दिल्ली सरकार पर आरोप लगाया है कि दिल्ली में बसों की खरीद व उनके रखरखाव में घोटाला हुआ है। हालांकि आम आदमी पार्टी का कहना है कि ये आरोपों निराधार हैं।
दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद के लिए टेंडर में प्रक्रियात्मक खामियां और वार्षिक रखरखाव अनुबंध (एएमसी) की सीबीआई जांच के लिए एक साल पहले ही नींव रखी जा चुकी थी। इस मामले में तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर गठित तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद गृह मंत्रालय ने सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।
टेंडर शर्तों में बसों की खरीद और वार्षिक रखरखाव में भ्रष्टाचार मामले में उठे सवालों के बाद से यह मामला गरमाने लगा था। बसों की खरीद के लिए 850 करोड़ रुपये जबकि 1000 बसों के 12 साल की एएमसी के लिए 3,412 करोड़ रुपये तय किया गया। खरीद टेंडर जेबीएम ऑटो और टाटा मोटर्स को 70:30 के अनुपात में दिया गया था। हालांकि जेबीएम ऑटो भी एएमसी टेंडरिंग में एल 1 बोलीदाता के रूप में उभरा था।
डीटीसी की ओर से 1,000 लो-फ्लोर एसी बसों और उनकी एएमसी की खरीद के लिए दो अलग-अलग टेंडर जारी किए गए हैं। डीटीसी ने तर्क दिया था कि दोनों उद्देश्यों के लिए एक निविदा से बोलीदाताओं को आकर्षित नहीं किया जा सकता है, इसलिए अलग अलग निकाले गए। इस मामले में सीबीआई जांच की मांग उठने के बाद इस मामले में गठित तीन सदस्यीय कमेटी ने एएमसी टेंडर में निर्धारित पात्रता मानदंडो में नियमों की अनदेखी की बात कही।
11 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने कहा था कि एएमसी कार्टेलिजेशन और एकाधिकार मूल्य निर्धारण को प्रोत्साहित करती है। इसमें खरीद और एएमसी टेंडरिंग की भी शामिल थी। इसमें कहा गया था कि एक ऐसी स्थिति पैदा हुई जहां दोनों बोलीदाताओं को पता था कि वो अलग अलग टेंडर के लिए एकमात्र प्रतिस्पर्धी हैं।