ताजमहल नहीं, यह 'मकबरा' है प्यार की पहली निशानी, जानिए किसने करवाया था निर्माण
इस दुनिया में कई ऐसे प्यार करने वाले हुए, जिनकी चर्चाएं आज तक होती है
इस दुनिया में कई ऐसे प्यार करने वाले हुए, जिनकी चर्चाएं आज तक होती है. कुछ लोगों ने तो अपने प्यार के लिए ऐसा किया, जिसे दुनिया कभी भूल नहीं सकती. क्योंकि, उनके प्यार की निशानी आज भी लोगों के मौजूद हैं और हमेशा उसकी चर्चा होती है. 'तामजहल' का नाम तो सबने सुना है. साथ ही ये भी जानते हैं कि ये एक प्यार की निशानी है. कई लोगों का मानना है कि ताजमहल प्यार की पहली निशानी है. लेकिन, आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि ताजमहल नहीं बल्कि प्यार की पहली निशानी एक निजामुद्दीन में हुमायूं के मकबरे के पास बना एक मकबरा है, जिस कवि रहीम ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था. तो आइए, जानते हैं इसके बारे में कुछ दिलचस्प बातें…
जानकारी के मुताबिक, 1958 में कवि रहीम ने निजामुद्दीन में हुमायूं के मकबरे के पास अपनी पत्नी मह बानो के लिए एक मकबरा बनवाया था. इस मकबरे को 'रहीम का मकबरा' के नाम से जाना जाता है. उस मकबरे को प्यार के वास्तुशिल्प प्रतीक के रूप में भी पहचान मिली थी. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि शाहजहां इसी मकबरे से प्रेरित हुए थे और 1632 में अपनी पत्नी की याद में ताजमहर बनवाया था. कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि सन 1627 में जब कवि रहीम की मौत हो गई तो उनके पार्थिव शरीर को इसी मकबरे में रखा गया था.
'रहीम का अंतिम विश्राम स्थल'
रिपोर्ट के अनुसार, यही मकबरा कवि रहीम का अंतिम विश्राम स्थल भी बन गया था. लिहाजा, इस मकबरे का नाम 'रहीम का मकबरा' रखा गया. इसलिए, कहा जाता है कि प्यार की पहली निशानी ताजमहल नहीं बल्कि 'रहीम का मकबरा' है. यहां आपको बता दें कि इस मकबरे के आस-पास 'अफसरवाला मकबरा', 'अरब सराय', 'नाई का मकबरा समेत कई और भी महत्वपूर्ण स्मारक बने हैं.