सुप्रीम कोर्ट बोला- लगता है कानून भी नहीं था, FIR नहीं हुईं, गिरफ्तारियां नहीं हो पाईं
गिरफ्तारियां नहीं हो पाईं
मणिपुर में महिलाओं की निर्वस्त्र परेड कराए जाने के केस में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। FIR में देरी पर केंद्र ने कहा कि मणिपुर में हालात बेहद खराब हैं।
सुप्रीम कोर्ट बोला- इसका मतलब हालात इतने खराब हैं कि वहां कानून भी नहीं था। FIR दर्ज नहीं हुई, पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर पाई।
इससे पहले केंद्र की ओर से रिपोर्ट पेश करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम जितना निष्पक्ष रह सकते थे, उतना रहने की कोशिश की है।
इस पर कुकी महिलाओं के रेप और हत्या के मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि यह रिपोर्ट कानून के खिलाफ है। इसमें पीड़िताओं के नाम हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इस रिपोर्ट को किसी से शेयर मत करना। मीडिया को मत देना। नहीं तो पीड़ितों के नाम सामने आ जाएंगे।
कोर्ट बोला कि हम अपनी कॉपी में करेक्शन कर लेंगे। इस पर केंद्र ने कहा कि हमने इसे किसी से शेयर नहीं किया। हमारे पास हमारी कॉपी है और एक कॉपी सिर्फ बेंच के सामने रखी गई है।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है। पिटीशन में पीड़ित महिलाओं की पहचान जाहिर नहीं की गई है। उन्हें X और Y नाम से संबोधित किया गया है।
सुनवाई तक CBI के बयान लेने पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह केंद्र को आदेश दिया कि सुनवाई पूरी होने तक CBI वायरल वीडियो केस की पीड़िताओं के बयान ना ले। बेंच ने कहा कि एजेंसी आज की सुनवाई पूरी होने का इंतजार करे। सोमवार को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया था कि हाई पावर कमेटी मामले की जांच करे, जिसमें महिलाएं भी हों।
इमेज महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने की घटना की है। ये घटना 4 मई को हुई और वीडियो 19 जुलाई को सामने आया था।
इमेज महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने की घटना की है। ये घटना 4 मई को हुई और वीडियो 19 जुलाई को सामने आया था।
हिंसा की घटनाओं पर कोर्ट रूम लाइव...
सुप्रीम कोर्ट: FIR कब दर्ज की गई?
केंद्र सरकार: मामला 4 मई का था। जीरो FIR 16 को दर्ज की गई। मणिपुर हिंसा में अब तक 6532 FIR दर्ज की गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट: तो जीरो FIR 16 जून को दर्ज की गई है। अभी तक कोई गिरफ्तारी हुई है, क्योंकि घटना तो 4 मई की थी।
केंद्र सरकार: अभी तक कोई जानकारी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट: एक बात बहुत साफ है कि FIR दर्ज करने में बहुत देरी की गई है।
केंद्र सरकार: सुप्रीम कोर्ट ने जब यह मामला उठाया, जांच उससे पहले जारी है।
सभी पीड़ित महिलाओं की ओर से याचिकाकर्ता: वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने कहा- सिस्टम से डेटा ऑटो डिलीट हो गया, CCTV डिलीट हो गए। ऐसा नहीं होना था।
केंद्र सरकार: अगर कोई पक्षपात करने वाला जांच कर रहा होता तो वह यह कहता कि CCTV ही नहीं है। हमने तो कहा कि CCTV चेक किए गए और ये ऑटो डिलीट हो गया।
सुप्रीम कोर्ट: FIR 7 जुलाई को दर्ज की गई और मामला 4 मई का था। किसी महिला को कार से बाहर खींचा गया और उसके बेटे की हत्या कर दी गई। यह बहुत गंभीर मामला है।
केंद्र सरकार: इस मामले में CCTV मौजूद था। लेकिन हम गुनहगारों को इसलिए नहीं पहचान पाए, क्योंकि हजारों लोगों की भीड़ थी।
सुप्रीम कोर्ट: लड़के को जला दिया गया। FIR में 302 की धारा क्यों नहीं जोड़ी गई, ऐसा क्यों है?
