आइये जानते है की आखिर इंसान खुद को गुदगुदी क्यों नहीं लगा पाता
इंसान खुद को गुदगुदी क्यों नहीं लगा पाता
जनता से रिश्ता वेब डेस्क न्यूज़ :- जब कोई किसी को गुदगुदी लगाता है तो इंसान बहुत जोर से हंसता है. गुदगुदी लगाने का मजाक लोग बच्चों के साथ भी कर लेते हैं और बूढों के साथ भी. कई बार तो अगर कोई कीड़ा हमेरा शरीर पर चलने लगता है तो हमें गुदगुदी मेहसूस होने लगती है. मगर क्या आपने कभी गौर किया है कि हम अपने ही हाथों से खुद को ही गुदगुदीनहीं लगा पाते?
मुमकिन है कि आपके मन में ये सवाल उठा होगा कि आखिर इंसान खुद को ही गुदगुदी (why do we feel ticklish) क्यों नहीं लगा पाता? ये भी मुमकिन है कि आपने कभी इस बारे में सोचा ही ना हो और आज जब हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं तब आपका ध्यान इस ओर गया हो. तो चलिए आपको इस सवाल का जवाब देते हैं जो लगने में तो मामूली ही है मगर काफी अहम है.
दिमाग दे देता है पहले से सूचना
पहले तो जान लीजिए कि हमें गुदगुदी (tickle) क्यों मेहसूस होती है. हमारे शरीर पर सैंकड़ों बाल हैं. जब शरीर पर कोई जीव या इंसान का हाथ पड़ता है तो दिमाग हमें बता देता है कि शरीर पर कुछ है. गुदगुदी मेहसूस करने के लिए सरप्राइज एलिमेंट की बहुत जरूरत होती है. जब हम खुद से ही गुदगुदी खुद को करते हैं तो दिमाग पहले से ही स्किन को सिग्नल भेज देता है कि गुदगुदी लगने वाली है. ऐसे में वो सरप्राइज एलिमेंट खत्म हो जाता है और इंसान को गुदगुदी नहीं लगती. मगर जब कोई और शख्स हमें गुदगुदाता है तो दिमाग ये सिग्नल पहले से नहीं भेज पाता. दिमाग अपनी तरफ से मांसपेशियों को पूरा प्लान बता देता है जब हम खुद से खुद को गुदगुदी करने के बारे में सोचते हैं.
अगर खुद से करने पर मेहसूस होती गुदगुदी तो क्या होता?
गुदगुदी मेहसूस होने के कारण दिमाग हमें कई खतरों से भी बचा लेता है. जब कीड़े-मकौड़ों के शरीर पर रेंगने का एहसास होता है तो हमें पता चलता है कि हमें उन्हें तुरंत शरीर से हटाना है. अगर खुद से गुदगुदी करने से भी हमें उसी प्रकार मेहसूस होता तो दिमाग फर्क ही नहीं कर पाता कि किस गुदगुदी से हमें खतरा है और किससे नहीं. ऐसे में शरीर को बचाने की प्रक्रिया में खलल पड़ सकता था