अमेरिका से जॉब छोड़कर देश लौटे शख्स ने खरीदी 20 गाय, अब सालाना करते हैं करोड़ों की कमाई

कई बार लोग अपने पैशन को फॉलो करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं. लेकिन

Update: 2021-05-18 13:15 GMT

कई बार लोग अपने पैशन को फॉलो करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं. लेकिन हम बेहद ही कम बार देखते हैं कि कोई व्यक्ति विलासिता का जीवन छोड़कर अपनी जड़ों की ओर लौटता है. कुछ ऐसा ही एक आईआईटी के पूर्व छात्र के साथ हुआ, जब वह अमेरिका में बड़ी कंपनी में काम करने के बावजूद सब छोड़कर वापस अपने देश लौट आया.

एक पूर्व इंजीनियर किशोर इंदुकुरी ने आईआईटी खड़गपुर से अपना ग्रैजुएशन पूरा किया और फिर मास्टर डिग्री व पीएचडी करने के लिए अमेरिका निकल गया. वहां पर पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे अमेरिका की बड़ी टेक कंपनी में हाई क्लास पेमेंट वाली नौकरी मिली. इसके बावजूद उसे संतुष्ट नहीं था, वह अपने साधारण जीवन में लौटने के लिए तरस रहा था.
मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी से अपनी मास्टर्स और पीएचडी पूरी करने के बाद किशोर इंदुकुरी ने इंटेल में छह साल तक नौकरी की. इसके बावजूद नाखुश होने पर किशोर ने अपनी अमेरिकी नौकरी छोड़ दी और अपने गृहनगर कर्नाटक में भारत लौट आए. लेकिन जीवन में हमेशा एक टर्निंग प्वाइंट होता है जहां किसी की जिंदगी बदल देती है.
इसके बाद जब किशोर हैदराबाद गए, तो वहां उन्होंने देखा किया कि शहर में सुरक्षित और स्वास्थ्यकर दूध के कुछ ही विकल्प हैं. उन्होंने तुरंत एक बिजनेस आइडिया के बारे में सोचा और 2012 में सिर्फ 20 गायों के निवेश के साथ अपनी खुद की डेयरी शुरू की. उन्होंने और उनके परिवार ने खुद गायों का दूध निकालना शुरू किया और सीधे ग्राहकों के घर तक ऑर्नगैनिक दूध पहुंचाया. आखिरकार, उन्होंने दूध देने के समय से लेकर अपने ग्राहकों तक पहुंचने तक दूध की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए एक इंस्टाल-फ्रीज-स्टोर सिस्टम में निवेश किया.
पूर्व इंजीनियर किशोर इंदुकुरी का डेयरी फार्म, जिसका नाम उन्होंने अपने बेटे सिद्धार्थ के नाम पर 'सिड्स फार्म' रखा. 2018 तक 6,000 से अधिक ग्राहक थे और हैदराबाद और उसके आसपास डिलीवरी कर रहे थे. आज की तारीख में, लगभग 44 करोड़ रुपये का सालाना आय प्राप्त कर रह हैं. वह सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि जैविक दूध उत्पाद दही और घी बेचते हैं. सिड का फार्म अब प्रतिदिन लगभग 10,000 ग्राहकों को डिलीवर करता है. इसलिए वह आज भी कहते हैं कि कभी भी अपने जड़ों को नहीं छोड़ना चाहिए.
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