भारत के एक ऐतिहासिक मंदिर, जिसकी बनावट नहीं है किसी अजूबे से कम

हिंदू धर्म में भगवान और मंदिरों का बड़ा महत्व है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान ही इस सृष्टि का संचालन करते हैं।

Update: 2021-08-06 07:17 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में भगवान और मंदिरों का बड़ा महत्व है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान ही इस सृष्टि का संचालन करते हैं। उनकी ही इच्छा से धरती पर सबकुछ होता है। वैसे तो हिंदू धर्म की मान्यता है कि भगवान हर जगह मौजूद हैं, लेकिन भारत की संस्कृति ऐसी है कि यहां जगह-जगह आपको अलग-अलग देवताओं के मंदिर मिल जाएंगे। ऐसा सदियों से चला आ रहा है कि लोग अपनी श्रद्धा से मंदिरों का निर्माण करवाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं है। कहते हैं कि इस मंदिर को बनने में 100 साल से भी ज्यादा का समय लगा था और इसके निर्माण में करीब 7000 मजदूरों लगाए गए थे।

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दरअसल, यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा की गुफाओं में है, जिसे एलोरा के कैलाश मंदिर के नाम से जाना जाता है।

276 फीट लंबे और, 154 फीट चौड़े इस मंदिर की खासियत ये है कि इसे केवल एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। ऊंचाई की अगर बात करें तो यह मंदिर किसी दो या तीन मंजिला इमारत के बराबर है। इस भव्य मंदिर को देखने के लिए सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर से लोग आते हैं।

कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में करीब 40 हजार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसका रूप हिमालय के कैलाश की तरह देने का प्रयास किया गया है। कहते हैं कि इसे बनवाने वाले राजा का मानना था कि अगर कोई इंसान हिमालय तक नहीं पहुंच पाए तो वो यहां आकर अपने अराध्य भगवान शिव का दर्शन कर ले।

इस मंदिर का निर्माण कार्य मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (757-783 ई.) ने शुरु करवाया था। माना जाता है कि इसे बनाने में 100 साल से भी ज्यादा का समय लगा था और करीब 7000 मजदूरों ने दिन-रात एक करके इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था।

इस मंदिर में आज तक कभी पूजा हुई हो, इसका प्रमाण नहीं मिलता। यहां आज भी कोई पुजारी नहीं है। यूनेस्को ने 1983 में ही इस जगह को 'विश्व विरासत स्थल' घोषित किया है।

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