ट्रेन हादसे में गवा चुके थे पैर पर फिर भी नहीं हारी हौसला, पैरालंपिक चैंपियन बनकर लिखी सफलता की कहानी
छत्तसीगढ़ के रहने वाले मनीष पांडे के संघर्ष की कहानी सभी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है. एक ट्रेन हादसे में पैर गंवाने के बावजूद मनीष ने हिम्मत नहीं हारी और कुछ ऐसा कर दिखाया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| छत्तसीगढ़ के रहने वाले मनीष पांडे के संघर्ष की कहानी सभी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है. एक ट्रेन हादसे में पैर गंवाने के बावजूद मनीष ने हिम्मत नहीं हारी और कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है. 2 अप्रैल 2011 का दिन मनीष कभी नहीं भूलेंगे. यह वही दिन था जब भारत और श्रीलंका के बीच क्रिकेट विश्व कप का फाइनल खेला गया था. जिसमें भारत को जीत नसीब हुई थी. लेकिन इस दिन मनीष ने एक हादसे में अपना पैर गंवा दिया
द बेटर इंडिया के मुताबिक जिस दिन मनीष के साथ ये दर्दनाक हादसा घटा, उस दिन मनीष ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा था और घर पहुंचने के लिए तिल्दा स्टेशन पर उतरने की तैयारी कर रहा था. स्टेशन के पास आते ही अन्य यात्रियों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. ऐसे में मनीष को पीछे से धक्का दिया गया और वो चलती ट्रेन से गिर गया. इस हादसे में मनीष का एक पैर कुचला गया. जिसके बाद उनकी जिंदगी बिलकुल बदल गई.
इस हादसे में घायल होने के बाद मनीष को रायपुर ले जाया गया, जो वहां से दो घंटे की दूरी पर था. चिकित्सा उपचार में देरी और खून की कमी ने उनकी हालत को और गंभीर बना दिया. जैसे ही मनीष को अगले दिन होश आया, उसे ये महसूस हुआ कि उसने अपना पैर खो दिया है. लेकिन मनीष ने हार मानने की बजाय अपनी आगे की जिंदगी को चुनौती कर तरह लिया. उन्होंने न केवल अपनी शारीरिक सीमाओं को स्वीकार किया, बल्कि एशियाई खेलों में पदक जीतकर, पैरालंपिक चैंपियन भी बने.
अब मनीष पांडे एक पैरालंपिक चैंपियन हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रतियोगिताओं में कई पदक जीते हैं, जिनमें एशियाई खेल और दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियाई पैरालंपिक खेल इंचियोन भी शामिल हैं. वह कहते हैं कि इस दुर्घटना से पहले, मैं अपने कॉलेज में क्रिकेट और वॉलीबॉल सहित विभिन्न खेल टीमों का एक सक्रिय सदस्य था. बस उस कठिन दौर में मैंने इसे याद किया.
जब मनीष अवसाद के दौर से गुजर रहे थे तब एक कंपनी की मदद से उन्होंने कृत्रिम पैर लगवाया. लेकिन इस पैर की कीमत 6 लाख रुपए थी. ऐसे में मनीष ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए कंपनी को किसी तरह राजी किया. इसके बाद वो हैदराबाद जाकर तैयारियों में लग गए. जहां से उनकी जिंदगी ने करवट बदलनी शुरू की. मनीष ने जून 2014 में अपने पहले अंतर्राष्ट्रीय दौरे में आईपीसी एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स, ट्यूनीशिया में भाग लिया. जहां उन्होंने 200 मीटर में रजत और 100 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता.
इसके बाद में, उन्होंने 100 मीटर की दौड़, लंबी कूद और 4 × 100 मीटर रिले में दक्षिण कोरिया में एशियाई पैरालिंपिक खेलों इंचियोन में भाग लिया. फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मनीष कहते हैं कि वह लोगों को प्रेरित करने में मदद करना चाहते हैं, वह इस दुनिया को विशेष रूप से विकलांगों के लिए बेहतर बनाने की ख्वाहिश रखते है. मनीष ने अपने जोश औऱ जज्बे की बदौलत जो कहानी लिखी वो लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है.