बहुत कम लोग जानते हैं उनकी ये इच्छा, Gopaldas Neeraj Death Anniversary: बेटे ने साझा कीं पिता की यादें
इतने बदनाम हो गए हैं हम जमाने में, तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में। इन पंक्तियों को लिखने वाले पद्मभूषण गोपाल दास नीरज की आज चौथी पुण्यतिथि है। गुरुग्राम के सैफायर मॉल के सामने ऑर्चिड पेटल्स के विला नंबर-11 में रह रहे नीरज के पुत्र मिलन प्रभात गुंजन उनसे जुड़ी स्मृतियों को साझा करते हुए चार दशक के उनके मायानगरी के सफर को याद करते हुए कहते हैं कि उनके पिता नीरज ने फिल्मी गीतों में भी कविता को जीवित रखा।
गुंजन कहते हैं कि 1966 में आर चंद्रा की फिल्म नई उमर की नई फसल के लिए नीरज ने पहला गीत लिखा था, कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे। फिल्म तो नहीं चली लेकिन गीत लोकप्रिय हुआ। इसके बाद देवानंद ने अपनी पहली निर्देशित की गई फिल्म प्रेम पुजारी में उनसे गीत लिखवाए। यह बहुत ही लोकप्रिय हुए।
इसके बाद तो देवानंद और नीरज का साथ अगले चार दशक तक रहा। देवानंद की पहली निर्देशित फिल्म से लेकर सन 2011 में आखिरी निर्देशित फिल्म चार्जशीट तक में नीरज ने ही गीत लिखे। इसके अलावा राजकपूर, मनोज कुमार, राजेंद्र भाटिया आदि के लिए भी गीत लिखे। आज भी यह गीत बेहद लोकप्रिय हैं।
गुंजन कहते हैं कि वह अक्सर कहा करते थे अगर मेरे प्राण निकलें तो मंच पर ही निकलें। जीवन के आखिरी दिनों तक वह कवि सम्मेलनों में सक्रिय रहे। उनकी स्मृति में उनके गृह नगर अलीगढ़ में कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। मैं भी उसमें शामिल हो रहा हूं। उसमें शायर, कवि और साहित्यकार शामिल होंगे।
नीरज के बेटे मिलन प्रभात ने अपने पिता के साथ बिताए वक्त और उनके जीवन की यादों को समेटे हुए एक किताब लिखी है यादों का कारवां।
इसका विमोचन भी नीरज की पुण्य तिथि में हो रहे कार्यक्रम में किया जाएगा। क्योंकि गुंजन ने अपने पिता को बेहद करीब से देखा है इसलिए इस किताब में शामिल किए गए तथ्यों की प्रमाणिकता अधिक हो जाती है।