केंद्र सरकार: एक बार पोस्टमॉर्टम हो जाए, ये धारा जोड़ दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट: एक-दो मामलों को छोड़ दिया जाए, ऐसा लगता है कि ज्यादातर में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। जांच-पड़ताल बेहद ढीलीढाली है। FIR दर्ज होने में लंबा वक्त लगा, गिरफ्तारी नहीं हुई, बयान दर्ज नहीं किए गए।
केंद्र सरकार: मैं कोई सफाई नहीं दे रहा, पर ग्राउंड पर हालात बहुत खराब हैं।
सुप्रीम कोर्ट: इसका मतलब है कि 2 महीने से हालात बहुत खराब हैं और FIR दर्ज करने में कोई मदद नहीं की गई। क्या कानून नहीं है, आप FIR दर्ज नहीं कर पा रहे, पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर पा रही है। आप जो बता रहे हैं, उससे लग रहा है कि मई की शुरुआत से जुलाई तक कोई कानून नहीं था। ये मशीनरी की नाकामी है कि आप FIR भी दर्ज नहीं कर पा रहे हैं। क्या ऐसा नहीं है कि पूरे स्टेट की मशीनरी फेल हो गई है।
इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) महिला मेंबर्स ने सोमवार को चुराचांदपुर में प्रदर्शन किया। उनकी मांग है कि मैतेई सुरक्षाबलों को हटाया जाए।
इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) महिला मेंबर्स ने सोमवार को चुराचांदपुर में प्रदर्शन किया। उनकी मांग है कि मैतेई सुरक्षाबलों को हटाया जाए।
जांच को लेकर 4 दलीलें दी गईं...
1. केंद्र ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो तो ऐतराज नहीं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट यह मामला देखता है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। एक याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में कुकी समुदाय का जिक्र किया था। इस पर केंद्र ने कहा- किसी भी समुदाय का नाम इस तरह से लिया जाना सही नहीं है। सांप्रदायिक तनाव को हवा नहीं दी जानी चाहिए।
2. पीड़ित महिलाओं ने कहा- CBI इस मामले की जांच ना करे
पीड़ित महिलाओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा- ऐसे कई वाकये हुए हैं। हम CBI जांच के खिलाफ हैं। हम चाहते हैं कि एक स्वतंत्र एजेंसी इसकी जांच करे। लॉ ऑफिसर या अटॉर्नी जनरल निगरानी कैसे करेंगे और क्या निगरानी करेंगे? और अगर कोई पक्षपात हुआ तो?
3. कुकी समुदाय ने कहा- SIT इसकी जांच करे, रिटायर्ड DGP शामिल हों
कुकी समुदाय की ओर से वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्वेज ने CBI जांच का विरोध किया और कहा कि इस मामले की जांच SIT और रिटायर्ड DGP से कराई जाए। इसमें मणिपुर के किसी आर्मी अफसर को ना शामिल किया जाए।
4. हिंसा पीड़ित सभी महिलाओं की ओर याचिकाकर्ता बोलीं- हाई पावर कमेटी बने
वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने सोमवार को कहा- रेप विक्टिम इस बारे में बात नहीं कर रही हैं। वो अभी तक अपने दुख से बाहर नहीं आ पाई हैं। सबसे जरूरी चीज भरोसा पैदा करना है। CBI जांच शुरू करती है तो अभी हम यह नहीं जानते हैं कि महिलाएं सामने आएंगी।
उन्होंने बताया कि महिलाएं पुलिस की बजाय महिलाओं से ही बात करने में ज्यादा सहज महसूस करेंगीं। इसके लिए एक हाईपावर कमेटी बनाई जाए और उसमें ऐसी महिलाओं को शामिल किया जाए, जिन्हें ऐसे मामलों का अनुभव हो।
मणिपुर में 16 जिले, सबसे ज्यादा हिंसा इंफाल, चुराचांदपुर और कांगपोकपी में...
मणिपुर हिंसा में अब तक 150 से ज्यादा मौतें
मणिपुर हिंसा में अब तक 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें 3-5 मई के बीच 59 लोग, 27 से 29 मई के बीच 28 लोग और 13 जून को 9 लोगों की हत्या हुई थी। 16 जुलाई से लेकर 27 जुलाई तक हिंसा नहीं हुई थी, लेकिन पिछले दो दिनों से हिंसक झड़प की घटनाएं बढ़ गई हैं।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह...
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नगा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
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