कोविड-19 के इलाज में रेमडेसिविर व फेविपिराविर के इस्तेमाल के खिलाफ याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
नई दिल्ली, (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि दो दवाओं रेमेडिसविरऔर फेविपिरविर का इस्तेमाल बिना मंजूरी के कोविड- 19 के इलाज के लिए किया जा रहा है। साथ ही, वैध लाइसेंस के बिना इन दवाओं को बेचने के लिए 10 भारतीय दवा कंपनियों के खिलाफ सीबीआई जांच की भी मांग की गई। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. परदीवाला की पीठ ने कहा कि इन मुद्दों की अदालत द्वारा जांच नहीं की जा सकती है और अधिवक्ता एम.एल. शर्मा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।
अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें आरोप लगाया गया कि बिना मंजूरी के कोविड-19 के इलाज के लिए रेमेडिसविरऔर फेविपिरविर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था और चार सप्ताह में जवाब मांगा।
शर्मा ने तब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट का हवाला दिया था और तर्क दिया था कि कहीं भी इन दवाओं को आधिकारिक तौर पर कोरोनावायरस के लिए दवाओं के रूप में नामित नहीं किया गया है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट ने संकेत दिया कि रेमडेसिविर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, लोपिनवीर/रिटनवीर और इंटरफेरॉन रेजिमेंस का कोविड-19 के इलाज में बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं दिखाई दिया।
शीर्ष अदालत ने सितंबर 2020 में कहा था कि कोविड-19 के इलाज के लिए दवा के रूप में रेमेडिसविर और फेविपिरविर के उपयोग पर केंद्र द्वारा मंजूरी दी गई थी।
शर्मा ने कथित तौर पर वैध लाइसेंस के बिना कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए इन दो दवाओं के निर्माण और बिक्री के लिए 10 भारतीय दवा कंपनियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज करने की भी मांग की।
याचिका में, उन्होंने तर्क दिया था कि रेमेडिसविर और फेविपिरविर एंटीवायरल दवाएं हैं और कोविड मरीजों के इलाज में उनकी प्रभावकारिता पर अभी भी बहस चल रही है।