वो 'मनहूस' गोल्डन गेट ब्रिज, जहां सुसाइड करने लोग हो जाते हैं मजबूर, कानों में गूंजती है आवाज- कूद जाओ...
‘कूद जाओ’, यही वो शब्द हैं, जो पुल के ऊपर केविन हाइन्स (Kevin Hines) के कानों में गूंजी थी और वो पूल से कूद गया
'कूद जाओ', यही वो शब्द हैं, जो पुल के ऊपर केविन हाइन्स (Kevin Hines) के कानों में गूंजी थी और वो पूल से कूद गया. मानसिक बीमारी से जूझ रहा हाइन्स, पुल (Bridge) से 220 फीट नीचे छलांग लगाने के बाद सोचने लगा. उसके मन में सवाल उठा कि समंदर की सतह पर पहले उसका सिर टकराएगा या पैर टकराएंगे? क्योंकि 120 किलोमीटर की रफ्तार में जब उसका सिर समंदर की सतह से टकराएगा तो पानी पर भी पत्थर जैसी चोट लगेगी और अगर वो सिर के बल गिरा तो उसकी तत्काल मौत (Death) हो जाएगी. ऊपर से नीचे गिरते वक्त एक बार उसे पछतावा भी हुआ.
आखिर 220 फीट नीचे 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गिरने के बावजूद हाइन्स बच गया. उसे गंभीर चोटें आई और उसने बताया कि नीचे गिरते ही उसे लगा कि एक शार्क (Shark) उसे खाने के लिए आ गई. उसे हाइन्स ने पूरी नफरत के साथ एक घूसा मारा लेकिन शार्क ने उसे डूबने नहीं दिया. हाइन्स तब तक तैरता रहा, जब तक कोस्ट गार्ड (Coast Guard) की टीम नहीं आ गई और उसका रेस्क्यू (Rescue) नहीं कर लिया गया. ये घटना वर्षों पुरानी है. ये कहानी अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को (San Francisco) की है. अब वो ही हाइन्स गोल्डन गेट ब्रिज (Golden Gate Bridge) पर जाली लगवाने में जुटा है. ताकि कोई भी इंसान इस बदनाम पुल से कूदकर सुसाइड (Suicide) ना कर सके.
आठ दशक के अंदर बना सुसाइड का नंबर-1 स्पॉट
अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को का गोल्डन गेट ब्रिज, सैन फ्रांसिस्को की खाड़ी को प्रशांत महासागर से जोड़ता है. इसकी लंबाई 1 किलोमीटर 600 मीटर है लेकिन जिस पुल को इंजीनियरिंग की बेहद उम्दा कारीगरी माना जाता, उसके साथ उतनी ही मिस्ट्री जुड़ी हुई है. गोल्डन गेट ब्रिज (Golden Gate Bridge) पर लोग सैर-सपाटे के लिए जाते हैं. समंदर से आने वाली ताजी हवा खाने के लिए जाते हैं लेकिन बैगनी रंग में रंगा जाने वाला गोल्डन गेट ब्रिज आठ दशक के अंदर दुनिया का नंबर वन सुसाइड स्पॉट बन गया था.
प्रशांत महासागर पर पानी की सतह से 220 फीट ऊपर बना ब्रिज, जिससे छलांग लगाने के चार सेकेंड के अंदर इंसान पानी को छूता है और तब तक शरीर की रफ्तार 120 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है. यानी ज़िंदगी से हार मान बैठे लोगों की ऐसी दुर्गति, जिसे गोल्डन ब्रिज गेट ने अपने इतिहास में प्रामाणिक तौर पर सोलह सौ बार देखा है. माना जाता है कि जब पुल बादलों में ढका रहा होगा, रात के अंधेरे में सिमटा रहा होगा तो कितने ही लोगों ने पुल से मौत की छलांग लगाई होगी. कोई नहीं जानता कि चंद मिनटों में समुद्र का खारा पानी छलांग लगाने वालों को समंदर की किन अतल गहराइयों में ले गया होगा. उनका पता तक नहीं चला होगा.
गोल्डन गेट ब्रिज पर मनहूसियत का पहला दाग
सैन फ्रांसिस्को के इस पुल से जिस ज्ञात शख्स ने पहली बार छलांग लगाई थी. वो पहले विश्वयुद्ध का जांबाज सिपाही था. इस गोल्डन गेट ब्रिज को मई 1937 में जनता के लिए खोला गया. बताया जाता है कि उसी साल अगस्त का महीने में, जब सैंतालिस साल का रिटायर्ड फौजी हेरॉल्ड वॉबर (Harold B. Wobber) अपने एक प्रोफेसर दोस्त के साथ ब्रिज से गुजर रहा था.
