ये बादशाह हर दिन 35 किलो खाना खाने के बाद खाता था जहर, वजह जानकर रह जाएंगे दंग

दुनिया में इंसान कमाता ही खाने के लिए है

Update: 2021-03-02 14:10 GMT

दुनिया में इंसान कमाता ही खाने के लिए है. खाने-पीने के शौकीनों का अजीबोगरीब किस्सा तो आपने कई बार सुना होगा. वैसे अपने यहां कहा जाता है कि पहलवानों की भूख एक आम इंसान से ज्यादा होती है. लेकिन क्या आपने कभी ऐसे राजा के बारे में सुना है जो एक दिन में 35 किलो खाना खा लेता हो?

भले ही दुनिया में एक से बढ़कर एक फूडी हैं, लेकिन इस राजा के सभी फेल है. ऐसा इसलिए क्योंकि बादशाह महमूद बेगड़ा को खाने का इतना तगड़ा शौक था कि वे एक दिन में लगभग 35 किलो तक खाना अकेले ही साफ कर देते थे. जी हां, सुनकर बड़ा ही अजीब लगेगा, लेकिन ये ऐसी सच्चाई है जिससे मुंह नहीं फेर सकते.
13 साल की उम्र में संभाली थी सत्ता
गुजरात सल्तनत के शक्तिशाली शासकों में से एक महमूद बेगड़ा अपने खाने के शौक के लिए बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध थे. महज 13 साल की उम्र में गुजरात के सिहांसन पर बैठने वाला यह राजा अपने वंश का सबसे प्रतापी शासक माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन्होंने 52 साल तक सफलतापूर्वक गुजरात पर राज किया था.
ऐसा कहा जाता है कि वह नाश्ते में एक कटोरा शहद, एक कटोरा मक्खन और 100-150 केले खा जाता था. सिर्फ यही नहीं, रात के समय भी उनके तकिए के दोनों तरफ खाना रख दिया जाता था, ताकि अगर उन्हें कभी भी भूख लगे तो वो तुरंत कुछ खा सकें. महमूद बेगड़ा को लेकर हैरान करने वाली बात ये है कि यह बादशाह रोजाना जहर का भी स्वाद लेता था.
बचपन से खिलाया जाता था जहर
कहते हैं कि बेगड़ा को बचपन से ही किसी खास तरह के जहर का सेवन कराया जाता था, जिसके बाद से वह हर रोज खाने के साथ थोड़ा-थोड़ा जहर भी लेते थे. इतिहासकारों के थोड़ा-थोड़ा जहर खाने के कारण उनके शरीर में इतना जहर हो गया था कि अगर उनके हाथ पर कोई मक्खी भी बैठ जाती थी तो वह भी पलभर में दम तोड़ देती थी. इसके अलावा उनके पहने हुए कपड़े कोई नहीं छूता था, बल्कि उसे सीधे जला दिया जाता था, क्योंकि वह सुल्तान के पहनने के बाद जहरीले हो जाते थे.
महमूद बेगड़ा का असल नाम महमूद शाह प्रथम था. इन्हें 'बेगड़ा' की उपाधि 'गिरनार' जूनागढ़ और चम्पानेर के किलों पर फतह करने के बाद मिली थी. माना जाता है कि सीमाओं के विस्तार के दौरान ये जीत हासिल करने पर बंदी राजा से इस्लाम कुबूल करने की मांग करता था और इनकार करने पर राजा को मौत की सजा दे दी जाती थी.


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