जानिए रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट के बारे में जिसमे लोग खाने लगे खुद का मांस

दुनियाभर में तमाम तरह के एक्सपेरिमेंट (प्रयोग) होते रहते हैं। हालांकि, इनमें से कुछ के बारे में लोगों का पता होता है, जबकि कुछ गुप्त रूप से ही किए जाते हैं।

Update: 2021-03-07 17:38 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दुनियाभर में तमाम तरह के एक्सपेरिमेंट (प्रयोग) होते रहते हैं। हालांकि, इनमें से कुछ के बारे में लोगों का पता होता है, जबकि कुछ गुप्त रूप से ही किए जाते हैं। कुछ इसी तरह का ही एक एक्सपेरिमेंट 1940 के दशक में किया गया था, जिसके बारे में जानकर लोगों की रूह कांप जाती है। इस एक्सपेरिमेंट को 'रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट' के नाम से जाना जाता है।

आपको बता दें कि इस एक्सपेरिमेंट के लिए जेल में बंद पांच कैदियों के साथ एक डील की गई और उनसे कहा गया कि अगर वो इसका हिस्सा बनते हैं, तो एक्सपेरिमेंट खत्म होने के तुरंत बाद उन्हें छोड़ दिया जाएगा। इसके लिए उन्हें बताया गया कि 30 दिन तक उन्हें बिना सोए रहना होगा, जिसके लिए कैदी राजी हो गए। इसके बाद उन्हें एक एयर टाइट चैंबर में बंद कर दिया गया और उसमें एक गैस डाल दी गई, जिससे कैदियों को नींद न आए और वैज्ञानिक यह देख सकें कि इसका उनपर क्या प्रभाव पड़ता है।
शुरुआत में तो सबकुछ ठीक था। सारे कैदी आराम से एक दूसरे से बातें करते रहते थे। उनकी बातों को वैज्ञानिक रिकॉर्ड भी करते रहते थे और साथ ही एक कांच के जरिए उनपर नजर भी बनाए हुए थे। करीब एक हफ्ते तक तो सारे कैदियों की हालत ठीक थी, लेकिन उसके बाद उनकी हालत बिगड़ने लगी।
कैदियों ने धीरे-धीरे एक दूसरे से बात करना बंद कर दिया। वो बैठे-बैठे अपने आप ही कुछ-कुछ बोलते रहते थे। ऐसे ही 10 दिन बीत गए। फिर जैसे ही 11वां दिन आया, एक कैदी अचानक जोर-जोर से चिल्लाने लगा। वह इतनी तेज-तेज चिल्ला रहा था कि कहते हैं कि उसकी वोकल कॉर्ड फट गई थी। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि उसके चिल्लाने का बाकी कैदियों पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा।
कैदियों की हालत देखकर वैज्ञानिकों ने इस एक्सपेरिमेंट को रोकने का फैसला किया। उन्होंने 15वें दिन कैदियों वाले चैंबर में वो गैस नहीं डाली, जिसकी मदद से कैदियों को सोने से रोका जाता था। लेकिन इसका उल्टा ही प्रभाव पड़ा। सारे कैदी अचानक से चिल्लाने लगे और कहने लगे कि हमें बाहर मत निकालो, हम बाहर नहीं आना चाहते। इस बीच चैंबर में ही एक कैदी की मौत भी हो गई।
जब एक्सपेरिमेंट कर रहे वैज्ञानिकों ने कैदियों की हालत को देखा, तो उनके होश ही उड़ गए। उन्होंने देखा कि कैदियों के कई अंगों से मांस गायब हो गए थे, सिर्फ उनकी हड्डियां ही दिख रही थीं। उन्हें देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे वो एक दूसरे का या अपना ही मांस खाने लगे थे।
कैदियों की दिल दहला देने वाली हरकतें और उनकी हालत को देखकर वैज्ञानिकों ने सोचा कि उन्हें मार देना चाहिए। इसके लिए उन्होंने टीम के कमांडर से बात की, लेकिन कमांडर ने ऐसा करने से मना कर दिया और उसने कहा कि हमें एक्सपेरिमेंट को जारी रखना चाहिए। हालांकि, बाद में एक वैज्ञानिक ने ही उन कैदियों को मार डाला और एक्सपेरिमेंट से जुड़े सारे सबूत मिटा दिए।
अब यह कहानी सच है या मनगढ़ंत, इसके बारे में कोई खास जानकारी नहीं है। लेकिन साल 2010 में क्रीपिपास्ता डॉट विकिया डॉट कॉम नामक वेबसाइट पर इसे पोस्ट किया गया था और यह सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई थी। कुछ लोग तो इस कहानी को सच ही मानते हैं, क्योंकि पहले और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय में जापान और चीन जैसे देशों में इंसानों पर कई खतरनाक प्रयोग किए जा चुके हैं। 


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