वो रास्ते भर अपने दोस्त से गप करता रहा लेकिन ब्रिज के बीच में पहुंचकर अचानक ही चिल्ला पड़ा, 'यही वो जगह है जहां से मैं दुनिया छोड़ना चाहता हूं. मैं छलांग लगाना चाहता हूं.' हेरॉल्ड वॉबर ने अपना कोट उतारा. उसे बदहवास देखकर उसके साथी प्रोफेसर ने बेल्ट पकड़ ली लेकिन वॉबर ने पुल से छलांग लगा दी, मौत की छलांग. इसके बाद एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ. जो गोल्डन गेट ब्रिज को मनहूसियत के लिए दागदार करता गया.
जब मासूम की खुदकुशी से सिहर उठा अमेरिका
गोल्डन गेट ब्रिज से 1945 में एक मासूम बच्ची ने भी मौत की छलांग लगा दी, जिसे देखकर पूरा अमेरिका सिहर उठा. पांच साल की मर्लिन डेमॉन्ट (Marilyn DeMont) को उसके सैंतीस साल के पिता ऑगस्ट (August) साथ लेकर गोल्डन गेट ब्रिज पर पहुंचे थे. ऑगस्ट ने पुल के बीच में पहुंचकर अपनी नन्ही बेटी को पानी में छलांग लगाने का आदेश दे दिया और बेटी के कूदने के बाद खुद भी पुल से कूदकर खुदकुशी कर ली. बाद में डेमॉन्ट की कार से सुसाइड नोट भी मिला और इसके बाद से ही सवाल उठने लगा कि क्या ये हताश, निराश और जिंदगी से हारे हुए लोगों का कमजोर कदम है? या फिर इस खूबसूरत पुल में ऐसा कोई राज़ छिपा है, जो लोगों को छलांग लगाने के लिए, खुदकुशी के लिए उकसाता है?
ऊंचाई के पीछे का मनोविज्ञान (High Place Phenomena)
जब भी हम ऊंची जगहों पर खड़े होते हैं और नीचे देखने की कोशिश करते हैं तो पूरी तरह से सुरक्षित होने के बावजूद नीचे गिरने का डर लगता है. इस डर को हाल ही में एक रिसर्च के बाद फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग ने नाम दिया है हाई प्लेस फेनोमेना.
फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी की टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि, 'टीम ने 431 कॉलेज स्टूडेंट्स पर सर्वे किया और उनमें से एक तिहाई ने स्वीकार किया कि उन्हें ऊंचाई पर पहुंचने के बाद कम से कम एक बार छलांग लगाकर खुदकुशी करने का विचार मन में आया जबकि जिन लोगों में सुसाइड की टेंडेंसी थी, उन्होंने पूरे यकीन के साथ हां कहा लेकिन हैरानी की बात ये है कि जिन्होंने खुदकुशी के बारे में कभी सोचा ही नहीं, उनमें से भी 50 परसेंट को ऊंचाई से छलांग लगाने का मन किया.
इस सर्वे के बाद जो स्टडी हुई, उसमें पाया गया कि जब एक लड़की ग्रेट कैन्यान की रेलिंग से नीचे झुकी तो उसे खुदकुशी करने की इच्छा हुई और दिमाग ने उसे पीछे हट जाने को कहा. सवाल उठा कि अगर वो पूरी तरह से सुरक्षित थी तो दिमाग उसे पीछे हटने को क्यों कहता है. मनोवैज्ञानिक हेम्स ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि जब भी कोई कहता है कि उसे ऊंचाई से छलांग लगा देने का मन हुआ तो उसने दिमाग से भेजे गए सेफ्टी के सिग्नल का गलत मतलब निकाला. छलांग लगा देने की इच्छा साबित करती है कि उसके अंदर जीने की इच्छा है.
ये शोध कहते हैं कि जब भी इंसान और धरती के बीच फासला होता है. तब-तब इंसान का दिमाग इंसान को जमीन पर आ जाने को कहता है. यानी सुरक्षित रहने का सिग्नल भेजता है. ये ही सिग्नल तब गलत हो जाता है, जब लोग कूद जाते हैं.