यहां विधवा की जिंदगी जीती हैं सुहागिन महिलाएं, जानें क्यों ?

दुनियाभर में ऐसे कई देश और अलग-अलग समुदाय के लोग हैं जो किसी न किसी ऐसी परंपरा का पालन करते हैं

Update: 2021-11-17 07:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  दुनियाभर में ऐसे कई देश और अलग-अलग समुदाय के लोग हैं जो किसी न किसी ऐसी परंपरा का पालन करते हैंजो देखने और सुनने में थोड़े अजीब लगते हैं। भारत भी में तमाम तरह की धार्मिक परंपराएं और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। इनमें से कुछ परंपराएं इतनी अजीबोगरीब हैं, जिनके बारे में सुनकर आश्चर्य भी होता है। तो चलिए आज एक ऐसी अनोखी परंपरा के बारे में जानते हैं, जिसके बारे में सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।

भारत में कई समुदाय के लोग रहते हैं और सबके रीति-रिवाज भी अलग-अलग होते हैं। लेकिन सभी धर्मों और समुदायों के नियम और रीति-रिवाज ज्यादातर महिलाओं को ही मानाने पड़ते हैं। वहीं हिंदू धर्म में शादी के बाद सुहागिन महिलाओं के लिए बिंदी, सिंदूर, महावर जैसी चीजों से श्रृंगार जरूरी माना जाता है। बिंदी, सिंदूर, सुहागिन महिलाओं का प्रतीक होता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि अपने पति की लंबी उम्र के लिए स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार न करना अपशगुन भी माना जाता है। लेकिन हमारे देश में ही एक ऐसा समुदाय है, जहां पत्नियां पति की लंबी उम्र के लिए विधवा जैसी जिंदगी जीती हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...
यहां विधवा की जिंदगी जीती हैं सुहागिन महिलाएं
भारत में एक समुदाय है गछवाहा, जिसमें लोग अजीब तरह के रीति-रिवाज को मानते हैं। इस समुदाय की महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए हर साल विधवा जैसी जिंदगी जीती हैं। इस समुदाय की महिलाएं पति के जिंदा होते हुए भी साल में करीब 5 महीने के लिए विधवाओं की तरह रहती हैं। इस समुदाय की स्त्रियां लंबे समय से इस अनोखी परंपरा का पालन करती आ रही हैं। सिर्फ यही नहीं ये महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए 5 महीने तक उदास भी रहती हैं।
इस समुदाय के लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहते हैं। वहीं इस समुदाय के पुरुष साल में पांच महीने तक पेड़ों से ताड़ी उतारने का काम करते हैं। इसी दौरान महिलाएं विधवाओं की तरह जिंदगी जीती हैं। इस समुदाय की परंपरा है कि हर साल जब पुरुष पांच महीने तक पेड़ों से ताड़ी उतारने जाएंगे, तब उस वक्त सुहागिन महिलाएं न तो सिंदूर लगाएंगी और न ही माथे पर बिंदी लगाएंगी। साथ ही वह किसी भी तरह का कोई श्रृंगार भी नहीं करतीं।
महिलाएं 5 महीने तक श्रृंगार इसलिए नहीं करतीं क्योंकि ताड़ के पेड़ पर चढ़ कर ताड़ी उतारना काफी कठिन काम माना जाता है। ताड़ के पेड़ काफी लंबे और सीधे होते हैं। इस दौरान अगर जरा सी भी चूक हो जाए तो इंसान पेड़ से नीचे गिरकर मर सकता है। इसीलिए उनकी पत्नियां कुलदेवी से अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती हैं तथा अपने श्रृंगार को माता के मंदिर में रख देती हैं। गछवाहा समुदाय तरकुलहा देवी को अपना कुलदेवी मानता है और उनकी पूजा करता है। इस समुदाय का मानना है कि ऐसा करने से कुलदेवी प्रसन्न हो जाती हैं, जिससे उनके पति 5 महीने काम के बाद सकुशल वापस लौट आते हैं।



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