अजीबोगरीब: कोरोना संक्रमितों के इलाज में डॉक्टर करेंगे जोंक का इस्तेमाल

जोंक एक ऐसा किड़ा है, जो खून चूसने के लिए जाना जाता है

Update: 2021-05-18 12:26 GMT

जोंक एक ऐसा किड़ा है, जो खून चूसने के लिए जाना जाता है। इतना ही नहीं इस खून चूसने वाले किड़े का इस्तेमाल इलाज के लिए भी किया जाता है। आपको ये बात थोड़ी अजीब जरूर लग रही होगी, लेकिन यह पूरी तरह से सच है। आयुर्वेदिक या फिर प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत, जलौका पद्धति से कई रोगों का इलाज किया जाता है। लेकिन बिहार में इन दिनों खून चूसने वाले जोंक कोरोना मरीजों के इलाज के लिए ढूंढे जा रहे हैं।


जोंक शरीर से गंदा खून चूस लेते हैं और मृत कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, शरीर के किसी हिस्से में जब स्किन खराब होती है और ब्लड सर्कुलेशन बंद हो जाता है, तो मृत कोशिकाओं को एक्टिव करने में जोंक काफी मददगार साबित होते हैं। बता दें कि जोंक दो तरह के होते हैं, सविष और निर्विष यानी विष वाले और बिना विष वाले।

आयुर्वेदिक इलाज में बिना विष वाले जोंक को इस्तेमाल में लाया जाता है। बिना विष वाले जोंक की पहचान करना काफी आसान है। विष वाले जोंक गहरे काले रंग के और खुरदरी त्वचा वाले होते हैं, जबकि बिना विष वाले जोंक हरे रंग की चिकनी त्वचा वाले और बिना बालों वाले होते हैं।

बिहार की राजधानी पटना के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज में इन दिनों बिना विष वाले जोंक की तलाश जारी है। दरअसल, कोरोना के बाद ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमाइकोसिस की समस्या एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। फिलहाल इस बीमारी के इलाज के लिए कालाजार वाला इंजेक्शन भी मददगार साबित हो रहा है और सरकार ने भी इसकी अनुमति दे दी है। वहीं आयुर्वेदिक विशेषज्ञ जलौका पद्धति से ब्लैक फंगस के इलाज की संभावना ढूंढ रहे हैं।



आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के मुताबिक, शरीर में कहीं भी एबनॉर्मल ग्रोथ में या आंखों में सूजन होने पर जलौका पद्धति का उपचार अच्छा काम करता है। आंख के ऊपर खून जमा होने पर जोंक रखा जाता है और उसके खून चूसने के बाद स्किम नॉर्मल हो जाती है। हालांकि, ब्लैक फंगस के इलाज के लिए जलौका पद्धति से इलाज की पुष्टि नहीं की गई है और ना ही सरकार के द्वारा इसकी मान्यता दे दी गई है।


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