जरा हटके: अंतरिक्ष रहस्यों से भरा हुआ है। वैज्ञानिक इन रहस्यों को जानने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे सौरमंडल में स्थित ग्रहों के बारे में अक्सर नए-नए खुलासे होते रहते हैं। अब शोधकर्ताओं ने मंगल ग्रह को लेकर एक खुलासा किया है। माना जाता है कि मंगल ग्रह पर करोड़ों साल पहले पानी था। इसके अलावा पृथ्वी की तरह महासागर भी मौजूद थे। इनमें कई तरह की थ्योरी दी जाती है। कुछ थ्योरी में कहा जाता है कि प्राचीन महासागरों से भी ऊंचे ज्वालामुखी थे।
अब इस थ्योरी को मजबूती मिल रही है। मंगल ग्रह पर स्थित सौरमंडल के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी ओलंपस मॉन्स की तस्वीरों का शोधकर्ताओं की तरफ से विश्लेषण किया है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि पहाड़ के उत्तरी इलाके के पास लाखों साल पहले शिखर से बेहद गर्म लावा निकलने की वजह से भूमि का एक झुर्रीदार टुकड़ा संभवतः बना होगा। आइए जानते हैं कि वैज्ञानिकों ने क्या कहा है?
शोधकर्ता मानते हैं कि पहाड़ के आधार पर लावा बर्फ और पानी में चले गए होंगे जिसकी वजह से भू-स्खलन हुआ। इनमें कई भूस्खलन ज्वालामुखी से 1000 किमी दूर तक हुए हैं। करोड़ों सालों में कठोर होने की वजह से यह सिकुड़ गए होंगे। लेकिन मंगल ग्रह पर इस तरह की धारीदार विशेषताओं का काफी लंबे समय से शोध किया गया है। सबसे बड़ा सवाल है कि इनके निर्माण में पानी की क्या भूमिका थी? वर्तमान समय में मंगल ग्रह एक रेगिस्तानी ग्रह बन चुका है। लाल ग्रह के ध्रुवों पर बर्फ के अवशेष के अलावा पानी नहीं है।
नई तस्वीरों में वैज्ञानिकों ने भूमि के टूटे टुकड़े को देखा है, जिसे लाइकस सुलसी के नाम से जाना जाता है। इसी साल जनवरी में यूरोपीय स्पेस एजेंसी के मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर ने इस तस्वीर को खींची थी। यह बीते दो दशकों से मंगल ग्रह की सतह के नीचे पानी खोज रहा है।
ओलंपस मॉन्स के आसपास की विशाल चट्टानों के संबंध में जुलाई में भूवैज्ञानिक साक्ष्य मिले थे, जिसके बाद यह जानकारियां सामने आई हैं। शोधकर्ता मानते हैं कि वह चट्टानें या फिर ढलान एक प्राचीन तटरेखा के बारे में बताते हैं, जिसमें एक बड़ा गड्ढा है।
शोधकर्ताओं ने एक बयान में बताया है कि विशाल चट्टानों और भूस्खलन की वजह से यह नीचे की ओर खिसकर मैदानी इलाकों तक फैल गया। नई तस्वीरों में दिखाया गया है कि लाइकस सुल्सी ओलंपस मॉन्स से 1000 किमी की दूरी में फैला है। यह एक गड्ढे के पास जाकर रुक जाता है।