दिल्ली Delhi: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव Akhilesh Yadav said ने आखिरकार अपने लिए राजनीति मैदान चुन लिया। भारतीय गठबंधन को देश में सरकार बनाने का मौका भले ही न मिल सके, लेकिन एक मजबूत नेता की भूमिका में वह जरूर नजर रख रही है। यूपी में जिन मुद्दों पर दबाव वाली सपा मिली है, उन्हें कांग्रेस के विधानसभा से नहीं बल्कि कांग्रेस के सदन से समर्थन प्राप्त हो सकता है। इसीलिए करहल विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अखिलेश यादव ने कन्नौज से लोकसभा सांसद का फैसला किया है। अखिलेश यादव के इस कदम से माना जा रहा है कि वह अब लखनऊ के बजाय दिल्ली में डेरा जमाकर सियासत करेंगे। सपा प्रमुख भले ही दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करें, लेकिन उनकी नजर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है।
अखिलेश दिल्ली से यूपी में होने वाले 2027 विधानसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ समीकरण साधने की निगरानी करेंगे। अखिलेश के इस दांव को सपा के दुख में विश्वास बढ़ाने के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के भविष्य के सियासत के तौर पर भी देखा जा रहा है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा को भले ही बहुमत न मिल सके, लेकिन नतीजे आने के बाद अखिलेश यादव ने आजमगढ़ लोकसभा सीट से अपनी सदस्यता छोड़ दी थी। यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद संभालते हुए अखिलेश ने योगी सरकार की जिम्मेदारी तय करने का जिम्मा उठाया था। दिल्ली छोड़कर लखनऊ में डेरा जमाने के पीछे यूपी में संगठन को मजबूत करने और अपने समर्थकों के आधार को बनाए रखने की थी। साथ ही, वह भगवान शिव के विरुद्ध विद्रोही मानसिकता बनाने की थी। इसी तरह का नतीजा 2024 के चुनाव में सपा को रिकार्ड मत हासिल हुए हैं। 37 सीटें जीतने में कामयाब रही सपा
उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 37 सीटें सपा जीतने में कामयाब रही, जो अब तक के सियासी इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें उन्हें मिली हैं . मुलायम सिंह यादव के दौर में आईपी 36 डाइस ही जीत गयी थी। अखिलेश यादव को यूपी विधानसभा में जिंदाबाद की कमान हासिल करनी थी, वो कर चुके हैं। अब आगे की मुख्य मंजिल को हासिल करने के लिए दिल्ली वापस लौटने का फैसला किया गया है। सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अताउर्रहमान ने कहा कि अखिलेश यादव को प्राथमिक लोकसभा चुनाव में मिले समर्थन को आगे बढ़ाने की जरूरत है। विधायक पद से इस्तीफा देने का मकसद यह नहीं है कि अखिलेश यादव यूपी छोड़ रहे हैं। सपा का अगला लक्ष्य 2027 का विधानसभा चुनाव और सपा को हरहाल में सत्ता से बाहर करना है। लोकसभा चुनाव में सपा को जिस तरह से उप और उप-चुनाव पर जीत मिली है, उसे यूपी की विधानसभा से नहीं बल्कि कांग्रेस के सदन से धार देने की है। सपा ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के चुनाव पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन चुनावी जातिगत जनगणना, अग्निवीर और संविधान के मुद्दे पर लड़ाई है। ये ऐसे मुद्दे हैं, जिनका समाधान यूपी से नहीं बल्कि देश की सरकार से निकलने वाली है। अखिलेश यादव ने कांग्रेस में इन मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने का काम किया है, क्योंकि इसे विधानसभा में पेश किया गया था, इसलिए भाजपा नेता कहते थे कि यह काम राज्य सरकार से नहीं बल्कि केंद्र सरकार को करना है। इसीलिए अब राष्ट्र के माध्यम से उसे धार देने की रणनीति बनाई गई है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की संख्या अब 37 हो गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव को एक साथ जोड़े रखने के लिए उनके बीच रहना जरूरी है। पार्टी में किसी तरह की टूटन और टूटन की संभावना को विफल करने के लिए भी संसद में उनका रहना अहम है। अखिलेश के सांसद रहने से सपा को भरोसा दिलाया जा रहा है, क्योंकि उनके नेता देश की संसद में हैं। 2019 में पांच सांसद थे, जिसके चलते कांग्रेस के सदन में पार्टी को किसी मुद्दे पर बोलने के लिए चंद मिनट का समय मिला था, लेकिन अब 37 लोकसभा सांसद होने के चलते कांग्रेस के सदन में पार्टी को किसी मुद्दे पर बोलने के लिए चंद मिनट का समय भी ज्यादा मिलेगा। ऐसे में अखिलेश यादव को अपनी बात रखने का पर्याप्त समय होगा और अच्छी तरह से अपनी बातों को रखना होगा। अखिलेश के समर्थन में सपा के 37 सांसद एक साथ नजर आएंगे। इस तरह अखिलेश यादव यूपी के साथ-साथ देश के मुद्दों को भी सियासी धार देते हुए नजर आएंगे। राष्ट्रीय फलक पर सपा की पहचान
अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा देश की तीसरी सबसे The third most बड़ी पार्टी बन गई है। कांग्रेस चुनाव में यूपी में सपा ने अकेले दम पर 37 और भारत गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस के साथ मिलकर कुल 43 सीटों पर जीत दर्ज की है। जानकारों का कहना है कि सपा के देश में तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी बनने के बाद अखिलेश यादव की सपना पार्टी को राष्ट्रीय फलक तक पहुंचाने का है। इसे लखनऊ से दिल्ली तक ही पूरा नहीं किया जा सकता है। इससे पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड जैसे राज्यों में चुनाव लड़ रही है, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई है। अखिलेश यादव पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं और यादव समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाना चाहते हैं। पीडीए के आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीतिदिल्ली में डेराह केंद्र में अपने दम पर खुद को विपक्ष का एक मजबूत नेता साबित करना चाहती है। उत्तर प्रदेश में होने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव पर फोकस किया जाएगा और सरकार को घेरा जा सकेगा। सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अताउर्रहमान का कहना है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में जीत मिली है और अब राष्ट्रीय स्तर पर पीडीए के आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति है। राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की समस्याओं के लिए संघर्ष करेंगे, लेकिन प्रदेश स्तर की राजनीति पर भी उनकी नजर रहेगी। पीडीए से ही विधानसभा चुनाव लड़ने की भी योजना है। अखिलेश यादव संसद से ही नैरेटिव सेट करने की कोशिश करेंगे और यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि संसद में उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों का यूपी में भी व्यापक असर पड़े। कांग्रेस चुनाव की सियासी जंग फतह करने के बाद सपा के हौसले बुलंद होंगे और अखिलेश यादव की नजर 2027 के चुनाव पर होगी। अखिले