शरणार्थियों ने बयां किया अपना दर्द, हिंदू धर्म के लिए वतन छोड़ा पर अब तक नहीं हुए 'अपने'
पाकिस्तान से हिंदुस्तान में कानूनी तौर पर आए लोगों की सुध नहीं ली जा रही, जबकि वह बड़ी उम्मीद के साथ हिंदुस्तान आए थे।
हमने हिंदू धर्म के लिए जन्मभूमि और वतन छोड़ दिया। सब कुछ पाकिस्तान में रह गया। भरोसा करके भारत चले आए थे। सोचा था कि हालात बेहतर होंगे लेकिन यहां भी अभी तक कुछ नहीं मिल सका। दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिलती है। कई बार सब सोचते हैं कि जैसे-तैसे पाक में रह गए होते, वही ठीक रहता।
ज्यादा दबाव पड़ता तो धर्म बदल लेते। पाकिस्तान से दिल्ली आए हिंदू शरणार्थियों का यही साझा दर्द है। स्वर कमोवेश सबके एक से थे। अंतर सिर्फ इतना भर था कि कुछ के शब्द तल्ख थे और कुछ के शिकायती लहजे में।
इनका आशियाना मंजनू का टीला पर है। रोहिंग्याओं को फ्लैटों में बसाने के मसले पर ही सबने हैरानी जताई। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में कई देशों से गैरकानूनी तौर पर आए लोगों को सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं जबकि विभिन्न दंगों में उनकी भूमिका संदिग्ध रही है। वहीं, पाकिस्तान से हिंदुस्तान में कानूनी तौर पर आए लोगों की सुध नहीं ली जा रही, जबकि वह बड़ी उम्मीद के साथ हिंदुस्तान आए थे।
हिंदू शरणार्थी कहते हंै कि उन्हें सुविधाएं देने के नाम भी भेदभाव हो रहा है। वह मंजनू का टीला में 10 साल से रह रहे है, लेकिन उन्हें दो माह पहले बिजली आपूर्ति दी गई है। खास बात यह है कि उन्हें दिल्ली के निवासियों की तरह बिजली उपयोग पर सब्सीडी नहीं दी जाती। उन्हें प्रति यूनिट चार रुपये की दर से भुगतान करना पड़ता है। बिजली उपयोग के लिए मोबाइल की भांति मीटर रिचार्ज कराना होता है। उनकी बस्ती में सफाई की भी व्यवस्था नहीं है और शौचालयों की हालत भी खराब है।