चौकीदार की नौकरी कर के बने IIM के प्रोफेसर, जानिए इनकी सफलता की कहानी
हर शख्स की जिंदगी में कई चुनौतियां आती है, जिन्हें हम पार कर आगे बढ़ते रहते हैं
हर शख्स की जिंदगी में कई चुनौतियां आती है, जिन्हें हम पार कर आगे बढ़ते रहते हैं. हम में से अधिकतर लोग अपने पूरे जीवन में न तो अपनी कोई पहचान बन पाते हैं और न ही इसके लिए कड़ी मेहनत करने कोशिश ही करते हैं. अलबत्ता कुछ लोग ऐसे भी है, जो तमाम दिक्कतों के बाद भी अपने सपने सच कर लेते हैं. जाहिर सी बात है कि सिर्फ सपने देख लेने से ही कोई मंजिल हासिल नहीं हो सकती. मंजिल जितनी ऊंची होगी, प्रयास और मेहनत भी उतनी ही ज्यादा करनी होती है. कुछ ऐसी ही कहानी है केरल के रहने वाले की. जिनका चयन पिछले दिनों IIM रांची में प्रोफेसर के तौर पर चयन हुआ है. उनकी संघर्ष भरी कहानी हम सभी के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
रंजीत रामचंद्रन इन दिनों बेंगलुरु के क्रिस्ट यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. शनिवार को उन्होंने केरल के अपने घर की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की और लिखा- 'IIM के प्रोफेसर का जन्म इसी घर में हुआ है'. प्लास्टिक और ईंट से बना ये घर किसी झुग्गी की तरह दिखता है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि वो ये चाहते हैं कि उनकी कहानी से मौजूदा दौर के युवा प्रेरणा लें. रामचंद्रन ने कहा, 'मेरी सफलता दूसरों के सपनों को प्रेरित करना चाहिए. एक समय वो भी था जब मैंने परिवार को सपोर्ट करने के लिए पढ़ाई छोड़ने का फैसला कर लिया था.'
रामचंद्रन के पिता रवींद्रन टेलर का काम करते हैं. मां बेबी मनरेगा में मजदूर हैं, उनके तीन भाई-बहन हैं. और ये सब एक छोटे से घर में रहते हैं. कासरगोड जिले में रहने वाले रंजीत ने जिस वक्त पायस टेंथ कॉलेज से अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की तब वह कसारगोड़ के पानाथूर में बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज में चौकीदार का काम कर रहे थे. उन्होंने लिखा है, "मैं दिन में कॉलेज जाता था और रात के समय टेलीफोन एक्सचेंज में काम करता था." इसके बाद उन्हें आईआईटी मद्रास में दाखिला मिला लेकिन उन्हें बस मलयालम भाषा आने के कारण मुश्किलें आई.
ऐसे में निराश होकर उन्होंने पीएचडी छोड़ने का फैसला किया लेकिन उनके गाइड सुभाष ने उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए जैसे- तैसे मना लिया. उन्होंने लिखा, "मैंने संघर्ष किया और अपना सपना साकार करने की ठानी." और उन्होंने पिछले ही साल पीएचडी पूरी की. पिछले दो महीने से वह बेंगलुरु के क्राईस्ट विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर थे. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी कहानी इतनी पॉपुलर हो जाएगी. असल में मैं चाहता हूं कि सभी अच्छा सपना देखें और उसे पाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखे."