आसमान से जब बारिश होती है तो ओले, पत्थर और मछलियों तक की बरसात होती है। मगर, कुछ ऐसे ग्रह भी हैं जहां इन सब चीजों की तो नहीं, लेकिन हीरों की बरसात होती है। जी हां! हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं, लेकिन हम कुछ ही ग्रहों के बारे में जानते हैं। इन ग्रहों में मंगल, बृहस्पति, शनि, बुध और शुक्र के बारे में ही ज्यादा जानते हैं। वहीं कुछ ऐसे ग्रह होते हैं जिनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। अगर हम इन ग्रहों के बारे में जानेंगे तो ये दूसरे ग्रहों से काफी अलग और खास हैं। इन ग्रहों पर जो मौसम है वो भी बाकी ग्रहों से अलग होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां बारिश भी हीरों की होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इन ग्रहों के अंदरूनी हिस्सों में वातावरणीय दबाव काफी अधिक है। ये ग्रह नेपच्यून और यूरेनस हैं। नेपच्यून पृथ्वी से 15 गुना बड़ा है और यूरेनस, पृथ्वी से 17 गुना बड़ा है।
क्यों होती है हीरों की बारिश
इन ग्रहों पर हीरों की बारिश होने की वजह बेहद चौकाने वाली है। यूरेनस और नेपच्यून ग्रह पर मीथेन गैस है। इन गैसों में हाइड्रोजन और कार्बन होते हैं, जिनका रासायनिक नाम CH₄ होता है। जिस तरह से पृथ्वी पर वायुमंडलीय दबाव होता है और उसके कारण पानी भांप बन जाता है और फिर बारिश का रूप लेकर धरती पर बरसता है।
यही प्रक्रिया नेपच्यून और यूरेनस ग्रहों पर भी देखने को मिलती है। जब मीथेन पर दबाव बनता है तो हाइड्रोजन और कार्बन के बॉन्ड टूट जाते हैं। इसके बाद कार्बन हीरे में बदल जाते हैं और इसीलिए यहां हीरों की बारिश होती है। ये ग्रह धरती से सबसे अधिक दूरी पर हैं। यहां तापमान शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस तक नीचे रहता है।
इन ग्रहों पर मीथेन गैस बर्फ की तरह जमी रहती हैं और जब हवा चलती है तो बादलों की तरह उड़ती रहती है। यहां की सतह पूरी तरह से समतल है और हवाएं सुपरसोनिक गति से चलती है जिनकी रफ्तार 1500 मील/घंटे होती है।यहां के वायुमंडल में संघनित कार्बन है जिसके कारण यहां हीरे की बारिश होती है। सबसे हैरानी करने वाली बात है कि यहां के हीरे किसी को नहीं मिल सकते हैं, क्योंकि यहां ठंड बहुत पड़ती है जिससे बच पाना मुश्किल होता है उससे भी मुश्किल है यहां पहुंचना।