जब शास्त्री ने खुद बोई थी फसल, लेकिन कटानी पड़ी थी ललितादेवी को, पढ़ें क्या हुआ था तब?
देश आज लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी को उनके जन्मदिन पर याद कर रहा है
देश आज लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को उनके जन्मदिन पर याद कर रहा है. लाल बहादुर शास्त्री का जीवन भी माहात्मा गांधी के विचारधारा का अनुकरण करते हुए गुजरा और प्रधानमंत्री पद भी उनके आचार विचार को नहीं डिगा सका. शास्त्री ने बापू की राह पर चलते हुए अपने जीवन में कई मिसालें पेश की जो लोगों के लिए प्रेरणादायी रही. उनके कई कामों ने लोगों को हैरान भी किया. यही वजह रही की उनकी मौत के तीन महीने बाद उनकी पत्नी ललितादेवी शास्त्री (Lalita Shastri) को उनकी बोई फसल काटनी पड़ी.
आज के दौर में किसी बहुत ही बड़े पद पर आसीन व्यक्ति की पत्नी का ऐसा करना हैरान करने वाला लग सकता है, लेकिन उस जमाने में ललिला शास्त्री ने अपनी ही मर्जी से वह फसल काटी और शास्त्री जी के एक और अधूरे काम को पूरा किया था. ललिता खुद शास्त्री की अर्धांगनी होते हुए उनके पीछे जीवन भर और पति के जीवन के बाद भी चलती रहीं.
मुश्किल हालात में था तब देश
शास्त्री जी ने जिस समय भारत के प्रधानमंत्री पद को संभाला उस समय देश चीन के हमले और पंडित नेहरू की मौत के सदमें से उबर ही पाया था. इसके बाद जब 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तब शास्त्री ने जय जवान और जय किसान का नारा दिया. ऐसे हालात में देश में खाद्यानों की कमी बहुत बड़ी समस्या होती जा रही थी.
शास्त्री ने खुद बोई थी यह फसल
देश में हरित क्रांति के बीज बोए जा रहे थे और किसानों को अपने पैदावार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. ऐसे में गांधी शास्त्री ने खुद अपने निवास 10 जनपथ के लॉन में खेती की और फल बोई थी. लेकिन दुर्भाग्य से शास्त्री इन फसलों को पकते हुए खुद नहीं देख सके थे.
फसल पकने से काफी पहले हो गई थी मौत
पाकिस्तान युद्ध के बाद 1966 जब शास्त्री ताशकंद गए थे उस समय किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि वे अब जीवित देश नहीं लौट सकेंगे. ताशकंद में ही उनकी मौत हो गई और वे अपनी फसल नहीं देख सके. शास्त्री की बोई यह फसल तब बड़ी भी नहीं हुई थी. इसके पकने के बाद ही अप्रैल में ललिता शास्त्री ने 10 जनपथ जाकर खुद इस फसल को काटा था.
कार का लोन भी चुकाया था पत्नी ने
यह कोई अकेली घटना नहीं थी जिसका शास्त्री का परिवार चर्चा में आया था. शास्त्री की प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके घरवालों ने उनसे आग्रह किया कि उन्हें अब खुद की कार ले लेनी चाहिए. गांधीवादी शास्त्री को यह पसंद नहीं था, फिर भी शास्त्री ने लोन लेकर कार खरीदी. इस लोन को वे जीते जी चुका नहीं सके थे. उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इस लोन की किस्तों को चुकाया था.
बच्ची की बीमारी और देहांत
ललिता शास्त्री ने जीवन के हर मोड़ और हर परिस्थितियों में अपने पति का साथ दिया. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शास्त्री 9 साल तक जेल में रहे. इस दौरान ललिता शास्त्री ने ही बच्चों का लालन पालन किया. शास्त्री की जेल में रहने के दौरान ही उनकी बेटी बीमारी पड़ी और उसके बाद उसका निधन हो गया था. शास्त्री जी को उसके अंतिम संस्कार के लिए 15 दिन का पैरोल मिला था. लेकिन वे अंतिम संस्कार कर वापस जेल चले गए थे.
शास्त्री की ललिता देवी से शादी 1928 को हुई थी. उसके बाद ललिता देवी ने कदम कदम पर पति के सहयोग किया. उन्होंने शास्त्री की मौत पर भी सवाल उठाए और कहा कि उनके पति को जहर देकर मारा गया है. 1978 में प्रकाशित क्रांत एमएल वर्मा की लिखी किताब ललिता के आंसू में शास्त्री की त्रासत मृत्यु का जिक्र किया है. उन्होंने अपने पति के जाने के बाद उनकी समाजसेवा के भाव को जिंदा रखा और शास्त्री सेवा निकेतन की स्थापना की.