शोध में हुआ खुलासा- खतरनाक रेडिएशन को भी सहने की क्षमता रखता है ये जीव, 300 डिग्री से अधिक तापमान में भी नहीं पड़ता असर

पराबैंगनी किरणों से बचना बहुत मुश्किल है। इसके चपेट में आने से त्वचा कैंसर समेत कई बीमारियों के होने का खतरा रहता है।

Update: 2020-10-24 15:33 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों से बचना बहुत मुश्किल है। इसके चपेट में आने से त्वचा कैंसर समेत कई बीमारियों के होने का खतरा रहता है। लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि धरती के सबसे कठोर जीव कहे जाने वाले 'वॉटर बीयर' को इन किरणों से किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है। अजीब तरह का दिखने वाले इस जीव को टार्डिग्रेड्स या मॉस पिग्लेट्स के नाम से भी जाना जाता है।

आमतौर पर इंसान 35 से 40 डिग्री के तापमान में ही परेशान हो जाता है, वहीं ये जीव 300 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान को सहन कर सकता है। इतना ही नहीं ये जीव अंतरिक्ष के ठंड और मरियाना ट्रेच जैसे भारी दबाव वाले क्षेत्रों में भी जीवित रह सकता है। इन सब बातों का खुलासा भारत में ही हुए एक शोध में हुआ है।

भारतीय शोधकर्ताओं को इस जीव के अंदर एक नया जीन मिला है, जिसे 'पैरामैक्रोबियोटस' कहा गया है। पैरामैक्रोबियोटस एक सुरक्षात्मक फ्लोरोसेंट ढाल है, जो आल्ट्रा वॉयलेट रेडिएशन का विरोध करता है। यह जीन हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर उसे हानिरहित नीली रोशनी के रूप में वापस बाहर निकालता है। वहीं सामान्य जीव इन हानिकारक किरणों के बीच महज 15 मिनट तक ही जिंदा रह सकते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के बायोकेमिस्ट हरिकुमार सुमाने अपने रिसर्च पेपर में लिखा है कि हमारे अध्ययन में यह पता चला है कि 'पैरामैक्रोबियोटस' के नमूने यूवी प्रकाश के तहत प्राकृतिक प्रतिदीप्ति प्रदर्शित करते हैं, जो यूवी विकिरण की घातक खुराक के खिलाफ रक्षा करता है।

शोधकर्ताओं की माने तो इस जीव के 'पैरामैक्रोबियोटस' को निकालकर अन्य जीवों में भी ट्रांसफर किया जा सकता है। ऐसा करने से अन्य जीव भी खतरनाक किरणों और रेडिएशन के बीच जीवित रह सकते हैं। हालांकि, अन्य देशों के एक्सपर्ट इस स्टडी को अधूरा मान रहे हैं। अलग-अलग देशों के वैज्ञानिकों के इस अध्ययन को लेकर अलग-अलग मत हैं।





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