के साथ ही बाहर का काम भी करती हैं। घर पर वे पर्स और रंगीन मालाएं बनाती हैं और उन्हें बेचने का काम आदमियों का होता है। यहां की महिलाएं भेड़-बकरियां चराने के लिए पहाड़ों पर भी जाती हैं।
यहां की औरतें एडवांस होने के साथ ही बाहर का काम भी करती हैं। घर पर वे पर्स और रंगीन मालाएं बनाती हैं और उन्हें बेचने का काम आदमियों का होता है। यहां की महिलाएं भेड़-बकरियां चराने के लिए पहाड़ों पर भी जाती हैं।
यहां की महिलाएं सजने-संवरने की शौकीन होती हैं। औरतें सिर पर खास रंग की टोपी और गले में रंगीन मालाएं पहनती हैं।
यहां की महिलाएं सजने-संवरने की शौकीन होती हैं। औरतें सिर पर खास रंग की टोपी और गले में रंगीन मालाएं पहनती हैं।
कलाशा समुदाय की परंपरा अन्य जातियों और समुदाय से अलग है। यहां पर किसी की मौत होने पर गम नहीं बल्कि खुशी मनाई जाती है। क्रियाकर्म के दौरान लोग नाचते-गाते हैं। वे मानते हैं कि कोई ऊपरवाले की मर्जी से यहां आया और फिर उसी के पास लौट गया।
कलाशा समुदाय की परंपरा अन्य जातियों और समुदाय से अलग है। यहां पर किसी की मौत होने पर गम नहीं बल्कि खुशी मनाई जाती है। क्रियाकर्म के दौरान लोग नाचते-गाते हैं। वे मानते हैं कि कोई ऊपरवाले की मर्जी से यहां आया और फिर उसी के पास लौट गया।
एक तरफ इस समुदाय के लोग महिलाओं को आजादी देते हैं, तो दूसरी तरफ पीरियड्स के दौरान उन्हें घर से बाहर रहने को मजबूर किया जाता है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस दौरान महिलाओं के घर में रहने या परिवार के लोगों को छूने से ईश्वर नाराज हो जाते है और इससे बाढ़ या अकाल जैसे हालात हो सकते हैं।
एक तरफ इस समुदाय के लोग महिलाओं को आजादी देते हैं, तो दूसरी तरफ पीरियड्स के दौरान उन्हें घर से बाहर रहने को मजबूर किया जाता है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस दौरान महिलाओं के घर में रहने या परिवार के लोगों को छूने से ईश्वर नाराज हो जाते है और इससे बाढ़ या अकाल जैसे हालात हो सकते हैं।
साल 2018 में पहली बार कलाशा जनजाति को पाकिस्तान की जनगणना के दौरान अलग समुदाय माना गया था। कलाशा समुदाय खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में चित्राल घाटी के बाम्बुराते, बिरीर और रामबुर क्षेत्र में रहता है। यहां के लोग मिट्टी, लकड़ी और कीचड़ से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं।
साल 2018 में पहली बार कलाशा जनजाति को पाकिस्तान की जनगणना के दौरान अलग समुदाय माना गया था। कलाशा समुदाय खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में चित्राल घाटी के बाम्बुराते, बिरीर और रामबुर क्षेत्र में रहता है। यहां के लोग मिट्टी, लकड़ी और कीचड़ से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं।