दुनिया का वो तानाशाह, जो आखिरी समय में हो गया था दयालु, जिसकी मौत पर मारने वाले के आंखों में भी आ गए थे आंसू

इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन की क्रूरता के किस्से जगजाहिर है

Update: 2021-05-01 15:33 GMT

इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन की क्रूरता के किस्से जगजाहिर है। दो दशक से ज्यादा इराक पर राज करने वाले इस तानाशाह का खौफ इतना बढ़ गया था कि एक समय के लिए अमेरिका भी थर्रा गया था। आपने ये बात तो जरूर सुनी होगी कि किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं। सद्दाम हुसैन भी इससे अछूते नहीं थे। इस शख्स ने अपनी ऐसी छवि बना ली थी, जिसके वजह से ये कुछ लोगों के लिए मसीहा था, तो वहीं दुनिया की बड़ी आबादी के लिए वह एक बर्बर तानाशाह था।


बगदाद के उत्तर में स्थित तिकरित के एक गांव में पैदा हुए सद्दाम हुसैन ने नून की पढ़ाई की थी। साल 1957 में उसने बाथ पार्टी की सदस्यता ली, जो अरब राष्ट्रवाद का समाजवादी रूप में अभियान चला रही थी। बता दें कि आगे चलकर साल 1962 में ये अभियान सैन्य विद्रोह का कारण बना। इसी दौरान ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने सत्ता पर कब्जा कर लिया, जिसमें सद्दाम भी शामिल था।

साल 1968 में दोबारा विद्रोह हुआ और 31 साल के सद्दाम ने जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर सत्ता पर कब्जा किया। इसमें सद्दाम की भूमिका अहम थी। इस तरह से धीरे-धीरे सद्दाम की ताकत बढ़ती गई और 1979 में वह खुद राष्ट्रपति बन गया। राष्ट्रपति बनने के बाद सद्दाम ने सबसे पहले शिया और कुर्द आंदोलनों को दबाया। सद्दाम हुसैन ने अमेरिका का भी विरोध किया।

तानाशाह सद्दाम हुसैन ने अपनी अपनी हत्या की साजिश रचने वालों से बदला लेने के लिए इराक के दुजैल शहर में साल 1982 में नरसंहार करवाया। इस नरसंहार में 148 शिया लोगों की हत्या हुई थी। इस मामले में 5 नवंबर 2006 को उसे मृत्युदंड सुनाया गया।

दरअसल, साल 2003 में अमेरिका-ब्रिटेन ने इराक पर जैविक हथियार इकट्ठा करने का आरोप लगाया, जिसका उसने खंडन किया। अमेरिका और ब्रिटेन के नेतृत्व में संयुक्त सेनाओं ने इराक पर हमला किया और अप्रैल-2003 में सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर दिया। ऐसे में सद्दाम हुसैन को अंडरग्राउंड होना पड़ा। इसके बाद सद्दाम की तलाश में ऑपरेशन रेड डॉन शुरू हुआ और 13 दिसंबर 2003 को तिकरित के नजदीक अदटॉर से सद्दाम को पकड़ा गया।

अदालती प्रक्रिया चलने के दौरान सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में बारह अमेरिकी सैनिक लगे थे, जिन्हें 'सुपर ट्वेल्व' कह कर पुकारा जाता था। इनमें से एक सैनिक विल बार्डेनवर्पर ने एक किताब लिखी है, 'द प्रिजनर इन हिज पैलेस, हिज अमैरिकन गार्ड्स, एंड व्हाट हिस्ट्री लेफ़्ट अनसेड' जिसमें उन्होंने सद्दाम की सुरक्षा करते हुए उनके अंतिम दिनों के विवरण को साझा किया है।

विल बार्डेनवर्पर के किताब के मुताबिक, सद्दाम हुसैन अपने आखिरी दिनों में अमेरिकी सिंगर मैरी जे ब्लिज के गाने सुनता, अपनी पसंदीदा सिगार पीता, मफिन खाता और जेल के अमेरिकी सुरक्षाकर्मियों को कहानियां सुनाता। जेल के अंदर वो सुपर ट्वेल्व में शामिल सुरक्षाकर्मियों से दोस्ती कर ली थी। सुपर ट्वेल्व के सैनिकों और सद्दाम हुसैन के बीच आखिरी समय तक अच्छा संबंध रहा। विल बार्डेनवर्पर अपने किताब में लिखते हैं कि जब उन्होंने सद्दाम को उन लोगों के हवाले किया जो उन्हें फांसी देने वाले थे, तो सद्दाम की सुरक्षा में लगे सभी सैनिकों की आंखों में आंसू थे। आपको बता दें कि 30 दिसंबर 2006 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।


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