नयी दिल्ली,- उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करने (मैरिटल रेप) को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिका पर तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई करेगी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के शीघ्र सुनवाई के अनुरोध पर कहा कि संविधान पीठ द्वारा पहले से सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई पूरी होने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ उस याचिका पर सुनवाई करेगी।
अधिवक्ता जयसिंह दावा किया कि उनका मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय एक फैसले से जुड़े बाल यौन शोषण मामले से संबंधित है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत अपवाद के बावजूद उच्च न्यायालय ने पति के खिलाफ बलात्कार के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया था। व्यक्ति के खिलाफ आरोप फॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध से भी संबंधित है।
शीर्ष अदालत ने मैरिटल रेप (पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना) को अपराध घोषित करने और आईपीसी के प्रावधान से संबंधित याचिकाओं पर इस साल जनवरी में केंद्र से जवाब मांगा था। ये प्रावधान पत्नी के वयस्क होने पर जबरन यौन संबंध के लिए अभियोजन के खिलाफ पति को सुरक्षा प्रदान करता है।
केंद्र ने इस मुद्दे के सामाजिक प्रभाव का हवाला देते हुए कहा था कि सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ कानूनी सवाल से निपटने के लिए 76 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
उच्चतम न्यायालय जिन सवालों पर सुनवाई कर रही है, उनमें ‘क्या हल्के मोटर वाहन (एलएमवी) के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से परिवहन वाहन चलाने का हकदार है’ भी शामिल हैं।
इसके अलावा पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रधानों को हटाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगस्त में सुनवाई शुरू होनी है।
कर्नाटक सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष उच्च न्यायालय के 23 मार्च 2022 के फैसले का समर्थन किया था, जिसमें आरोपी व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत लगाए गए बलात्कार के आरोपों को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने 11 मई 2022 को दंडात्मक कानून के तहत यौन उत्पीड़न के लिए पतियों को छूट के संबंध में खंडित फैसला दिया था।