हम सभी जानते हैं कि मेडिकल साइंस (Medical Science Invention) के कुछ अहम आविष्कारों में से एक है एनेस्थीसिया. इसकी वजह से ही इंसान की बड़ी से बड़ी सर्जरी हो, उसकी घबराहट थोड़ी कम रहती है. वो न तो ऑपरेशन के दौरान दर्द (Pain Releiving During Surgery) महसूस करता है और न ही उस प्रक्रिया को देख पाता है. सोचिए, जब एनेस्थीसिया नहीं रहा होगा, तो भला ऑपरेशन के दर्द को कैसे झेलते होंगे मरीज़ और डॉक्टर इसे अंजाम कैसे दे पाते होंगे?
एनेस्थीसिया (Anesthesia) भले ही अब आया हो, लेकिन इंसान के शरीर में तरह-तरह की व्याधियां पहले से ही मौजूद थीं. जब डॉक्टर किसी बीमारी का इलाज डॉक्टर को पता हो, तो भला वो मरीज़ को तड़पता कैसे छोड़ सकता है. ऐसे में पुराने ज़माने के डॉक्टर सर्जरी तो करते ही थे, लेकिन एनेस्थीसिया की जगह कुछ अलग किस्म की चीज़ों का इस्तेमाल करके मरीज़ के दर्द में राहत पहुंचाते थे.
ऐसे होती थी एनेस्थीसिया के बिना सर्जरी
बात करें 1100 के दशक की, तो डॉक्टर्स ऑपरेशन से पहले ओपियम और मैंड्रेक जूस में डूबे हुए स्पॉन्ज मरीज़ के शरीर पर लगाते थे. इस तरह से उन्हें दर्द से आराम मिलता था. रोमन अभिलेखों के मुताबिक मध्यकालीन समय में सर्जरी के दौरान मरीज़ को राहत देने के लिए ड्वाले (dwale) नाम का मिक्सचर तैयार किया जाता था. जंगली सुअर के बाइल, ओपियम, मैंड्रेक जूस, हेमलॉक और सिरका मिलाकर बनाए गए इस जूस का इस्तेमाल करके मरीज़ को सर्जरी से पहले सुला दिया जाता था. 1600 के आसपास यूरोप में ओपियम और एल्कोहॉल को मिलाकर दर्दनाशक जूस बनाया गया. इस तरह की चीज़ों के इस्तेमाल के बाद डॉक्टर को अपनी कुशलता दिखाते हुए कम से कम वक्त में सर्जरी खत्म कर देनी होती थी. लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त के डॉक्टरों का खास समय के अंदर कुशलता से अपना काम खत्म करना सबसे जरूरी था.
19वीं सदी में आया सर्जिकल एनेस्थीसिया
आधुनिक एनेस्थीसिया 19वीं सदी के बीच यूरोप और अमेरिका में आया. उस समय सिज़ेरियन ऑपरेशन और एम्पटेशन जैसे ऑपरेशन कम होते थे, क्योंकि इसे करने वाला कौशल कम डॉक्टरों के पास था. उस समय ज्यादातर दांतों के ऑपरेशन होते थे, क्योंकि इसमें रिस्क और दर्द कम था. पहले वैज्ञानिकों ने डिस्टिलिंग एथेनॉल और सल्फ्यूरिक एसिड को मिलाकर सूंघने वाला एनेस्थीसिया बनाया. सबसे पहली एनेस्थेटिक सर्जरी साल 1846 में हो पाई, जब एक शख्स के गले से बिना किसी दर्द के ट्यूमर निकाला गया. उसे बेहोश करने के लिए गैस का इस्तेमाल किया गया था. 1848 में क्लोरोफॉर्म के ज़रिये दर्द को दूर किया जाने लगा. धीरे-धीरे ये एक्सपेरिमेंट्स बढ़ते-बढ़ते मॉडर्न एनेस्थीसिया तक पहुंचे.