जानिए उन प्रसिद्ध स्मारकों के बारे में जिसे बनवाया है महिलाओं ने...

पुराने जमाने में महिलाएं इतनी सशक्त नहीं थीं जितनी आज हैं। आज की महिलाएं बाहर निकल कर काम कर रही हैं

Update: 2021-10-24 15:13 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |    पुराने जमाने में महिलाएं इतनी सशक्त नहीं थीं जितनी आज हैं। आज की महिलाएं बाहर निकल कर काम कर रही हैं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था। इतिहास में भी हमने कई वीरों की गाथा सुनी या पढ़ी है, जिसमें बहुत कम शक्तिशाली वीरांगनाओं के नाम आते हैं। युद्ध स्थल पर भी पुरुष जाते थे और महिलाएं घर में ही रहती थीं। भारत में ऐसे कई स्मारक हैं जिनका निर्माण भी राजाओं और राजकुमारों द्वारा किया गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस जमाने की महिलाओं ने हमारे देश के कुछ प्रसिद्ध स्मारकों को बनाया है? जी हां, देश में कुछ ऐसे स्मारक हैं जहां आप घूम कर आए होंगे लेकिन आपको ये नहीं पता होगा कि इन स्मारकों को महिलाओं ने बनवाया है। इसी कड़ी में आइए जानते हैं भारत के उन प्रसिद्ध स्मारकों के बारे में, जिन्हें महिलाओं ने बनावाया है....

इतिमद-उद-दौला, आगरा
आगरा के ताज महल के बारे में सबको पता होगा। इसे किसने, कब और किसके लिए बनवाया गया ये सब जानते होंगे, लेकिन आगरा में ही एक मकबरा है ''इतिमद-उद-दौला'' जिसके बारे में कम लोग ही जानते होंगे। काफी मेहनत से तैयार किया गया यह मकबरा एक बेटी की अपने पिता को श्रद्धांजलि है। 1622-1628 के बीच महारानी नूरजहां ने अपने पिता मीर गयास बेग के लिए संगमरमर का मकबरा बनवाया था। ये देश का पहला संगमरमर का मकबरा है। इसी से प्रेरित होकर शायद नूरजहां के बेटे शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज के लिए ताज महल बनवाया था।
हुमायूं का मकबरा, नई दिल्ली
दिल्ली स्थित हुमायूं के मकबरे के बारे में आपने जरूर सुना और पढ़ा होगा। कई लोग गए भी होंगे, लेकिन क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि इसे किसने बनवाया होगा? अगर नहीं तो आज जान लीजिये। इसे हाजी बेगम या हमीदा बानो बेगम ने 1565-72 में बनाया था। यह स्मारक भारत में भारतीय मोटिफ्स के साथ फारसी वास्तुकला के फ्यूजन से बना पहला उदाहरण है। यहां मुगल वंश के कई शासकों को दफनाया गया है।
रानी की वाव, पाटन, गुजरात
रानी की वाव (बावड़ी) का निर्माण 1063 ईस्वी में सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने करवाया था। रानी उदयमति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रा खेंगार की पुत्री थीं। कहा जाता है कि सरस्वती नदी में बाढ़ से जमा हुई गाद के नीचे यह बावड़ी खो गई थी। वर्षों बाद खुदाई से पता चला कि गाद ने नक्काशी को सबसे अच्छी स्थिति में रहने में मदद की थी। इसे साल 2014 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में दर्जा भी मिला है।
मिर्जन किला, कर्नाटक
इस किले को गेरसोप्पा की रानी चेन्नाभैरदेवी ने बनवाया है। रानी चेन्नाभैरदेवी को सबसे अच्छी काली मिर्च उगाने वाली भूमि पर शासन करने के लिए पुर्तगालियों ने 'द पेपर क्वीन' का उपनाम दिया था। कहा जाता है कि कई कारीगर शरण लेने के लिए रानी के पास आए। इसके बदले में उन्होंने 16वीं शताब्दी में रानी को मिरजन में अपना किला बनाने में मदद की। आज भी यह किला अपनी खूबसूरती को बनाए रखने में बरकरार है।
लाल दरवाजा मस्जिद, जौनपुर
इसके बारे में कहा जाता है कि जौनपुर की बीबी राजे जब सुल्तान महमूद शर्की की रानी थी तब उन्होंने अपने महल के साथ संत सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन के लिए लाल दरवाजा मजीद बनवाई थी। 1447 से उन्होंने जो स्मारक बनाए थे, उनमें से एक मदरसा जिसे जामिया हुसैनिया कहा जाता है। जो आज भी मौजूद है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पति के शासनकाल के दौरान इस क्षेत्र में लड़कियों के लिए पहला स्कूल भी बनवाया था।



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