जानें आखिर क्यों मनाया जाता है हेलोवीन पर्व और क्या है इसकी मान्यताएं
पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनकी तिथि पर दान-पुण्य का कार्य किया जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हाल ही पितृपक्ष समाप्त हुआ है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनकी तिथि पर दान-पुण्य का कार्य किया जाता है। साथ ही उनकी प्रसन्नता के लिए लोगों को भोजन भी कराया जाता है। कहते हैं कि इससे पुरखों की आत्मा प्रसन्न होती है और सुख-समृद्धि का आर्शीवाद देती है। ठीक ऐसा ही पर्व है पश्चिमी देशों में मनाया जाने वाला हेलोवीन पर्व। हालांकि यह थोड़ा डरावना पर्व माना जाता है और इसे लेकर कई तरह की मान्यताएं भी हैं। तो आइए जानते हैं हेलोवीन कब है और इसे आखिर मनाते क्यों हैं? साथ ही इससे जुड़ी अन्य रोचक बातें….
हेलो एक पुराना शब्द है इसे सेंट्स के लिए प्रयोग किया जाता था। यह सेंट्स के लिए नया साल माना जाता था। लेकिन चौथी सेंचुरी के दौरान शहीदियों की याद में यह पर्व मई-जून की शुरुआत में मनाया जाता था। आठवीं सदी में पॉप क्रगौरी द थर्ड ने इसे 1नवंबर को मनाना शुरू किया। वक्त आगे बढ़ा और 16वीं सदी के रिफॉरमेशन के बाद हेलोवीन और ऑल सेंट्स डे को इंग्लैंड में पूरी तरह भुला दिया गया। लेकिन स्कॉटलैंड और आयरलैंड में काफी प्रचलित था। मानते हैं कि यह वह दिन होता है जब स्प्रिुचअल दुनिया और हमारी दुनिया के बीच की दीवार काफी कमजोर हो जाती है। इससे भटकी हुई आत्माएं धरती पर आ जाती हैं।
गैलिक परंपरा को मानने लोग एक नवंबर को अपना न्यू ईयर मनाते हैं। लेकिन इस दिन से एक दिन पहले की रात यानी कि 31 अक्टूबर की रात को हेलोवीन पर्व के नाम से मनाते हैं। इस दिन लोग डरावने कपड़ों में नजर आते हैं। मान्यता है कि इस दिन जब स्प्रिचुअल दुनिया और हमारी दुनिया की दीवार काफी कमजोर हो जाती है तब अतृप्त या फिर बुरी आत्माएं धरती पर प्रवेश करती हैं और वह इंसानों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करती हैं। इसीलिए इस दिन घर के बाहर कद्दू में डरावनी आकृति बनाकर उसमें मोमबत्ती जलाकर रख देने की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि इससे बुरी आत्माएं घर में प्रवेश नहीं कर पातीं और न ही इंसानों को कोई नुकसान पहुंचा पाती हैं। हेलोवीन पर घर के बाहर भी डरावनी डेकोरेशन की जाती है। लोग कपड़े भी डरावने ही पहनते हैं। मान्यता है कि इस दिन घर के बाहर की गई डेकोरेशन को बिल्कुल भी खराब नहीं करना चाहिए। अन्यथा परिणाम बुरा हो सकता है।
एक तरफ जहां हेलोवीन के दिन अतृप्त यानी कि बुरी आत्माओं के धरती पर प्रवेश की बात की जाती है। वहीं इस दिन पूर्वजों के आगमन की भी बात को स्वीकारा गया है। मानते हैं कि इस दिन फसल का आखिरी मौसम होता है। इस दौरान जब हेलोवीन का पर्व मनाया जाता है तब पूर्वजों की आत्माएं भी फसल की कटाई में मदद करने आती हैं। साथ ही खुद के प्रति अपनों का प्यार और स्नेह देखकर उन्हें खुश रहने का आशीर्वाद देती हैं।
इस दिन लोग कद्दू को खोखला करके उसमें डरावने चेहरे बनाते हैं और उसके अंदर जलती हुई मोमबत्ती रख देते हैं। ताकि अंधेरे में ये डरावने दिखें। कई देशों में ऐसे हेलोवीन को घर के बाहर अंधेरे में पेड़ों पर लटका दिया जाता है। त्योहार खत्म होने के बाद कद्दू को दफना दिया जाता है। हेलोवीन के दिन कद्दू से बनीं मिठाईयां और कैंडीज खाना शुभ माना जाता है।
हेलोवीन को लेकर पश्चिमी देशों में एक लोकप्रिय कहानी प्रचलित है। इसके मुताबिक कंजूस जैक और शैतान आयरिश 2 दोस्त थे। कंजूस जैक शराबी था। एक बार उसने आयरिश को अपने घर बुलाया, लेकिन उसने आयरिश को शराब पिलाने से मना कर दिया। वह उसे कद्दू देने लगा, लेकिन बाद में कद्दू के लिए भी उसने मना कर दिया। आयरिश जैक से नाराज होकर कद्दू पर डरावनी शक्ल बनाकर उसमें मोमबत्ती लगाकर बाहर पेड़ पर टांग देता है। जैक इसे देखकर डर जाता है। तब से दूसरे लोगों के लिए सबक के तौर पर इस दिन जैक-ओ-लालटेन का चलन शुरू हो गया। इसे लेकर यह भी मान्यता है कि यह लालटेन पूर्वजों की आत्माओं को रास्ता दिखाने और बुरी आत्माओं से रक्षा करने का भी प्रतीक है।
हेलोवीन पर लोग डरावनी वेशभूषा के साथ पार्टी करते हैं। इस दिन दिन दोस्त और परिवार के कई लोग मिलकर कई गेम खेलते हैं। इन्हीं में से एक गेम है एप्पल बोबिंग। इस गेम में पानी के टब में एप्पल डाल दिए जाते हैं। जो व्यक्ति पानी से इन एप्पल को बाहर फेंक पाता है, वह विनर कहलाता है। इसके अलावा हेलोवीन के दिन बच्चे कद्दू जैसी आकृति के बैग्स लेकर लोगों के घर जाते हैं और ट्रिक्स ऐंड ट्रीट्स गेम खेलते हैं। इसमें वह घर की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं और घर के सदस्यों द्वारा बच्चों को कैंडीज और केक खिलाया जाता है। मान्यता है ऐसा करने से घर और उसमें रहने वाले लोगों पर बुरी आत्मा का खतरा नहीं मंडराता।