संगीतकारों के लिए वरदान है ये इमली का पेड़, जानें क्या है मान्यता
संगीत सम्राट तानसेन को पूरी दुनिया जानती है
संगीत सम्राट तानसेन ( Tansen) को पूरी दुनिया जानती है. कहते हैं जब तानसेन गाते थे, तो मौसम भी उनकी गायकी का फैन हो जाता था. उनकी गायकी सुनकर आसमान में बिजली कड़कने लगती थी और बारिश होने लगती थी. ऐसा कहा जाता है कि जब वो राग दीपक गाते तो दीप जल जाते थे. इसीलिए तानसेन को संगीत सम्राट भी कहा जाता है. तानसेन को शास्त्रीय संगीत के निर्माण का श्रेय दिया जाता है. जो भारत के उत्तर (हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत) पर हावी है. तानसेन एक गायक और वादक थे, जिन्होंने कई रागों का निर्माण किया. लेकिन क्या आप जानते हैं उनकी गायकी और सुर में जो दम था उसकी वजह है इमली का पेड़. जी हां यह बात आपको अजीबोगरीब जरूर लग सकती है लेकिन सोलह आने सच है
ऐसा कहा जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन के गायकी का राज एक इमली का पेड़ था. कहा जाता है कि बचपन में तानसेन बोल नहीं पाते थे. उसके बाद उन्हें इमली के पत्ते खिलाए गए. इमली के पत्ते खाने से तानसेन बोलने लगे. इतना ही नहीं उनकी न सिर्फ आवाज आई, बल्कि उसमे इतना दम आ गया कि बादशाह अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया.
पत्तों को खाने से मिलता है तानसेमन का आर्शिवाद
यही वजह है कि ये इमली का पेड़ दुनियाभर के गीत-संगीतकारों के लिए धरोहर से कम नहीं है. इमली के पेड़ की मान्यता है कि मियां सम्राट तानसेन की रूह इस इमली के पेड़ में बसती है. जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है, यही वजह है कि दूर-दूर से लोग आकर इसके पत्ते चबाते हैं.
भारतीय शास्त्रीय संगीत के ख्यातिनाम कलाकर पंडित जसराज इस पेड़ की पत्तियां चबाने का मोह नहीं छोड़ पाए. वे अपने साथ इस पेड़ की पत्तियां ले भी गए, संगीत की समझ रखने वाले और इतिहासकार मानते हैं कि जो इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसे तानसेन का आशीर्वाद मिलता है, कहा जाता है कि ये इमली का पेड़ सन 1400 के आसपास का है. लेकिन एक सदियों पुराने इस पेड़ की पत्तियों को लगातार तोड़ने से यह ठूंठ में तब्दील हो गया था.
अकबर के नौ रत्नों में शामिल तानसेन का निधन आगरा में हुआ था. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उन्हें उनके आध्यात्मिक गुरु मोहम्मद गौस के मकबरे के पास ही दफनाया जाए. ऐसा ही हुआ और जहां उनकी समाधि बनाई गई वहां इमली का पेड़ उग आया. चूंकि तानसेन की गायकी के सभी कायल थे. धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि जो भी पेड़ की पत्तियां चबाएगा उसका गला सुरीला हो जाएगा. यही वजह है कि ये पेड़ करीब 600 साल से आस्था विश्वास का केंद्र बना हुआ है.