72 वर्षीय हैं ये बुजुर्ग दादा, 40 वर्षों से चला रहे ढाबा, जानिए कैसे बने इंसानियत की मिसाल
कहते हैं ना कि इंसान के नेककाम ही दुनिया याद रखती है और उसी से उसका नाम होता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कहते हैं ना कि इंसान के नेककाम ही दुनिया याद रखती है और उसी से उसका नाम होता है। क्योंकि दुनिया को ये फर्क नहीं पड़ता कि किसके पास कितना धन है। दुनिया को इस बात से फर्क पड़ता है कि कौन लोगों की मदद कर रहा है। कौन दुनिया को बेहतर बनाने की ओर बढ़ रहा है। गुजरात के मोरबी शहर के रहने वाले बचुदादा एक ढाबे चलाते हैं। इस ढाबे का नाम ही 'बचुदादा का ढाबा' है। बीते 40 वर्षों से वो लोगों को खाना खिला रहे हैं। उनके ढाबे की एक खास बात ये है कि वहां जो भी आए वो भूखा नहीं जाता। यानी अगर किसी के पास पैसे नहीं है तो खाना फ्री में ही खिलाते हैं वो।
झोपड़ी में रहते हैं और ढाबा चलाते हैं
72 वर्षीय बचुदादा बीते 40 वर्षों से ही मोरबी शहर में रह रहे हैं। वो झोपड़ी में रहते हैं और ढाबा चलाते हैं। उनके यहां खाने की पूरी थाली का रेट तो 40 रुपये है। पर जैसे किसी के पास 10-20 रुपये भी होते हैं, तो बचुदादा उसे भी भरपेट खाना देते हैं। जैसे किसी के पास पैसे नहीं होते तो वो उसे भी खाना खिलाते हैं। उनके ढाबे से कोई शख्स भूखा वापस नहीं जा सकता।
पत्नी का हो गया निधन
40 वर्षों से ढाबा चला रहे हैं ये बुजुर्ग दादाबता दें कि 10 महीने पहले बचुदादा की पत्नी का निधन हो गया। तब से वो अकेले ही ढाबा चला रहे हैं। पहले उनकी पत्नी भी उनका साथ देती थीं। उनकी थाली में तीन स्वादिष्ट सब्जियां, रोटी-दाल-चावल, पापड़ और छाछ भी होता है। जानकारी के लिए बता दें कि ढाबे के आसपास गरीब लोग रहते हैं। उनके पास पैसे कम होते हैं। तो वो कम पैसे में बचुदादा के यहां चले जाते हैं और भरपेट खाना खाते हैं। बचुदादा का मानना है कि उनके यहां से कोई भूखा नहीं जाना चाहिए। सलाम है बचुदादा को।