4 दोस्तों ने खोली अनोखी दुकान, 1 रुपये में जरूरतमंद खरीद सकते हैं स्टाइलिश कपड़े
4 दोस्तों ने खोली अनोखी दुकान
धनी और संपन्न लोग जब चाहें, जितने चाहें कपड़े खरीद सकते हैं. हर नए फैशन को अपना सकते हैं और अपने स्टाइल को बदल सकते हैं. मगर गरीब लोगों के लिए कपड़े पहनना ही बड़ी बात है, स्टाइल तलाशना और फैशन को फॉलो करना तो उनके लिए नामुमकिन जैसा है. लेकिन इस नामुमकिन को मुमकिन कर दिया है 4 दोस्तों ने. उन्होंने जरूरतमंदों के लिए खास दुकान (Clothes Bank) की शुरुआत की है जिसके जरिए वो कभी भी आकर सिर्फ 1 रुपये में कपड़े (Clothing for poor in just 1 rupees) खरीद सकते हैं.
बेंगलुरू की एलेक्ट्रॉनिक सिटी (Electronic City, Bengaluru) में 'इमैजिन क्लोद्स बैंक' (Imagine Clothes Bank) नाम की एक कपड़ों की दुकान शुरू की गई है जो पूरी तरह से जरूरतमंद लोगों के लिए ही बनायी गई है. इस दुकान के सभी कपड़े सिर्फ 1 रुपये की कीमत में बिकते हैं. यानी जीन्स हो या टीशर्ट, पैंट हो या शर्ट, यहां से खरीदी गई हर चीज की कीमत सिर्फ 1 रुपये है. इस 1 रुपये में ग्राहक कुछ भी खरीद सकते हैं.
4 दोस्तों ने की अनोखी पहल
आपको बता दें कि ये अनोखी दुकान (Clothes Shop for Poor People) 4 दोस्तों का आइडिया था जो एक साथ मैंगलुरू के एक कॉलेज (Shop Started by College Friends for Poor Customers) में पढ़ा करते थे. इन दोस्तों ने साल 2013 में इमैजिन ट्रस्ट के नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की थी जिसे वो अपनी नौकरियों के साथ ही मैनेज किया करते थे. मगर मेलिशा नाम की एक दोस्त जब एनजीओ से फुल टाइम जुड़ गई तो दोस्तों ने एनजीओ के जरिए बड़े प्रोजेक्ट्स को लेना शुरू कर दिया. इसके बाद उन्होंने कई चौंकाने वाले कामों को अनजाम दिया. मेलिशा के पति विनोद, उनकी मां ग्लैडिस और दो अन्य दोस्त नितिन कुमार और विग्नेश ने इसकी शुरुआत की थी.
कैसे काम करती है दुकान?
ये कपड़ों की दुकान 12 सितंबर को शुरू हुई थी. ये हर रविवार को खुलती है और यहां किसी भी उम्र के लोग आकर कपड़े ले सकते हैं. कपड़ों की कीमत 1 रुपये रखने के पीछे कारण ये था कि वो चाहते थे कि ग्राहकों के सम्मान का भी ख्याल रखा जाए. इसलिए वो कपड़े मुफ्त में नहीं ले रहे बल्कि कीमत देकर उन्हें खरीद रहे हैं. इससे जितना भी पैसा जुटता है उसे ये चारों दोस्त गरीब बच्चों की पढ़ाई में खर्च करते हैं. दुकान में चादर, तौलिया, कपड़े, पर्दे आदि जैसी चीजें मिलती हैं और करीब 150 परिवार यहां हर हफ्ते आते हैं.