सिक्किम के नाथुला दर्रे पर स्थित है बाबा हरभजन मंदिर, चीनी सेना भी झुकाती है सिर

बाबा हरभजन सिंह के बारे में मशहूर हैं कई किस्से

Update: 2021-10-10 05:35 GMT

देश में अनगिनत लोकप्रिय मंदिर एवं धार्मिक स्थल होने के बावजूद सिक्किम के नाथुला दर्रे पर स्थित बाबा हरभजन मंदिर अपने आप में अनोखा है. इस मंदिर के प्रति सैनिकों की अटूट आस्था है. सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तकरीबन 50 किमी दूर नाथुला पास से 9 किमी नीचे की तरफ जाने पर बाबा हरभजन सिंह का मंदिर स्तिथ है.

यह मंदिर भारतीय जवान के प्रेरणाश्रोत बाबा हरभजन सिंह को समर्पित है. भारतीय सेना द्वारा निर्मित यह अनोखा स्थल बाबा हरभजन की हिंदुस्तान के प्रति अटूट देशभक्ति के प्रतीक के रूप में मशहूर है.
बाबा हरभजन सिंह के बारे में मशहूर हैं ये किस्से
बाबा हरभजन सिंह को शहीद हुए 50 वर्ष से अधिक हो चुके हैं. बाबा से जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं. स्थानीय लोग मानते हैं कि बाबा हरभजन सिंह मरणोपरांत भी भारत-चीन की सीमा पर तैनात हैं. वो आज भी मां भारती के वीर सपूत होने के कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए देश की रक्षा कर रहे हैं. सिक्किम के लोग मानते हैं कि बाबा हरभजन चीन की गतिविधियों पर आज भी नजर रखते हैं और जब भी चीन घुसपैठ करने की कोशिश करता है, वो किसी भारतीय जवान साथी के सपनें में आकर इस बात की जानकारी दे जाते हैं.

सिक्किम के नाथुला दर्रे तक आने वाले सैलानियों के यह मंदिर एक विशेष पड़ाव है. इस मंदिर में आज भी बाबा हरभजन की सेवा एक जांबाज भारतीय सिपाही के रूप में होती है. बाबा की वीरता की कहानी न केवल भारतीय जवानों के ज़ुबान पर है बल्कि चीनी सैनिक भी उनसे जुड़ी कहानी बताते हैं.
कौन थे बाबा हरभजन सिंह?
बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त, 1946 को पंजाब के सरदाना गांव में सिख परिवार में हुआ. विभाजन के बाद यह गांव पाकिस्तान में शामिल हो गया. बाबा हरभजन सिंह 9 फरवरी, 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट के 24वें बटालियन में नियुक्त हुए. अब बाबा हरभजन को भारतीय 'नाथुला के नायक' के रूप में जानते हैं.
जानकार बताते हैं कि बाबा की मृत्यु 1968 में नाथुला दर्रे की तरफ खच्चरों का काफिला ले जाने के दौरान पैर फिसलने के कारण नदी में गिरने से हुई. नदी की तेज धार में उनका शरीर 2 किमी तक बह गया. इस कारण उनका पार्थिव शरीर काफी खोजबीन करने के 2 दिन बाद मिला. बाबा हरभजन ने मरणोपरांत किसी जवान के सपने में आकर उनके समाधि की स्थापना की इच्छा जाहिर की. बाबा हरभजन सिंह की वीरता और शौर्यता का सम्मान करते हुए 1982 के आसपास नाथुला दर्रे पर समाधि निर्मित की गई, जिसे लोग अब बाबा हरभजन सिंह मंदिर के नाम से जानते हैं.

जाने से पहले जान लें ये बातें
-बाबा हरभजन सिंह मंदिर संरक्षित क्षेत्र में होने की वजह से आपको परमिट की आवश्यकता होती है. परमिट पाने के लिए आपको दो पासपोर्ट फोटो और आईडी प्रूफ देने की आवश्यकता होती है. मंदिर की यात्रा त्सोमगो झील और नाथुला पास के यात्रा में शामिल है.

-मंदिर की यात्रा के लिए परमिट पास एक दिन पूर्व लागू होता है. सिक्किम की राजधानी गंगटोक से बाबा मंदिर जाने में 3 घंटे लगते हैं.

-बाबा हरभजन मंदिर ऊंचे स्थान पर स्तिथ होने की वजह से आने-जाने वाले यात्रियों व पर्यटकों को सलाह दी जाती है कि यहां आप ऑक्सिजन की कमी महसूस कर सकते हैं इसलिए आने के पूर्व डॉक्टरों से परामर्श आवश्य लें.
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