इस महिला को है अजीब बीमारी, 10 लाख लोगों में सिर्फ 5 होते है शिकार, जाने यहां...

बीमारी का अगर देर से पता चले, तो वह और भी गंभीर हो जाती है...

Update: 2021-03-04 08:44 GMT

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नई दिल्ली. बीमारी का अगर देर से पता चले, तो वह और भी गंभीर हो जाती है. ऐसा ही कुछ हुआ न्यूयॉर्क की एक महिला के साथ जिसे एक खास किस्म की बीमारी हो गई थी और इसका पता उसे कई सालों के बाद चला. दरअसल इस बीमारी को टर्की ईयर कहते हैं, जो कि टीबी यानी ट्यूबरक्यूलोसिस की वजह से होती है. टीबी में ना सिर्फ आपके फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है, बल्कि यह आपकी त्वचा को भी नुकासन पहुंचा सकती है. महिला के साथ भी यही हुआ. महिला के कान पर इसका बुरा असर पड़ा और वह एपल जेली की तरह दिखने लगा.

महिला को अपने त्वचा में टीबी होने का पता 50 साल की उम्र में लगा. उसका कान पिछले कई सालों से फूला हुआ था और वह अपने साइज से काफी बड़ा नजर आ रहा आ रहा था. इतना ही नहीं कान का रंग भी बदलकर एपल जेली की तरह हो गया. इस बीमारी में त्वचा का रंग लाल होने के साथ ही वह कठोर भी हो जाती है. JAMA डर्मेटोलॉजी पत्रिका के 3 मार्च के अंक में यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक महिला के कान में इस बीमारी का संक्रमण बचपन में ही शुरू हो गया था और ये समय के साथ-साथ अपना असर बढ़ाता गया और कान का फूल कर लाल और हल्के भूरे रंग का हो गया. महिला ने बताया कि उसके बचपन से ही कान में वह घाव था जो बढ़ता चला गया और इसका नतीजा यह हुआ कि कान से बदबूदार तरल पदार्थ निकलने लगा. इंफेक्शंस डिजीज इन क्लीनिकल प्रैक्टिस मैगजीन में छपी रिपोर्ट की मानें, तो एपल जेली उभरे हुए नोड्यूल को बताता है और ये छूने पर चिपचिपे लगते है.
2008 में शुरू हुआ था इलाज
महिला को शुरू में जब टर्की ईयर बीमारी का पता चला, तो सबसे पहले वह 2008 में इसका इलाज कराने के लिए क्लीनिक गई जहां पहले दो महीने और फिर सात महीने के लिए उसका उपचार किया गया. इस दौरान उसे दी जाने वाली चार एंटीबायोटिक दवाओं को भी कम करके दो कर दिया गया. महिला ने बताया कि उपचार से उसके कान का संक्रमण ठीक हो रहा था, लेकिन फिर उसने इलाज को आगे जारी नहीं रखा और इसी का नतीजा है कि यह बीमारी ठीक नहीं हुई और उसने कान को बुरी तरह प्रभावित किया.
दस लाख लोगों में सिर्फ 5 लोगों को होती है बीमारी
फेफड़ों में संक्रमण के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया ही त्वचा में टीबी के संक्रमण के लिए उत्तरदायी होता है, जिसे माइक्रो बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कहा जाता है. ऐसे हालात बहुत कम पैदा होते हैं, जब बीसीजी का टीका लगवाने के बाद भी टीबी हो जाए. 2016 के केस रिपोर्ट इन डर्मेटोलॉजी के अनुसार वैक्सीन लेने वाले प्रति दस लाख लोगों में सिर्फ 5 लोग ही इस बीमारी का शिकार होते हैं.
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