अजीबोगरीब परम्परा जहा साड़ी पहनकर पुरुष करते हैं देवी माँ की पूजा

भारत में ईश्वर की पूजा को लेकर तरह-तरह की परंपराएं (Traditions) निभाई जाती हैं

Update: 2021-11-16 07:44 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  भारत में ईश्वर की पूजा को लेकर तरह-तरह की परंपराएं (Traditions) निभाई जाती हैं . इसमें से कुछ परंपराएं बहुत ही अजीबोगरीब हैं. ऐसी ही एक परम्परा पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के चंदननगर में निभाई जाती है. इस परम्परा के दौरान पुरुष साड़ी पहनकर (Men Wearing Saree) देवी मां की पूजा (Men Worship Goddess) करते हैं. यह परंपरा पिछले 229 साल से निभाई जा रही है.हर साल की तरह इस साल भी चंदननगर (Chandan Nagar Tradition) में यह परम्परा निभाई गई. इस परम्परा के दौरान मां जगधात्री की पूजा (Jagatdhatri Puja) की जाती है. इस दौरान घर की महिलाएं नहीं बल्कि पुरुष साड़ी पहनकर माता की पूजा (Jagatdhatri Puja in Hooghly) करते हैं. इस बार भी चंदननगर का नजारा काफी अद्भुत था. पुरुषों ने साड़ी पहनकर मां जगधात्री की सिंदूर और पान से पूजा-अर्चना की.

पुरुषों ने साड़ी पहनकर किया मां जगधात्री का वरण
बांग्ला संस्कृति में सदियों से देवी मां की पूजा महिलाएं करती हैं, लेकिन मां जगधात्री की पूजा के दौरान अलग ही नजारा देखने को मिला. इस दौरान 13 पुरुषों ने एक साथ साड़ी पहनकर और सिर पर पल्लू डालकर मां जगधात्री का वरण किया. हर साल यह बहुत ही मोहक दृश्य होता है. इस बार भी इस शानदार नजारे को देखने के लिए मंडप परिसर के भीतर तथा बाहर सैकड़ों श्रद्धालु जमा थे.
अंग्रेजों के डर से घर से बाहर नहीं निकलती थीं महिलाएं
इस अनोखी पूजा को लेकर पूजन कमेटी के संरक्षक ने बताया कि आज से 229 साल पहले जब अंग्रेजों का शासन था, तब शाम ढलने के बाद अंग्रेजों के डर के मारे महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं. उस दौरान उनके पूर्वजों ने साड़ी पहनकर मां जगधात्री का वरण किया था. इसके बाद तो यह एक परंपरा चल निकली और तभी से पुरुष साड़ी पहनकर देवी मां का वरण करते हैं.
संरक्षक ने यह भी बताया कि 250 साल पहले बंगाल के राजा कृष्णचंद्र दीवान दाताराम सूर हुआ करते थे. उनकी बेटी का चंदननगर के गौरहाटी में घर था. वहीं पर जगधात्री मां की आराधना होती थी. हालांकि जब उनके घर में आर्थिक तंगी आई तो राजा की बेटी ने इस पूजा को इलाके के लोगों को हस्तांतरित कर दिया. उस दौर में महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा का प्रचलन था. इसी कारण जगधात्री मां के विसर्जन के दिन पुरुष साड़ी पहनकर वरण की प्रक्रिया पूरा करते थे


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